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धान की फसल की सूखने लगी है बाली, अज्ञात बीमारी से बक्सर के किसान परेशान - Unknown disease in paddy crop in Buxar

पहले सुखाड़ और अब फसलों में बीमारी ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी है. बक्सर में धान की फसल में अज्ञात बीमारी (Pest sucking in paddy crop) का प्रकोप बढ़ गया है. पढ़ें पूरी खबर...

फसलों में बीमारी ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी
फसलों में बीमारी ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी
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Published : Oct 8, 2022, 11:15 AM IST

बक्सर: बिहार के बक्सर में धान की फसल में अज्ञात बीमारी (Unknown disease in paddy crop in Buxar) से पूरे जिले के किसान परेशान हैं. कुछ ही दिनों पहले धान की फसल में अज्ञात बीमारी की वजह से धान की बाली सुखने लगी है. इस मामले में डीएम के निर्देश के बाद भी पंद्रह दिनों के बाद किसानों की मदद को कोई अधिकारी नहीं आया है. इसीलिए जिल के किसानों में नाराजगी भी देखी जा रही है.

इसे भी पढ़ें- मायानगरी छोड़ अपने गांव लौटे राजेश, बत्तख पालन और मसाले की खेती से अब होती है इतनी कमाई


धान की फसल में रोग से किसान परेशान: जिले में प्रकृति के मार से बेहाल अन्नदाता कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ से परेशान थे लेकिन अब अज्ञात बीमारियों की दस्तक से परेशान हो गये हैं. इस मामले पर सरकार से लेकर सरकारी कर्मी तक सारे लोग बस एसी कमरे में बैठकर ही किसानों के खेतों की मेड़ तक की सारी सुविधा मुहैया कराने में जुटे हैं. जिले के जिस कृषि वैज्ञानिक को किसानों की समस्याओं को सुनने और सहायता करने के लिए जिला कृषि विज्ञान केंद्र में रखा गया है. उनके पास एक सरकारी वाहन तक नहीं है. जिससे कि किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए वह खेतों तक जा सके. हालांकि सरकार किसानों की आमदनी दुगनी करने की दावा करती है.

खेती में दिलचस्पी दिखाने वाले युवा किसान मायूस: कोरोना काल की वजह से रोजी रोजगार बंद होने के बाद घर वापस आने वाले अधिकांश युवा आत्मनिर्भरता के लिए खेती में दिलचस्पी दिखाना शुरू किये लेकिन धीरे धीरे सिस्टम की मार से परेशान होकर वह फिर से खेती बाड़ी छोड़कर निजी कंपनियो में काम करने के लिए पलायन करने लगे. उन युवा किसानों की मानें तो 30 प्रतिशत सम्भ्रांत किसानों के लिए ही पूरा सिष्टम काम करता है. कृषि विभाग के बड़े अधिकारी से लेकर मंत्री तक उन्हीं किसानों के दरवाजे पर दस्तक देते है. जो छोटे किसानों को कृषि कार्यालय में प्रवेश करने से पहले ही दरवाजे पर खड़ा गार्ड भी भगा देता है. ऐसे में हमारे हालात कैसे बदलेंगे. आजादी के 75 साल बाद भी हम राजनेताओं और अधिकारियों के मेहरबानी के मोहताज बने है.

फसल के साथ सूखने लगी किसानों की उम्मीद: किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए जब ईटीवी भारत की टीम खेतों में काम कर रहे किसानों से बात की, तब किसानों ने बताया कि 25 मई से रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत हुई थी , इसी नक्षत्र में अधिकांस किसानों ने धान की बिचड़ा खेतो में लगाया था। लेकिन मई, जून,जुलाई,महीने में बारिश ही नही हुई , भयंकर सुखाड़ के कारण ट्यूबेल भी फेल कर गया नहरों में पानी ही नही आई.

