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बक्सर जिले का 32वां स्थापना दिवस आज, 11 साल के संघर्ष के बाद बना था जिला - ETV Bharat Bihar NEWS

आज बक्सर जिला अपना 32वां स्थापना (foundation day of buxar District) दिवस मना रहा है. 11 साल के लंबे संघर्ष के बाद 17 मार्च 1991 को बक्सर को जिला बनाया गया था. कई जन आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने 1991 में बक्सर को जिला घोषित किया था. जिलाधिकारी ने स्थापना दिवस पर दी बधाई. पढ़िए पूरी रिपोर्ट....

बक्सर जिले का 32वां स्थापना दिवस
बक्सर जिले का 32वां स्थापना दिवस
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Published : Mar 17, 2022, 9:13 AM IST

बक्सर: 17 मार्च 1991 को बक्सर जिले की स्थापना हुई थी. प्राचीन काल से ही बिहार के प्रवेश द्वार के नाम से विख्यात यह जिला पहले भोजपुर जिला के अंतर्गत आता था. लेकिन जिलेवासियों के 11 साल के लंबे संघर्ष के बाद बक्सर को पहले अनुमंडल उसके बाद जिला घोषित किया गया. बक्सर के पहले जिलाधिकारी के रूप में दीपक कुमार ने अपनी सोच और कुशल रणनीति के बदौलत इस जिले को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. जिसके बाद उन्होंने जिलाधिकारी से लेकर मुख्यसचिव तक का सफर तय किया.

ये भी पढ़ें: जमुई का 32 वां स्थापना दिवस, बोले मंत्री सुमित सिंह- विकास की राह में बढ़ रहा जिला

बक्सर का सियासी और धार्मिक महत्व: बक्सर जिले का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. यहां प्रथम युद्ध मुगल सम्राट हुमायूं और अफगान शासक शेरशाह सूरी के बीच 26 जून 1539 को बक्सर स्थित चौसा का मैदान में लड़ा गया था. बिहार के पश्चिमी भाग में गंगा नदी के किनारे स्थित इस जिले का सियासी और धार्मिक महत्व रहा है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खेती पर आधारित है. प्राचीन काल में बक्सर का नाम व्याघ्रसर था क्योंकि उस समय यहां पर बाघों का निवास हुआ करता था. बक्सर में गुरु विश्वामित्र का आश्रम था. जहां राम और लक्ष्मण की प्रारंभिक शिक्षण और प्रशिक्षण हुआ था.

कई आंदोलन के बाद बनाया गया था जिला: वहीं, 11 साल के लंबे आंदोलन के बाद 17 मार्च 1991 को बक्सर को जिला बनाया गया था. इस दौरान कई आंदोलन हुए और करीब 18 प्रमुख लोगों की मौत हो गई थी. बक्सर को जिला बनाने के लिए 1980 से लेकर 1990 तक पांच बार बंद बुलाया गया था जो अभूतपूर्व रहा. कई जन आंदोलन की वजह से बक्सर को जिला का दर्जा मिला.

बक्सर में कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है मेला: बता दें कि बक्सर जिला पटना से लगभग 172 किलोमीटर पश्चिम और मुगलसराय से 109 किलोमीटर पूरब में पूर्वी रेलवे लाइन के किनारे स्थित है. बक्सर एक व्यापारिक नगर भी है. यहां बिहार का एक प्रमुख जेल है जिसमें अपराधी कपड़ा बुनते और अन्य उद्योगों से जुड़े रहते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को बक्सर में बड़ा मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं.

1764 में हुआ था बक्सर युद्ध: प्रसिद्ध बक्सर की लड़ाई शुजाउद्दौला और मीर कासिम तथा अंग्रेज मेजर कैप्टन मुनरो की सेनाओं के बीच 1764 में कतकौली मैदान में लड़ी गई थी. इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई थी जिसमें शुजाउद्दौला और मीर कासिम के लगभग 2 हजार से अधिक सैनिक मारे गए थे. इस युद्ध में इतना रक्तपात हुआ था कि देश की आजादी के 74 साल से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी इस गांव के लोग आज तक एक बार भी थाना नहीं गए हैं. साथ ही इस गांव के लोग किसी तरह का किसी भी व्यक्ति पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं कराया है.

