दरभंगा: मिथिला की हज़ारों साल पुरानी पांडुलिपियों को संरक्षित करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया गया है. ललित नारायण मिथिला विवि के पांडुलिपि संरक्षण और संवर्द्धन केंद्र को बड़ी कामयाबी मिली है. अपनी स्थापना के महज चार महीने बाद ही केंद्र ने एक जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपि को अगले दो सौ साल के लिये संरक्षित कर दिया है. राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, नयी दिल्ली की ओर से विवि में इन दोनों केंद्रों की स्थापना की गयी है. इसका उद्घाटन पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन ने इसी साल 12 मार्च को किया था.
पुरानी पांडुलिपि को किया गया ठीक
विशेषज्ञ संतोष झा ने बताया कि लक्ष्मेश्वर पब्लिक लाइब्रेरी से मिली पांडुलिपि काफी खराब स्थिति में थी, उसमें ब्लैक स्पॉट थे. दीमक कई जगह से खा गए थे और कई जगह से लिखावट मिट गयी थी. इन सबको वैज्ञानिक ढंग से ठीक किया गया और पांडुलिपि को मूल स्वरूप में लाया गया है. उनका कहना है कि अब यह अगले दो सौ साल तक संरक्षित रहेगी.
विवि के कुलपति के अनुसार
कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि केंद्र ने थोड़े समय में ही अच्छा काम किया है, यह एक पड़ाव है. आने वाले समय में यह केंद्र मिथिला की पांडुलिपियों के रूप में बिखरे पड़े ज्ञान को संरक्षित करने में कामयाब होगा.
ऐतिहासिक धरोहर को किया गया संरक्षित
बता दें कि मिथिला में आदि कवि विद्यापति, वाचस्पति मिश्र और भरत मुनि समेत कई विद्वानों के मूल ग्रंथ पांडुलिपियों के रूप में मौजूद हैं. ये ग्रंथ भोजपत्र, ताड़पत्र और बांसपत्र पर लिखे हुए हैं. ये पुरानी लाइब्रेरी, मंदिर और मठों समेत आम लोगों के घरों तक में बिखरे पड़े हैं. केंद्र के माध्यम से नष्ट होने की कगार पर पड़ी पांडुलिपियों के संरक्षण की योजना है. ताकि इस दुर्लभ ज्ञान को नयी पीढ़ी तक पहुंचाया जा सके.