"25 मई से रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत हुई. इसी नक्षत्र में अधिकांश किसानों ने धान की बिचड़ा खेतों में लगाया था. लेकिन मई, जून, जुलाई, महीने में बारिश ही नही हुई. जिससे भयंकर सुखाड़ के कारण ट्यूबेल भी फेल कर गया. नहरों में पानी ही नही आईं, इस तरह की परिस्थिति के बाद भी कई किसानों ने खेतों में इस उम्मीद से फसल लगाया कि बारिश होगी लेकिन बारिश नहीं हुई. अगस्त महीने में बारिश हुई और नहरों में पानी आई फिर सितंबर महीने में बारिश से फसलों की स्थिति सुधरने लगी. लेकिन अब खेतों में लगाये हुए धान के फसल की बाली निकलने लगी और सुखने लगी है. जब हमलोग कृषि कार्यालय में फोन करते हैं, तब वहां पर कोई फोन तक नही उठाता है'.- भोलू केशरी, युवा किसान

जिलाधिकारी को कराया था अवगत: किसानों की इस समस्या को दूर करने के लिए जिलाधिकारी, जिला कृषि पदाधिकारी से ईटीवी भारत की टीम ने खेतों में सुख रहे धान की बाली की तस्वीर भी साझा की. अधिकारियों ने टास्क फोर्स की बैठक में चर्चा कर अखबारों और टेलीविजन में दवाओं का नाम प्रकाशित कराकर अपना पल्ला झाड़ लिया. लेकिन इसपर किसी ने ध्यान नही दिया कि खेतो में काम करने वाले कितने प्रतिशत किसानों के घर पर अखबार भी नहीं आता होगा. वह कहां से बैठकर टेलीविजन देखते होंगे..? जिलाधिकारी और जिला कृषि पदाधिकारी के आश्वासन के बाद भी किसानों की समस्याओं को जानने का प्रयास किसी ने नहीं किया.


जिलाधिकारी ने कहा दवाओं की सूची प्रकाशित: किसानों की समस्या को लेकर जब जिलाधिकारी अमन समीर से पूछा गया तब उन्होंने बताया कि इस समस्या पर पदाधिकारियों से चर्चा के बाद दवाओं की सूची जारी की गई है. जिला कृषि पदाधिकारी को इस मामले से अवगत कराया गया है. कृषि वैज्ञानिक खुद खेतों में जाकर किसानों की समस्याओ को देखेंगे. वहीं जब जिला पदाधिकारी से पूछा गया कि कृषि विज्ञान केंद्र के पास वाहन ही नहीं है तो वे लोग खेतों तक कैसे जाएंगे. तब उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था करना जिला कृषि पदाधिकारी का काम है.

"इस समस्या पर पदाधिकारियों से चर्चा के बाद दवाओं की सूची जारी की गई है. जिला कृषि पदाधिकारी को इस मामले से अवगत कराया गया है. कृषि वैज्ञानिक खुद खेतों में जाकर किसानों की समस्याओ को देखेंगे." - अमन समीर, डीएम




जिला कृषि पदाधिकारी से बात करने पर बताया कि 24 घंटे के अंदर किसानों के खेतों तक कृषि वैज्ञानिक जाएंगे. लेकिन हैरानी की बात है कि आज 15 दिन से बाद भी किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए कोई भी अधिकारी किसानों की फसल को देखने नही आया. कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर मान्धाता सिंह ने बताया कि "दो वजह से बालियां सूख रही है. जब चूसक किट फसल में लग जाते है या फिर फसल में तना छेदक बीमारी लग जाती है. जिसका उपचार कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कर किसान कर सकते है".- डॉक्टर मान्धाता सिंह, कृषि वैज्ञानिक

गौरतलब है कि राज्य सरकार में रहे पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कृषि विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर प्रहार किया था कि उसके बाद फजीहत होता देख महागठबंधन की सरकार ने उनसे इस्तीफा ले लिया. जिससे साफ है कि प्रदेश में कृषि और किसानों के नाम पर बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया जाता है लेकिन वह किसानों के खेतों में नहीं अधिकारियों के जेब गर्म करता है.


