पूर्वी चंपारण: बिहार के मोतिहारी (Motihari) में टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन के बाद गरीबी की कोख से जन्मी प्रतिभाओं का उत्साह बढ़ा हुआ है. लेकिन, सरकारी मदद के बिना उनकी प्रतिभा को निखार पाना मुश्किल दिख रहा है. गरीबी के साये में उड़ान भरने के लिए छटपटा रहा ऐसा ही एक खिलाड़ी पूर्वी चंपारण (East Champaran) जिले के ढ़ाका अनुमंडल क्षेत्र स्थित परसा गांव में रहता है.
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लॉन बॉल और कराटे के खेल में कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुका चितरंजन कुमार एशियन गेम्स में देश का नाम रौशन करना चाहता है, लेकिन उसके सपने गरीबी की आग में झुलसते दिख रहे हैं, क्योंकि उसके पास प्रैक्टिस के लिए समुचित साधन नहीं है. लॉन बॉल किट के अभाव में वो प्रैक्टिस भी नहीं कर पा रहा है. किट खरीदने के पैसे उसके पास नहीं है और उसकी मदद करने को कोई आगे नहीं आ रहा है, जबकि वो स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी मिल चुका है.
चितरंजन की मां उदवंती देवी ने अपने बेटे की क्षमता और उसके जुनून को देखकर किसी तरह उसकी इच्छा को पूरी की. वो अपने बेटे के उपलब्धियों को बताते नहीं थकती है, लेकिन वो भी अपने बेटे के सपने को टूटते हुए देखने को विवश है, क्योंकि वो उसके खेल की सामग्री को खरीद पाने में सक्षम नहीं है. अब वो सरकार से आस लगाये बैठी है.
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वहीं, चितरंजन के ग्रामीणों को उस पर काफी नाज है और ग्रामीण उसे हर तरह से सहयोग करने को तैयार हैं, लेकिन चितरंजन की प्रैक्टिस के लिए व्यवस्था कर पाने में ग्रामीण भी असमर्थ हैं, इसलिए ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि चितरंजन की प्रतिभा को उभारने के लिए वो मदद करें.
लॉन बॉल और कराटे में ब्लैक बेल्ट धारी चितरंजन ने कई प्रतियोगिताओं में खिताब जीता है. उसके पिता दूसरे राज्य में मजदूरी कर परिवार चलाते हैं, लेकिन परिवार की गरीबी भी उसके हिम्मत को नहीं तोड़ पाई. स्कूली स्तर के प्रतियोगिताओं से लगी जीतने की आदत से उसका हौसला बढ़ता गया और खेलो इंडिया में बिहार का प्रतिनिधित्व कर उसने कांस्य पदक जीता था.
चितरंजन के पास प्रैक्टिस के लिए समुचित सामग्री और कोर्ट की व्यवस्था नहीं है, जिस कारण वो निराश है. अगर चितरंजन जैसे प्रतिभा को सरकार सुविधा उपलब्ध देती है तो चितरंजन निश्चित रुप से अंतरराष्ट्रीय खेलों में राज्य और देश का नाम रौशन कर सकता है.