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ऑटिज्म पीड़ित बच्चों से स्नेहपूर्ण व्यवहार करें अभिभावक: डॉ. संजय कुमार - बक्सर में प्रभात फेरी

स्वपरायणता (ऑटिज्म) से ग्रसित दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण और जागरूकता के लिए प्रभात फेरी निकाली गई. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से पीड़ित लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके.

ऑटिज्म
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Published : Apr 3, 2021, 8:52 AM IST

बक्सर: जिला मुख्यालय में शुक्रवार को जिला दिव्यांग सशक्तिकरण कोषांग के द्वारा स्वपरायणता (ऑटिज्म) से ग्रसित दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण और जागरूकता के लिए प्रभात फेरी निकाली गई. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से पीड़ित लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके.

क्या कहते हैं अधिकारी
दिव्यांग सशक्तिकरण कोषांग की नोडल अधिकारी पूनम कुमारी ने बताया कि ज्यादातर लोग ऑटिज्म के शिकार बच्चों को पागल समझ उनसे दूरी बनाते हैं. इनमें दिव्यांग बच्चे भी शामिल हैं. जिनकी शारीरिक बाधाओं को देखकर लोग उनसे दूरी बना लेते हैं.

ऐसा करने से वह खुद को समाज की मुख्य धारा से अलग कर लेते हैं, जो उनके भविष्य व उनकी क्षमता को अंधकार की ओर धकेलता है. उन्होंने जिले के सभी लोगों से ऑटिज्म के शिकार बच्चों व दिव्यांगजनों को सामान्य तरीके से देखने की अपील की. जिससे उनमें भी आगे बढ़ने की आशा उत्पन्न हो और उनके अंदर की प्रतिभा बाहर निकल कर आए.

बचपन में नजर आने लगते हैं लक्षण
सिविल सर्जन डॉ. जितेंद्र ने बताया की ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है. जिसके लक्षण बचपन से ही नजर आने लगते हैं. इसमें पीड़ित बच्चों का विकास धीरे-धीरे होता है. यह रोग बच्चे के मानसिक विकास को रोक देता है. ऐसे बच्चे समाज में घुलने-मिलने में हिचकते हैं.

सामान्य तौर पर ऐसे बच्चों को उदासीन माना जाता है, लेकिन कुछ मामलों में ये लोग अद्भुत प्रतिभा वाले होते हैं. इन्हें ऑटिस्ट कहते हैं. कई बार गर्भावस्था के दौरान खानपान सही न होने से भी बच्चे को ऑटिज्म से ग्रसित होने की संभावना हो सकती है.

उन्होंने बताया एक बच्चे को अपने माता, पिता का समय और परिवार के बुजुर्गों का ध्यान और प्यार चाहिए होता है। इससे वह सुरक्षित और आत्मनिर्भर महसूस करता है. बच्चों को टीबी, मोबाइल व टैबलेट से दूर रखना चाहिए। इनके स्थान पर उनमें खिलौनों, किताबों आदि की आदत डालनी चाहिए.

ये भी पढ़ें: नीतीश के विधायक ने कहा- 'मुख्यमंत्री जी आपकी पुलिस दारू पीती है...क्या कारण है कि आप ध्यान नहीं दे रहे'

एएसडी के लिए प्रारंभिक उपचार महत्वपूर्ण
सदर अस्पताल के प्रभारी मनोचिकित्सक डॉ. संजय कुमार ने बताया ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) के लिए प्रारंभिक उपचार महत्वपूर्ण है. क्योंकि उचित देखभाल नए कौशल सीखने व उनकी सबसे अधिक ताकत बनाने में मदद करते हुए व्यक्तियों की कठिनाइयों को कम कर सकती है.

आमतौर पर छह माह के बच्चे मुस्कुराना, उंगली पकड़ना और आवाज पर प्रतिक्रिया देना सीख लेते हैं, लेकिन जिन बच्चों में ऑटिज्म की शिकायत होती है. वह ऐसा नहीं कर पाते हैं. इसके बचाव के लिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान नियमित तौर पर मेडिकल चेकअप करानी चाहिए. बच्चे के पैदा होने से छह माह तक उनकी आदतों पर गौर करें.