इसे भी पढ़ें: बांका: धान की फसल में लगने वाली बीमारी से किसान परेशान, कई गांव प्रभावित

बक्सर: बिहार के बक्सर में धान की फसल में अज्ञात बीमारी (Unknown disease in paddy crop in Buxar) से पूरे जिले के किसान परेशान हैं. कुछ ही दिनों पहले धान की फसल में अज्ञात बीमारी की वजह से धान की बाली सुखने लगी है. इस मामले में डीएम के निर्देश के बाद भी पंद्रह दिनों के बाद किसानों की मदद को कोई अधिकारी नहीं आया है. इसीलिए जिल के किसानों में नाराजगी भी देखी जा रही है.

इसे भी पढ़ें- मायानगरी छोड़ अपने गांव लौटे राजेश, बत्तख पालन और मसाले की खेती से अब होती है इतनी कमाई


धान की फसल में रोग से किसान परेशान: जिले में प्रकृति के मार से बेहाल अन्नदाता कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ से परेशान थे लेकिन अब अज्ञात बीमारियों की दस्तक से परेशान हो गये हैं. इस मामले पर सरकार से लेकर सरकारी कर्मी तक सारे लोग बस एसी कमरे में बैठकर ही किसानों के खेतों की मेड़ तक की सारी सुविधा मुहैया कराने में जुटे हैं. जिले के जिस कृषि वैज्ञानिक को किसानों की समस्याओं को सुनने और सहायता करने के लिए जिला कृषि विज्ञान केंद्र में रखा गया है. उनके पास एक सरकारी वाहन तक नहीं है. जिससे कि किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए वह खेतों तक जा सके. हालांकि सरकार किसानों की आमदनी दुगनी करने की दावा करती है.

खेती में दिलचस्पी दिखाने वाले युवा किसान मायूस: कोरोना काल की वजह से रोजी रोजगार बंद होने के बाद घर वापस आने वाले अधिकांश युवा आत्मनिर्भरता के लिए खेती में दिलचस्पी दिखाना शुरू किये लेकिन धीरे धीरे सिस्टम की मार से परेशान होकर वह फिर से खेती बाड़ी छोड़कर निजी कंपनियो में काम करने के लिए पलायन करने लगे. उन युवा किसानों की मानें तो 30 प्रतिशत सम्भ्रांत किसानों के लिए ही पूरा सिष्टम काम करता है. कृषि विभाग के बड़े अधिकारी से लेकर मंत्री तक उन्हीं किसानों के दरवाजे पर दस्तक देते है. जो छोटे किसानों को कृषि कार्यालय में प्रवेश करने से पहले ही दरवाजे पर खड़ा गार्ड भी भगा देता है. ऐसे में हमारे हालात कैसे बदलेंगे. आजादी के 75 साल बाद भी हम राजनेताओं और अधिकारियों के मेहरबानी के मोहताज बने है.

फसल के साथ सूखने लगी किसानों की उम्मीद: किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए जब ईटीवी भारत की टीम खेतों में काम कर रहे किसानों से बात की, तब किसानों ने बताया कि 25 मई से रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत हुई थी , इसी नक्षत्र में अधिकांस किसानों ने धान की बिचड़ा खेतो में लगाया था। लेकिन मई, जून,जुलाई,महीने में बारिश ही नही हुई , भयंकर सुखाड़ के कारण ट्यूबेल भी फेल कर गया नहरों में पानी ही नही आई.

