पटना: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और दिवंगत नेता कर्पूरी ठाकुर की सादगी और ईमानदारी से जुड़े तमाम किस्से हैं. कभी उनके रिक्शे पर चलने वाली कहानी सुनाई जाती है. तो कभी फटा कोट पहनकर ऑस्ट्रिया जाने वाला किस्सा. आज 101वीं जयंती के मौके पर कर्पूरी ठाकुर याद किये जा रहे हैं. कर्पूरी ठाकुर ईमानदारी और सादगी के प्रतीक थे. उनकी ईमानदारी के कई किस्से हैं जो मिसाल हैं.
'द जननायक कर्पूरी ठाकुर' वॉयस ऑफ वॉइसलेस: 'द जननायक कर्पूरी ठाकुर' वॉयस ऑफ वॉइसलेस के लेखक संतोष सिंह और आदित्य अनमोल हैं. किताब में संतोष सिंह ने बिहार के पहले पिछड़े मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के जीवन के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला है. इस किताब में संतोष सिंह ने ठाकुर के जीवन से जुड़े कई किस्से सुनाए, जिनमें 1924 में कर्पूरी के रूप में जन्म लेने से लेकर उनकी राजनीति और विरासत तक की यात्रा को दर्शाया गया है.
फीस भरने के लिए भरना पड़े थे पानी: दरअसल, जननायक कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है. पढ़ाई के दौरान वह स्कूल की फीस जमा नहीं कर पा रहे थे. वह गांव के एक जमींदार के पास फीस के पैसे के लिए गए. जमींदार ने कहा कि पैसे चाहिए पैसे के लिए मेहनत करने होंगे. पैसे देने के बदले जमींदार ने उनसे 27 बाल्टी पानी से नहलवाने के बाद पैसे दिए.
जब पुआल में छुपकर ट्यूशन पढ़ते थे कर्पूरी ठाकुर: कर्पूरी ठाकुर के गांव पितौझिया में एक शिक्षक थे जो स्वर्ण जाति से आते थे .राजा गुरु जी सिर्फ सवर्ण जाति के लड़कों को पढ़ते थे.कर्पूरी ठाकुर ने उनसे पढ़ने का अनुरोध किया राजा गुरु जी सामाजिक दबाव के चलते पढ़ा नहीं सकते थे लेकिन उन्होंने बीच का रास्ता निकालाऔर कहा कि जहां मैं पढ़ता हूं वहां तुम खलिहान में आ जाना और पुआल में बैठकर चुपचाप सुनना. मैं जोर-जोर से बोलूंगा.इससे तुम्हारी पढ़ाई भी पूरे हो जाएगी. कर्पूरी ठाकुर ने इसी तरीके से बचपन में पढ़ाई पूरी की.
सिर्फ पांच लोग मैट्रिक पास हुए उनमें कर्पूरी भी थे: समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) में 1904 में सिर्फ एक व्यक्ति मैट्रिक पास था. 1934 में 2 और 1940 में 5 लोग मैट्रिक पास हुए थे. इनमें एक कर्पूरी ठाकुर थे. वे ऑस्ट्रिया जाने वाले डेलीगेशन में चुने गए. उनके पास कोट नहीं था. एक दोस्त से मांगा. कोट फटा था. कर्पूरी जी वही कोट पहनकर चले गए. वहां युगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा है. उन्हें नया कोट गिफ्ट किया.
चंद्रशेखर ने कर्पूरी ठाकुर को दी जननायक की उपाधि: कर्पूरी ठाकुर बनने से पहले जननायक कपूरी ठाकुर थे. एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी ने उन्हें कर्पूरी का नाम दिया. जनता के हित में काम किए जाने के कारण कर्पूरी ठाकुर जननायक कहे जाने लगे. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कर्पूरी ठाकुर को जननायक की उपाधि दी थी. कर्पूरी ठाकुर ने अपने राजनीतिक जीवन में जनता के लिए ढेरों ऐसे काम किया जो आज माइलस्टोन की तरह है.
