दरभंगाः इस साल की बाढ़ से बिहार में सबसे ज्यादा नुकसान दरभंगा जिले में हुआ है. यहां के 18 में से 15 प्रखंडों की 20 लाख आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई है. बड़े पैमाने पर फसलों को नुकसान हुआ है. लोगों के घर गिर गए हैं और डूबने से भी लोगों की मौतें हुई हैं.
बाढ़ का कहर
इस नुकसान का ग्राउंड पर आंकलन करने के लिए दिल्ली से भारत सरकार के गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव के नेतृत्व में 3 सदस्यीय केंद्रीय टीम गुरुवार को दरभंगा पहुंची थी. टीम ने केवटी प्रखंड के असराहा और खिरमा गांवों में लोगों से बात कर नुकसान का जायजा लिया. अपने सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध ईटीवी भारत की टीम भी उस समय असराहा गांव में मौजूद थी. ईटीवी भारत संवाददाता विजय कुमार श्रीवास्तव ने उन खेतों में पहुंच कर किसानों से बात की जिनमें किसानों ने फसल तो लगाई थी लेकिन बाढ़ के बाद अब उनमें केवल बर्बादी के निशान बचे थे. हमने केंद्रीय टीम के इस दौरे से बाढ़ प्रभावित लोगों की उम्मीदों पर बात की.
किसानों को केंद्रीय टीम से कोई उम्मीद नहीं
स्थानीय किसान मो. हुसैन ने कहा कि केंद्रीय टीम से कोई उम्मीद किसानों को नहीं है. ये बस एक सरकारी औपचारिकता है. जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं है. उन्होंने कहा कि उनके इलाके में तकरीबन हर साल बाढ़ आती है. यहां हर साल बड़े पैमाने पर फसल समेत जान-माल का नुकसान होता है. यहां धान की फसल लोग लगाते जरूर हैं. लेकिन शायद ही किसी साल होती है. बाढ़ आकर पूरी फसल डुबो देती है. फसल क्षति का मुआवजा असली गरीब किसानों को कभी नहीं मिलता. उन्हीं को मिलता है जिनकी पहुंच होती है. यहां तक कि बाढ़ राहत की 6 हजार की राशि भी कम ही लोगों को मिलती है. इस साल भी करीब 150 लोगों का नाम सूची में पेंडिंग पड़ा है.
किसानों को नहीं मिलता मुआवजा
स्थानीय सहदेव चौपाल ने कहा कि वे केंद्रीय टीम के सामने गए थे. टीम के लोगों ने उनसे फसल क्षति मुआवजे के बारे में पूछा था जो कि उन्हें कभी नहीं मिलता है. उन्होंने कहा कि वे बटाई पर खेती करते हैं. खाद-बीज के लिए भी पैसा नहीं मिलता है. फसल क्षति मुआवजे के लिए जमीन के कागजात की जरूरत पड़ती है. वे कहां से जमीन के कागजात लाएंगे कि उन्हें मुआवजा मिलेगा.