बगहा: वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र परिसीमन में बदलाव के बाद 2008 में अस्तित्व में आया था. इससे पहले यह धनहा विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. इस विधानसभा क्षेत्र में कभी भी किसी एक पार्टी का वर्चस्व कायम नहीं हो पाया है. पिछली बार यहां से निर्दलीय उम्मीदवार को जीत हासिल हुई थी, ऐसे में इस बार तीन प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है.
वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र पर कभी भी एक पार्टी का कब्जा नहीं रहा है. पश्चिमी चंपारण जिला के इंडो-नेपाल सीमा व यूपी सीमा सीमा पर स्थित है. 2002 परिसीमन के पूर्व यह धनहा विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. इस विधानसभा क्षेत्र की खासियत है कि यहां कभी भी किसी एक पार्टी का वर्चस्व कायम नहीं हो पाया और अब तक जिस प्रत्याशी की भी जीत हुई है, उसका मुकाबला अमूमन निर्दलीय प्रत्याशियों से ही रहा है. यही वजह है कि पिछले बार निर्दलीय विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ रिंकू सिंह को लोगों ने ताज पहनाया था.
साल | चुने गए विधायक का नाम | जीती हुई पार्टी का नाम |
1977 | हरदेव प्रसाद | कांग्रेस |
1980 | हरदेव प्रसाद | कांग्रेस |
1985 | नर्बदेश्वर प्रसाद कुशवाहा | लोक दल |
1990 | श्याम नारायण यादव | कांग्रेस |
1995 | विष्णु प्रसाद कुशवाहा | समता पार्टी |
2000 | राजेश सिंह | बसपा |
2005 | राजेश सिंह | आरजेडी |
2010 | राजेश सिंह | जदयू |
2015 | धीरेंद्र प्रताप सिंह | कांग्रेस |
'कई बार विधायक रहे हैं राजेश सिंह'
इस बार कांग्रेस प्रत्याशीवाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र से कई बार विधायक का ताज पहन चुके राजेश सिंह, इस बार कांग्रेस से प्रत्याशी हैं जबकि जदयू ने पिछले बार के निर्दलीय विजेता धीरेंद्र प्रताप सिंह को टिकट दिया है.
इस क्षेत्र से वैसे तो दर्जनों प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन मुख्य लड़ाई जदयू-कांग्रेस और लोजपा प्रत्याशी महेंद्र भारती के बीच है. महेंद्र भारती पूर्व में एडीएम रह चुके हैं. रिटायर होने के बाद लगातार राजद में सक्रिय रहे हैं, जब राजद ने टिकट नहीं दिया तो लोजपा के टिकट से इस बार त्रिकोणीय मुकाबला दे रहे हैं.
'गन, गण्डक और गन्ना की तबाही से जूझता रहा है इलाका'
दरअसल यह इलाका गण्डक नदी के किनारे बसा हुआ है, ऐसे में इस क्षेत्र के तहत 5 प्रखंडों में से चार प्रखण्ड (मधुबनी, पिपरासी, भितहा और ठकराहा) गण्डक दियारा पार उत्तरप्रदेश की सीमा से सटा है और एक प्रखण्ड बगहा मुख्यालय से सटे इंडो-नेपाल सीमा अंतर्गत आता है.
पहले यहां क्राइम मेन फैक्टर रहा है, साथ ही कटाव की समस्याओं से भी दियारावर्ती क्षेत्र के लोग जूझते रहे हैं. इलाके की एक और मुख्य समस्या गन्ना की खेती रही है. यह इलाका शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ा इलाका माना जाता है. आज के दौर में भी उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज में पढ़ाई करने हेतु छात्र-छत्राओं को यूपी के कॉलेजों या 150 किमी दूर जिला मुख्यालय बेतिया का रुख करना पड़ता है.
'मिनी चंबल के नाम से मशहूर था इलाका'
विधानसभा क्षेत्र में तकरीबन 3 लाख 31 हजार मतदाता हैं. जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 78 हजार और महिला मतदाता 1 लाख 53 हजार है. मतदान केंद्रों की संख्या 462 है. बता दें कि यह इलाका मिनी चंबल के नाम से प्रसिद्ध था. ऐसे में इस इलाके से कई बार विधायक रह चुके राजेश सिंह ने क्राइम फैक्टर को चुनावी मुद्दा बनाकर एक फाइटर ग्रुप बनाया था जो काफी चर्चित रहा था.
इसी मुद्दे पर वह इलाके का प्रतिनिधत्व भी करते रहे. लेकिन मौजूदा हालात में लोग अन्य विकल्प की तलाश में हैं. यही कारण है कि यहां के लोग बुनियादी सुविधाओं से अभी भी दूर हैं. ऐसे में लोजपा प्रत्याशी का कहना है कि दो शेरों के बीच इस बार लोजपा कड़ी टक्कर देगी.