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पूर्वी चंपारण में भी होने लगी मखाना की खेती, सरकार की घोषणा का किसान ने किया स्वागत

मिथिलांचल के बाद चंपारण परिक्षेत्र के एक मात्र किसान ललन कुमार मखाना की खेती करते हैं. बिना किसी सरकारी प्रोत्साहन के पिछले तीन साल से खेती कर रहे है. सरकार की घोषणा के बाद चंपारण परिक्षेत्र में मखाना की खेती का रकबा बढ़ने की उम्मीद है.

पूर्वी चंपारण
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Published : Jun 5, 2020, 12:41 AM IST

मोतिहारी : केवल मिथिलांचल में होने वाली मखाना की खेती अब पूर्वी चंपारण जिले में भी होने लगी है. पिछले तीन साल से जिले के बंजरिया प्रखंड में मखाना की खेती किसान ललन कुमार कर रहे हैं. हालांकि, मखाना की खेती को लेकर किसी तरह का सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिलने के बावजूद किसान सरकार की घोषणा के बाद आशान्वित दिख रहे हैं. मृतप्राय हो चुकी धनौती नदी के क्षेत्र को पट्टा पर लेकर लगभग 100 एकड़ में मखाना की खेती हो रही है. अनुभवहीन होने के कारण पहले साल में किसान सिर्फ 100 क्विंटल मखाना के गुड़िया का उत्पादन कर सके, जबकि दूसरे साल बाढ़ के कारण मात्र 45 क्विंटल हीं गुड़िया निकाला जा सका.

देखें पूरी रिपोर्ट

'मखाना की खेती में लगती काफी मेहनत'
दरअसल, मखाना की बीज से लेकर पौधे तक में नुकीले कांटे होते हैं. पानी के अंदर से मखाना का गुड़िया निकालने वाले स्किल्ड मजदूर भी चंपारण में नहीं हैं. लगभग दो से तीन स्थानीय मजदूर हैं, जो मखाना के गुड़िया को निकालते हैं. मजदूर रामबरण महतो ने मखाना के गुड़िया को निकालने के तरीका को दिखाते हुए बताया कि सावन, भाद्रपद और आश्विन मास में गुड़िया को निकाला जाता है, जब नदी या तालाब में पानी भरा रहता है. वहीं, मजदूर किशोर महतो ने बताया कि मखाना का फल पानी के अंदर झड़ कर कीचड़ में चला जाता है, जिसे निकालने के लिए बांस का बड़ा-बड़ा आखा बनाकर पानी के अंदर प्रवेश करना पड़ता है. फिर कीचड़ के अंदर से उसके फल को निकाला जाता है. मखाना के फल को पानी के अंदर से निकालने की विधि सिखकर काम करने वाले मजदूर मुनी महतो ने बताया कि बिना ट्रेनिंग लिए मखाना का फल दूसरा कोई पानी से नहीं निकाल सकता है.

motihari
मखाना की खेती

'मखाना को लेकर किए गए घोषणा से संतोष'
मखाना की खेती करने वाले किसान ललन कुमार ने बताया कि चंपारण में मखाना की खेती की काफी संभावनाएं है, लेकिन इसके लिए सरकार के प्रोत्साहन की जरुरत है. उन्होंने सरकार की ओर से मखाना को लेकर किए गए घोषणा पर संतोष जताते हुए कहा कि सरकार द्वारा मखाना की खेती को प्रोत्साहन देने की बात कहने से अब कुछ आशा जगी है. क्योंकि वह तीन साल से मखाना की खेती कर रहे हैं. पिछले साल बाढ़ आ जाने से काफी नुकसान हुआ था, लेकिन सरकारी सहायता नहीं मिल सकी थी.

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मजदूर

दशको पूर्व चंपारण में होती थी मखाना की खेती
बता दें कि कई दशक पूर्व चंपारण परिक्षेत्र में धनौती नदी के अलावा विभिन्न तालाबों में मखाना की खेती होती थी, लेकिन समय के साथ मखाना के फल को निकाले वाले स्किल्ड मजदूरों की कमी और नदी में गाद भर जाने से चंपारण में मखाना की खेती धीरे-धीरे समाप्त हो गई. लेकिन अब सरकार की तरफ से मखाना को लेकर प्रोत्साहन नीति बनाने की बात कहने के बाद किसनों के बीच एक उम्मीद जगी है. क्योंकि सरकार के प्रयास से विभिन्न तरह के जलश्रोत से परिपूर्ण चंपारण को फिर से मखाना की खेती का हब बनाने में मदद मिलेगा. साथ हीं मिथिलांचल के बाद चंपारण परिक्षेत्र मखाना उत्पादन में अपना पहचान बनाने में सफल होगा.