"25 मई से रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत हुई. इसी नक्षत्र में अधिकांश किसानों ने धान की बिचड़ा खेतों में लगाया था. लेकिन मई, जून, जुलाई, महीने में बारिश ही नही हुई. जिससे भयंकर सुखाड़ के कारण ट्यूबेल भी फेल कर गया. नहरों में पानी ही नही आईं, इस तरह की परिस्थिति के बाद भी कई किसानों ने खेतों में इस उम्मीद से फसल लगाया कि बारिश होगी लेकिन बारिश नहीं हुई. अगस्त महीने में बारिश हुई और नहरों में पानी आई फिर सितंबर महीने में बारिश से फसलों की स्थिति सुधरने लगी. लेकिन अब खेतों में लगाये हुए धान के फसल की बाली निकलने लगी और सुखने लगी है. जब हमलोग कृषि कार्यालय में फोन करते हैं, तब वहां पर कोई फोन तक नही उठाता है'.- भोलू केशरी, युवा किसान

जिलाधिकारी को कराया था अवगत: किसानों की इस समस्या को दूर करने के लिए जिलाधिकारी, जिला कृषि पदाधिकारी से ईटीवी भारत की टीम ने खेतों में सुख रहे धान की बाली की तस्वीर भी साझा की. अधिकारियों ने टास्क फोर्स की बैठक में चर्चा कर अखबारों और टेलीविजन में दवाओं का नाम प्रकाशित कराकर अपना पल्ला झाड़ लिया. लेकिन इसपर किसी ने ध्यान नही दिया कि खेतो में काम करने वाले कितने प्रतिशत किसानों के घर पर अखबार भी नहीं आता होगा. वह कहां से बैठकर टेलीविजन देखते होंगे..? जिलाधिकारी और जिला कृषि पदाधिकारी के आश्वासन के बाद भी किसानों की समस्याओं को जानने का प्रयास किसी ने नहीं किया.


जिलाधिकारी ने कहा दवाओं की सूची प्रकाशित: किसानों की समस्या को लेकर जब जिलाधिकारी अमन समीर से पूछा गया तब उन्होंने बताया कि इस समस्या पर पदाधिकारियों से चर्चा के बाद दवाओं की सूची जारी की गई है. जिला कृषि पदाधिकारी को इस मामले से अवगत कराया गया है. कृषि वैज्ञानिक खुद खेतों में जाकर किसानों की समस्याओ को देखेंगे. वहीं जब जिला पदाधिकारी से पूछा गया कि कृषि विज्ञान केंद्र के पास वाहन ही नहीं है तो वे लोग खेतों तक कैसे जाएंगे. तब उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था करना जिला कृषि पदाधिकारी का काम है.

"इस समस्या पर पदाधिकारियों से चर्चा के बाद दवाओं की सूची जारी की गई है. जिला कृषि पदाधिकारी को इस मामले से अवगत कराया गया है. कृषि वैज्ञानिक खुद खेतों में जाकर किसानों की समस्याओ को देखेंगे." - अमन समीर, डीएम




जिला कृषि पदाधिकारी से बात करने पर बताया कि 24 घंटे के अंदर किसानों के खेतों तक कृषि वैज्ञानिक जाएंगे. लेकिन हैरानी की बात है कि आज 15 दिन से बाद भी किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए कोई भी अधिकारी किसानों की फसल को देखने नही आया. कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर मान्धाता सिंह ने बताया कि "दो वजह से बालियां सूख रही है. जब चूसक किट फसल में लग जाते है या फिर फसल में तना छेदक बीमारी लग जाती है. जिसका उपचार कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कर किसान कर सकते है".- डॉक्टर मान्धाता सिंह, कृषि वैज्ञानिक

गौरतलब है कि राज्य सरकार में रहे पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कृषि विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर प्रहार किया था कि उसके बाद फजीहत होता देख महागठबंधन की सरकार ने उनसे इस्तीफा ले लिया. जिससे साफ है कि प्रदेश में कृषि और किसानों के नाम पर बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया जाता है लेकिन वह किसानों के खेतों में नहीं अधिकारियों के जेब गर्म करता है.


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