ये भी पढ़ें: बक्सर में अंतरराष्ट्रीय धर्म सम्मेलन का हुआ समापन, रामानुजाचार्य सहस्त्राब्दी स्मृति समारोह पर किया गया था आयोजन

ब्रह्मपुर में बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ का मंदिर: जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर पूरब ब्रह्मपुर गांव में स्थित बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ की मंदिर में दर्शन करने के लिए आज भी देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंचते हैं. इतिहासकारों की माने तो मोहम्मद गजनवी के समय से ही यह मंदिर स्थित है. मुगल शासक अकबर के समय में राजा मान सिंह ने इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था. जिले की 92 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की कुल आबादी 24 लाख 73 हजार 559 है. जिसमें से 92 प्रतिशत लोग गांव में निवास करते हैं. मात्र 8 प्रतिशत लोग ही शहरों में निवास करते हैं. 2 लाख 9 हजार से अधिक किसानों के द्वारा 90 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खेती की जाती है.

विश्वामित्र आश्रम चरित्रवन वन बक्सर में लिट्टी चोखा खाने की परंपरा: पौराणिक कथा में ऐसा कहा जाता है कि त्रेता युग में ऋषि विश्वामित्र के साथ भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ बक्सर आए थे. उन्होंने ही ताड़का, सुबाहु और मारीच जैसे राक्षसों का वध कर इस भूमि को राक्षसों से मुक्त कराया था. ताड़का राक्षसी का वध करने के बाद नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने 5 कोस की पंचकोशी यात्रा की शुरुआत की. इस क्रम में भगवान राम सबसे पहले गौतम ऋषि आश्रम अहिरौली पहुंचे जहां पत्थर रूपी अहिल्या का उन्होंने उद्धार किया. यात्रा के दूसरे पड़ाव में नारद मुन्नी के आश्रम नदाव, तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर, चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम उनवास और अपने यात्रा के अंतिम पड़ाव में विश्वामित्र आश्रम चरित्रवन वन बक्सर पहुंचकर उन्होंने लिट्टी चोखा खाया था. तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है.


विश्वामित्र के इस पावन नगरी में कई संतों का जन्म: विश्वामित्र के इस पावन नगरी में सतयुग से लेकर अब तक बक्सर की धरती पर आनेको संत, महात्मा, ऋषि मुनियों का जन्म हुआ. जिसमें त्रिदंडी स्वामी जी महाराज, नारायण दास भक्त माली, जीयर स्वामी जी महाराज, श्री रामचरित्र दास जी महाराज समेत कई विद्वानों ने जन्म लिया. समय के साथ यह जिला तेजी से विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है. जिले के 32 वें स्थापना दिवस पर कई कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.

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बक्सर: 17 मार्च 1991 को बक्सर जिले की स्थापना हुई थी. प्राचीन काल से ही बिहार के प्रवेश द्वार के नाम से विख्यात यह जिला पहले भोजपुर जिला के अंतर्गत आता था. लेकिन जिलेवासियों के 11 साल के लंबे संघर्ष के बाद बक्सर को पहले अनुमंडल उसके बाद जिला घोषित किया गया. बक्सर के पहले जिलाधिकारी के रूप में दीपक कुमार ने अपनी सोच और कुशल रणनीति के बदौलत इस जिले को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. जिसके बाद उन्होंने जिलाधिकारी से लेकर मुख्यसचिव तक का सफर तय किया.

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बक्सर का सियासी और धार्मिक महत्व: बक्सर जिले का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. यहां प्रथम युद्ध मुगल सम्राट हुमायूं और अफगान शासक शेरशाह सूरी के बीच 26 जून 1539 को बक्सर स्थित चौसा का मैदान में लड़ा गया था. बिहार के पश्चिमी भाग में गंगा नदी के किनारे स्थित इस जिले का सियासी और धार्मिक महत्व रहा है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खेती पर आधारित है. प्राचीन काल में बक्सर का नाम व्याघ्रसर था क्योंकि उस समय यहां पर बाघों का निवास हुआ करता था. बक्सर में गुरु विश्वामित्र का आश्रम था. जहां राम और लक्ष्मण की प्रारंभिक शिक्षण और प्रशिक्षण हुआ था.