बक्सर: जिला मुख्यालय में शुक्रवार को जिला दिव्यांग सशक्तिकरण कोषांग के द्वारा स्वपरायणता (ऑटिज्म) से ग्रसित दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण और जागरूकता के लिए प्रभात फेरी निकाली गई. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से पीड़ित लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके.

क्या कहते हैं अधिकारी
दिव्यांग सशक्तिकरण कोषांग की नोडल अधिकारी पूनम कुमारी ने बताया कि ज्यादातर लोग ऑटिज्म के शिकार बच्चों को पागल समझ उनसे दूरी बनाते हैं. इनमें दिव्यांग बच्चे भी शामिल हैं. जिनकी शारीरिक बाधाओं को देखकर लोग उनसे दूरी बना लेते हैं.

ऐसा करने से वह खुद को समाज की मुख्य धारा से अलग कर लेते हैं, जो उनके भविष्य व उनकी क्षमता को अंधकार की ओर धकेलता है. उन्होंने जिले के सभी लोगों से ऑटिज्म के शिकार बच्चों व दिव्यांगजनों को सामान्य तरीके से देखने की अपील की. जिससे उनमें भी आगे बढ़ने की आशा उत्पन्न हो और उनके अंदर की प्रतिभा बाहर निकल कर आए.

बचपन में नजर आने लगते हैं लक्षण
सिविल सर्जन डॉ. जितेंद्र ने बताया की ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है. जिसके लक्षण बचपन से ही नजर आने लगते हैं. इसमें पीड़ित बच्चों का विकास धीरे-धीरे होता है. यह रोग बच्चे के मानसिक विकास को रोक देता है. ऐसे बच्चे समाज में घुलने-मिलने में हिचकते हैं.

सामान्य तौर पर ऐसे बच्चों को उदासीन माना जाता है, लेकिन कुछ मामलों में ये लोग अद्भुत प्रतिभा वाले होते हैं. इन्हें ऑटिस्ट कहते हैं. कई बार गर्भावस्था के दौरान खानपान सही न होने से भी बच्चे को ऑटिज्म से ग्रसित होने की संभावना हो सकती है.

उन्होंने बताया एक बच्चे को अपने माता, पिता का समय और परिवार के बुजुर्गों का ध्यान और प्यार चाहिए होता है। इससे वह सुरक्षित और आत्मनिर्भर महसूस करता है. बच्चों को टीबी, मोबाइल व टैबलेट से दूर रखना चाहिए। इनके स्थान पर उनमें खिलौनों, किताबों आदि की आदत डालनी चाहिए.

ये भी पढ़ें: नीतीश के विधायक ने कहा- 'मुख्यमंत्री जी आपकी पुलिस दारू पीती है...क्या कारण है कि आप ध्यान नहीं दे रहे'

एएसडी के लिए प्रारंभिक उपचार महत्वपूर्ण
सदर अस्पताल के प्रभारी मनोचिकित्सक डॉ. संजय कुमार ने बताया ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) के लिए प्रारंभिक उपचार महत्वपूर्ण है. क्योंकि उचित देखभाल नए कौशल सीखने व उनकी सबसे अधिक ताकत बनाने में मदद करते हुए व्यक्तियों की कठिनाइयों को कम कर सकती है.

आमतौर पर छह माह के बच्चे मुस्कुराना, उंगली पकड़ना और आवाज पर प्रतिक्रिया देना सीख लेते हैं, लेकिन जिन बच्चों में ऑटिज्म की शिकायत होती है. वह ऐसा नहीं कर पाते हैं. इसके बचाव के लिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान नियमित तौर पर मेडिकल चेकअप करानी चाहिए. बच्चे के पैदा होने से छह माह तक उनकी आदतों पर गौर करें.

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