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मजदूर

मोतिहारी : केवल मिथिलांचल में होने वाली मखाना की खेती अब पूर्वी चंपारण जिले में भी होने लगी है. पिछले तीन साल से जिले के बंजरिया प्रखंड में मखाना की खेती किसान ललन कुमार कर रहे हैं. हालांकि, मखाना की खेती को लेकर किसी तरह का सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिलने के बावजूद किसान सरकार की घोषणा के बाद आशान्वित दिख रहे हैं. मृतप्राय हो चुकी धनौती नदी के क्षेत्र को पट्टा पर लेकर लगभग 100 एकड़ में मखाना की खेती हो रही है. अनुभवहीन होने के कारण पहले साल में किसान सिर्फ 100 क्विंटल मखाना के गुड़िया का उत्पादन कर सके, जबकि दूसरे साल बाढ़ के कारण मात्र 45 क्विंटल हीं गुड़िया निकाला जा सका.

देखें पूरी रिपोर्ट

'मखाना की खेती में लगती काफी मेहनत'
दरअसल, मखाना की बीज से लेकर पौधे तक में नुकीले कांटे होते हैं. पानी के अंदर से मखाना का गुड़िया निकालने वाले स्किल्ड मजदूर भी चंपारण में नहीं हैं. लगभग दो से तीन स्थानीय मजदूर हैं, जो मखाना के गुड़िया को निकालते हैं. मजदूर रामबरण महतो ने मखाना के गुड़िया को निकालने के तरीका को दिखाते हुए बताया कि सावन, भाद्रपद और आश्विन मास में गुड़िया को निकाला जाता है, जब नदी या तालाब में पानी भरा रहता है. वहीं, मजदूर किशोर महतो ने बताया कि मखाना का फल पानी के अंदर झड़ कर कीचड़ में चला जाता है, जिसे निकालने के लिए बांस का बड़ा-बड़ा आखा बनाकर पानी के अंदर प्रवेश करना पड़ता है. फिर कीचड़ के अंदर से उसके फल को निकाला जाता है. मखाना के फल को पानी के अंदर से निकालने की विधि सिखकर काम करने वाले मजदूर मुनी महतो ने बताया कि बिना ट्रेनिंग लिए मखाना का फल दूसरा कोई पानी से नहीं निकाल सकता है.

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मखाना की खेती

'मखाना को लेकर किए गए घोषणा से संतोष'
मखाना की खेती करने वाले किसान ललन कुमार ने बताया कि चंपारण में मखाना की खेती की काफी संभावनाएं है, लेकिन इसके लिए सरकार के प्रोत्साहन की जरुरत है. उन्होंने सरकार की ओर से मखाना को लेकर किए गए घोषणा पर संतोष जताते हुए कहा कि सरकार द्वारा मखाना की खेती को प्रोत्साहन देने की बात कहने से अब कुछ आशा जगी है. क्योंकि वह तीन साल से मखाना की खेती कर रहे हैं. पिछले साल बाढ़ आ जाने से काफी नुकसान हुआ था, लेकिन सरकारी सहायता नहीं मिल सकी थी.

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मजदूर

दशको पूर्व चंपारण में होती थी मखाना की खेती
बता दें कि कई दशक पूर्व चंपारण परिक्षेत्र में धनौती नदी के अलावा विभिन्न तालाबों में मखाना की खेती होती थी, लेकिन समय के साथ मखाना के फल को निकाले वाले स्किल्ड मजदूरों की कमी और नदी में गाद भर जाने से चंपारण में मखाना की खेती धीरे-धीरे समाप्त हो गई. लेकिन अब सरकार की तरफ से मखाना को लेकर प्रोत्साहन नीति बनाने की बात कहने के बाद किसनों के बीच एक उम्मीद जगी है. क्योंकि सरकार के प्रयास से विभिन्न तरह के जलश्रोत से परिपूर्ण चंपारण को फिर से मखाना की खेती का हब बनाने में मदद मिलेगा. साथ हीं मिथिलांचल के बाद चंपारण परिक्षेत्र मखाना उत्पादन में अपना पहचान बनाने में सफल होगा.

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