कई आंदोलन के बाद बनाया गया था जिला: वहीं, 11 साल के लंबे आंदोलन के बाद 17 मार्च 1991 को बक्सर को जिला बनाया गया था. इस दौरान कई आंदोलन हुए और करीब 18 प्रमुख लोगों की मौत हो गई थी. बक्सर को जिला बनाने के लिए 1980 से लेकर 1990 तक पांच बार बंद बुलाया गया था जो अभूतपूर्व रहा. कई जन आंदोलन की वजह से बक्सर को जिला का दर्जा मिला.

बक्सर में कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है मेला: बता दें कि बक्सर जिला पटना से लगभग 172 किलोमीटर पश्चिम और मुगलसराय से 109 किलोमीटर पूरब में पूर्वी रेलवे लाइन के किनारे स्थित है. बक्सर एक व्यापारिक नगर भी है. यहां बिहार का एक प्रमुख जेल है जिसमें अपराधी कपड़ा बुनते और अन्य उद्योगों से जुड़े रहते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को बक्सर में बड़ा मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं.

1764 में हुआ था बक्सर युद्ध: प्रसिद्ध बक्सर की लड़ाई शुजाउद्दौला और मीर कासिम तथा अंग्रेज मेजर कैप्टन मुनरो की सेनाओं के बीच 1764 में कतकौली मैदान में लड़ी गई थी. इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई थी जिसमें शुजाउद्दौला और मीर कासिम के लगभग 2 हजार से अधिक सैनिक मारे गए थे. इस युद्ध में इतना रक्तपात हुआ था कि देश की आजादी के 74 साल से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी इस गांव के लोग आज तक एक बार भी थाना नहीं गए हैं. साथ ही इस गांव के लोग किसी तरह का किसी भी व्यक्ति पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं कराया है.

ये भी पढ़ें: बक्सर में अंतरराष्ट्रीय धर्म सम्मेलन का हुआ समापन, रामानुजाचार्य सहस्त्राब्दी स्मृति समारोह पर किया गया था आयोजन

ब्रह्मपुर में बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ का मंदिर: जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर पूरब ब्रह्मपुर गांव में स्थित बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ की मंदिर में दर्शन करने के लिए आज भी देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंचते हैं. इतिहासकारों की माने तो मोहम्मद गजनवी के समय से ही यह मंदिर स्थित है. मुगल शासक अकबर के समय में राजा मान सिंह ने इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था. जिले की 92 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की कुल आबादी 24 लाख 73 हजार 559 है. जिसमें से 92 प्रतिशत लोग गांव में निवास करते हैं. मात्र 8 प्रतिशत लोग ही शहरों में निवास करते हैं. 2 लाख 9 हजार से अधिक किसानों के द्वारा 90 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खेती की जाती है.

विश्वामित्र आश्रम चरित्रवन वन बक्सर में लिट्टी चोखा खाने की परंपरा: पौराणिक कथा में ऐसा कहा जाता है कि त्रेता युग में ऋषि विश्वामित्र के साथ भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ बक्सर आए थे. उन्होंने ही ताड़का, सुबाहु और मारीच जैसे राक्षसों का वध कर इस भूमि को राक्षसों से मुक्त कराया था. ताड़का राक्षसी का वध करने के बाद नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने 5 कोस की पंचकोशी यात्रा की शुरुआत की. इस क्रम में भगवान राम सबसे पहले गौतम ऋषि आश्रम अहिरौली पहुंचे जहां पत्थर रूपी अहिल्या का उन्होंने उद्धार किया. यात्रा के दूसरे पड़ाव में नारद मुन्नी के आश्रम नदाव, तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर, चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम उनवास और अपने यात्रा के अंतिम पड़ाव में विश्वामित्र आश्रम चरित्रवन वन बक्सर पहुंचकर उन्होंने लिट्टी चोखा खाया था. तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है.


विश्वामित्र के इस पावन नगरी में कई संतों का जन्म: विश्वामित्र के इस पावन नगरी में सतयुग से लेकर अब तक बक्सर की धरती पर आनेको संत, महात्मा, ऋषि मुनियों का जन्म हुआ. जिसमें त्रिदंडी स्वामी जी महाराज, नारायण दास भक्त माली, जीयर स्वामी जी महाराज, श्री रामचरित्र दास जी महाराज समेत कई विद्वानों ने जन्म लिया. समय के साथ यह जिला तेजी से विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है. जिले के 32 वें स्थापना दिवस पर कई कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.

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