बक्सरः 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही एनडीए के सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी और जेडीयू के नेता आमने-सामने आ गए हैं. एक तरफ जहां एलजेपी के नेता बिहार में खुद को जेडीयू से मजबूत समझ रहे हैं. वहीं जेडीयू के नेता इशारों-इशारों में एलजेपी को हद में रहने की नसीहत दे रहे हैं.
दोनों दलों के बीच चल रहे वार-पटवार के इस खेल में बीजेपी पूरी तरह से खामोश हैं. क्योंकि वह जानती है कि पिछड़ों का वोट लेने के लिए रामविलास पासवान जरूरी हैं. वहीं, बिहार में चुनाव जीतने के लिए नीतीश कुमार का चेहरा भी चाहिए. ऐसे में बीजेपी के नेता जेडीयू और एलजेपी के बीच चल रहे इस जुबानी जंग पर मूक दर्शक बने हुए हैं.
एलजेपी की दो टूक
एलजेपी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि लोक जनशक्ति पार्टी के नेताओं का गठबंधन बीजेपी के साथ है. इसके अलावा किसी दल के नेता को वह अपना नेता नहीं मानती है. एनडीए में एलजेपी को तरजीह नहीं दी गई तो उसे महागठबंधन भी अपने खेमे में लेने को तैयार है. पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह '15 साल बनाम 15 साल' पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है. 'बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट' के मूल मंत्र के साथ ही एलजेपी चुनाव में उतरेगी.
जेडीयू का पलटवार
एलजेपी के अप्रत्यक्ष रूप से दी गई धमकी पर पलटवार करते हुए जेडीयू नेता अशोक कुमार सिंह ने कहा कि गठबंधन का स्वरूप क्या होगा वह तो भविष्य में तय होगा. लेकिन एनडीए के सभी दल यह जान ले कि नीतीश कुमार बिहार में सियासत के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं और उनसे बड़ा राजनीति का चाणक्य कोई नहीं है.
महागठबंधन की है नजर
गौरतलब है कि एलजेपी और जेडीयू बीच चल रहे इस जुबानी जंग पर महागठबंधन के नेता अपनी नजर बनाए हुए हैं. अभी से ही महागठबंधन के नेता स्थानीय स्तर पर सीटों का ऑफर देना शुरू कर दिए हैं. हालांकि एलजेपी ने यह साफ कर दिया है कि जिले में एक विधानसभा सीट पर वह चुनाव जरूर लड़ेंगे, चाहे वह किसी के साथ रहे.