कर्पूरी ठाकुर के आदर्श थे डॉ राम मनोहर लोहिया: जननायक कर्पूरी ठाकुर के लेखक संतोष सिंह कहते हैं कि 1952 तक डा राम मनोहर लोहिया कुछ नहीं कर पा रहे थे.1964 में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया. कर्पूरी ठाकुर जब लोहिया के साथ जुड़े तब डॉक्टर लोहिया की सियासत को धार मिला. डॉ लोहिया के आदर्शों को जमीन पर लाने का काम कर्पूरी ठाकुर ने किया. डॉक्टर लोहिया कहते थे कि अगर मुझे पांच कर्पूरी ठाकुर मिल जाए तो हम देश बदल देंगे.
'तुम्हारी खुशबू दूर-दूर तक फैलेगी' : 12वीं तक कर्पूरी ठाकुर का नाम कपूरी ठाकुर हुआ करता था. इससे जुड़ी हुई एक दिलचस्प कहानी है. कर्पूरी ठाकुर आठवीं में पढ़ते थे.समस्तीपुर के कृष्णा टॉकीज के पास स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान रामनंदन मिश्रा का भाषण चल रहा था. कर्पूरी ठाकुर ने भी वहां भाषण दिया. भाषण सुनकर रामनंदन मिश्र बहुत प्रभावित हुए और कर्पूरी ठाकुर से नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम कपूरी ठाकुर बताया रामनंदन मिश्रा ने कहा कि तुम कर्पूरी हो तुम्हारी खुशबू दूर-दूर तक फैलेगी तब से कपूरी ठाकुर कर्पूरी ठाकुर कहे जाने लगे.
सीएम के पिता को जमींदार ने लठैत से उठवाया: 1970 के दिसंबर में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने. उस समय समस्तीपुर दरभंगा का हिस्सा हुआ करता था. गांव के एक जमींदार ने कर्पूरी ठाकुर के पिता को बाल-दाढ़ी बनाने के लिए बुलावा भेजा, लेकिन वह तबीयत खराब होने के चलते नहीं गए. तब जमींदार नेअपने लठैत को यह कह कर भेजा कि गोकुल ठाकुर को पकड़ कर लाओ. लठैत जबरदस्ती उन्हें पकड़ कर जमींदार के पास ले गए. बात जब पुलिस प्रशासनतक पहुंची तो पुलिस ने जमींदार को गिरफ्तार करने पहुंची. यह बात जब कर्पूरी ठाकुर को पता चला तो उन्होंने पुलिस को फोन किया उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाए क्योंकि वह हमारे ग्रामीण है.
"जब कर्पूरी ठाकुर अपने 600 रुपये के बिल के लिए विधानसभा में क्लर्क के पास गए. क्लार्क ने कहा कि 600 में क्या होगा इसे 1300 कर दीजिए. कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अब मुझे पता चला कि भ्रष्टाचार कहां है. क्लार्क को कहा कि चुपचाप ₹600 का बिल दीजिए." -संतोष सिंह, लेखक, जननायक कर्पूरी ठाकुर
50 हजार चंदा नहीं लेकर सिर्फ 5000 लिए: चुनाव के समय एक बार कर्पूरी ठाकुर एक बड़े बिजनेसमैन के पास गए और उनसे चुनाव में चंदे के लिए कहा. सामने वाले ने पूछा कि कितना चंदा चाहिए. कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि मुझे ₹5000 चंदा चाहिए. सामने वाले ने ₹50000 निकाल कर दिए. तब कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि 5000 चंदा है लेकिन 50000 घूस है और ₹5000 लेकर वहां से चल दिए. इसी तरीके से कर्पूरी ठाकुर ने दिल्ली में अपने मित्र प्रोफेसर से से ₹500 की मांग की. मित्र जबरदस्ती ₹1000 देने लगे लेकिन बहुत जबरदस्ती के बाद कर्पूरी ठाकुर ने 750 रुपए लेना स्वीकार किया.
गरीब रिश्तेदारों को उस्तुरा खरीद कर देते कर्पूरी ठाकुर: जननायक कर्पूरी ठाकुर के पास उनके कई रिश्तेदार नौकरी के लिए जाते थे. एक करीबी रिश्तेदार जब उनके पास गए और नौकरी दिलाने की बात कही तो उन्होंने उन्हें ₹50 निकाल कर दिए और कहा कि कैंची और उस्तूरा खरीद लीजिए और नाई का कम कीजिए.
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