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ग्रहों की ऐसी स्थिति की वजह से इस बार 15 जनवरी को मनाई जा रही है मकर संक्रांति

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Published : Jan 15, 2020, 11:52 AM IST

मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. हिंदू पंचांग और धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्य का मकर राशी में प्रवेश 14 की शाम को हुआ. शास्त्रों के अनुसार रात में संक्रांति नहीं मनाते तो अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उत्सव मनाया जाना चाहिए. इसलिए मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जा रही है.

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गंगा घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़

बक्सर: मकर संक्रांति का पर्व परंपरागत रूप से पूरे देश में श्रद्धा, भक्ति और हर्षोल्लास के वातावरण में मनाया जा रहा है. श्रद्धालु सूर्य की आराधना कर रहे हैं और गंगा में डुबकी लगा रहे हैं. हिंदू धर्म में मकर संक्रांति की काफी मान्यता है, जिसमें दान, पुण्य किया जाता है और देवताओं को याद किया जाता है.

बता दें कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. हिंदू पंचांग और धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्य का मकर राशी में प्रवेश 14 की शाम को हुआ. शास्त्रों के अनुसार रात में संक्रांति नहीं मनाते तो अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उत्सव मनाया जाना चाहिए. इसलिए मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जा रही है.

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श्रद्धालुओं की भारी भीड़

पूरे देश में मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न रूपों में मनाया जाता है-

हरियाणा और पंजाब में मनाते है लोहड़ी
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले 13 जनवरी को ही मनाया जाता है. इस दिन अंधेरा होते ही अग्नि जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है. इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है. इस अवसर पर लोग, मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं. बेटियां घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं. नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है. इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है.

उत्तर प्रदेश में यह पर्व 'दान का पर्व है
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है. इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक महीने तक मेला लगता है. जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है. 14 जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है. 14 दिसंबर
से 14 जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है. माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है.

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दिवाकर मिश्रा, पंडित

संक्रांति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है. बागेश्वर में बड़ा मेला लगता है. वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला और अन्य स्थानों में भी होते हैं. इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों और पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है. इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा और रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है. समूचे उत्तर प्रदेश में इस पर्व को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. इस दिन खिचड़ी खाने और खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है.

बिहार में खिचड़ी के नाम से जानते है
बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है. इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है. महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल और नमक आदि चीजें सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं. तिल-गूड़ नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है.

बंगाल में तिल दान करने की प्रथा
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के बाद तिल दान करने की प्रथा है. यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है. मकर संक्रांति के दिन ही गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था. इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है. लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं. वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहां लोगों की अपार भीड़ होती है.

मकर संक्रांति पर गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़

तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाते है
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं. प्रथम दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मट्टू-पोंगल या केनू-पोंगल और चौथे दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं. इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं. इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है.

14 ब्राह्मणों को दान दिया जाता है
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू और भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं. राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्य सूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन और संकल्प कर 14 ब्राह्मणों को दान देती हैं.

बक्सर: मकर संक्रांति का पर्व परंपरागत रूप से पूरे देश में श्रद्धा, भक्ति और हर्षोल्लास के वातावरण में मनाया जा रहा है. श्रद्धालु सूर्य की आराधना कर रहे हैं और गंगा में डुबकी लगा रहे हैं. हिंदू धर्म में मकर संक्रांति की काफी मान्यता है, जिसमें दान, पुण्य किया जाता है और देवताओं को याद किया जाता है.

बता दें कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. हिंदू पंचांग और धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्य का मकर राशी में प्रवेश 14 की शाम को हुआ. शास्त्रों के अनुसार रात में संक्रांति नहीं मनाते तो अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उत्सव मनाया जाना चाहिए. इसलिए मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जा रही है.

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श्रद्धालुओं की भारी भीड़

पूरे देश में मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न रूपों में मनाया जाता है-

हरियाणा और पंजाब में मनाते है लोहड़ी
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले 13 जनवरी को ही मनाया जाता है. इस दिन अंधेरा होते ही अग्नि जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है. इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है. इस अवसर पर लोग, मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं. बेटियां घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं. नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है. इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है.

उत्तर प्रदेश में यह पर्व 'दान का पर्व है
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है. इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक महीने तक मेला लगता है. जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है. 14 जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है. 14 दिसंबर
से 14 जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है. माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है.

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दिवाकर मिश्रा, पंडित

संक्रांति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है. बागेश्वर में बड़ा मेला लगता है. वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला और अन्य स्थानों में भी होते हैं. इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों और पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है. इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा और रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है. समूचे उत्तर प्रदेश में इस पर्व को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. इस दिन खिचड़ी खाने और खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है.

बिहार में खिचड़ी के नाम से जानते है
बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है. इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है. महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल और नमक आदि चीजें सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं. तिल-गूड़ नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है.

बंगाल में तिल दान करने की प्रथा
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के बाद तिल दान करने की प्रथा है. यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है. मकर संक्रांति के दिन ही गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था. इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है. लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं. वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहां लोगों की अपार भीड़ होती है.

मकर संक्रांति पर गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़

तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाते है
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं. प्रथम दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मट्टू-पोंगल या केनू-पोंगल और चौथे दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं. इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं. इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है.

14 ब्राह्मणों को दान दिया जाता है
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू और भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं. राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्य सूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन और संकल्प कर 14 ब्राह्मणों को दान देती हैं.

Intro:हर बार की तरह इस बार भी मकर संक्रांति की सही तारीख को लेकर उलझन की स्थिति बनी हुईथी कि मकर संक्रांति का त्योहार इस बार 14 जनवरी को मनाया जाएगा या 15 जनवरी को। किन्तु ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार इस वर्ष 15 जनवरी को पूरे देश में मकर संक्रांति का त्योहार मनाना जा रहा है ।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। हिन्दू पंचांग और धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्य का मकर राशी में प्रवेश 14 की शाम को हो रहा हैं। शास्त्रों के अनुसार रात में संक्रांति नहीं मनाते तो अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उत्सव मनाया जाना चाहिए। इसलिए मकर संक्रांति आज 14 की जगह 15 जनवरी को मनाई जा रही है ।Body:पूरे देश में मकर संक्रान्ति का पर्व विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं।

हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। बेटियाँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे(बेटे) के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। एक समय था जब उत्तर भारत में १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता था। मसलन शादी-ब्याह नहीं किये जाते थे परन्तु अब समय के साथ लोगबाग बदल गये हैं। परन्तु फिर भी ऐसा विश्वास है कि १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है।बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।

बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -"तिळ गूळ घ्या आणि गोड़ गोड़ बोला" अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।

बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-"सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।"

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।

राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।


शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
बाइट पंडित दिवाकर मिश्रा बक्सर
बाइट सुमन पांडेय महिला श्रद्धालु Conclusion:ऐसे में यह कहना बिल्कुल सत्य होगा कि मकर संक्रान्ति पर्व के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक सम्पूर्ण भारतवर्ष में विविध रूपों में दिखती है।
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