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खुद तो नहीं लेकिन कलाकृतियां बोलती हैं, बक्सर की विनीता ने चित्रकारी में जीता राष्ट्रीय पुरस्कार - बक्सर दिव्यांग महिला राष्ट्रीय पुरस्कार

बक्सर में दिव्यांग महिला ने अपनी कमाल कलाकृतियों की बदौलत कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है. विनीता राय दो बेटियों की मां हैं. उन्हें बचपन से ही चित्रकारी का शौक रहा है.

buxar divyang women national award
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Published : Feb 1, 2021, 2:37 PM IST

बक्सर: प्रतिभा किसी पहचान की मोहताज नहीं होती है. वह अपनी कदमों की आहट से अपने होने का एहसास करवा ही लेती है. अपनी चमक से एक न एक दिन दुनिया को चकाचौंध कर ही देती है. कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है, बक्सर में जहां एक महिला अपनी कलाकृतियों से लोगों को इस कदर प्रभावित कर रही है कि देखने वालों के मुंह से बरबस निकल जा रहा है वाह क्या बात है.

बचपन से ही चित्रकारी का शौक
मुफ्फसिल थाना क्षेत्र अंतर्गत कमरपुर गांव की रहने वाली विनीता राय दो बेटियों की मां हैं. बड़ी बेटी लावण्या 10वीं में तो, छोटी कक्षा 4 में पढ़ रही हैं. लावण्या ने बताया कि मम्मी को बचपन से ही चित्रकारी का शौक रहा है.

buxar divyang women national award
बचपन से ही है चित्रकारी का शौक

"नाना ने बताया कि जब मम्मी डेढ़ -दो साल की थींतो, परिवार वालों को लगा कि वो ना बोल सकती है और ना ही सुन सकती है. ऐसे में सभी को बड़ी मायूसी हुई. लेकिन कहा जाता है कि ईश्वर कुछ लेता है और बहुत कुछ देता भी है. मां को उनकी खूबसूरत और आकर्षक चित्रकला के लिए प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत भी किया जा चुका है"- लावण्या, बेटी

buxar divyang women national award
रद्दी वस्तुओं से बनाई बेहद उपयोगी चित्रकला

रद्दी वस्तुओं से बेहद उपयोगी
बोलने और सुनने में असमर्थ विनीता का मन चित्रकला में खूब लगने लगा. फलतः परिजनों ने चित्रकला को ही विनीता के करियर के रूप में देखा. सुनीता के हाथों में वो हुनर है कि मशीन भी फेल हो जाए. घर की रद्दी वस्तुओं से बेहद उपयोगी और खूबसूरत सामान बना डालती हैं. उंगलियों पर नियंत्रण इतना कि कैनवास पर चल रहा ब्रश थोड़ा सा भी इधर उधर न जा पाये.

देखें रिपोर्ट

तीसरी कक्षा तक ही हुई पढ़ाई
30 अगस्त 1982 को जन्मी विनीता की शिक्षा-दीक्षा मात्र तीसरी कक्षा तक ही हो पाई. विनीता का मन चित्रकला में खूब रमा. हालांकि 2007 में मुफ्फसिल थाना क्षेत्र में गोविंदपुर के रहने वाले बलिराम राय से विवाह के पश्चात समयाभाव के कारण अपनी इस कला से दूर होती गईं. लेकिन एक बार फिर विनीता को उनकी लगन चित्रकला के पास लाई है और वे अपनी लगन और मेहनत की बदौलत पेंटिंग की दुनिया में एक मुकाम हासिल करना चाहती हैं.

buxar divyang women national award
राष्ट्रीय स्तर पर किया जा चुका है पुरस्कृत

ये भी पढ़ें: जमुई: नौकरी तलाशने के बजाय खेती का रास्ता अपना रहे युवा किसान, आर्थिक स्थिति को बना रहे मजबूत

युवाओं के लिए प्रेरणा
विनीता आज के युवाओं और युवतियों के लिए एक प्रेरणा हैं. खास कर ऐसे लोगों के लिए जो साधन के अभाव का रोना रोते हैं. विनीता एक उदाहरण है कि जिनके अंदर भी कार्य करने की लगन और मेहनत करने का जज्बा होगा, उसके लिए न साधन का अभाव बाधक बन सकती है और न ही दिव्यांगता.

बक्सर: प्रतिभा किसी पहचान की मोहताज नहीं होती है. वह अपनी कदमों की आहट से अपने होने का एहसास करवा ही लेती है. अपनी चमक से एक न एक दिन दुनिया को चकाचौंध कर ही देती है. कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है, बक्सर में जहां एक महिला अपनी कलाकृतियों से लोगों को इस कदर प्रभावित कर रही है कि देखने वालों के मुंह से बरबस निकल जा रहा है वाह क्या बात है.

बचपन से ही चित्रकारी का शौक
मुफ्फसिल थाना क्षेत्र अंतर्गत कमरपुर गांव की रहने वाली विनीता राय दो बेटियों की मां हैं. बड़ी बेटी लावण्या 10वीं में तो, छोटी कक्षा 4 में पढ़ रही हैं. लावण्या ने बताया कि मम्मी को बचपन से ही चित्रकारी का शौक रहा है.

buxar divyang women national award
बचपन से ही है चित्रकारी का शौक

"नाना ने बताया कि जब मम्मी डेढ़ -दो साल की थींतो, परिवार वालों को लगा कि वो ना बोल सकती है और ना ही सुन सकती है. ऐसे में सभी को बड़ी मायूसी हुई. लेकिन कहा जाता है कि ईश्वर कुछ लेता है और बहुत कुछ देता भी है. मां को उनकी खूबसूरत और आकर्षक चित्रकला के लिए प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत भी किया जा चुका है"- लावण्या, बेटी

buxar divyang women national award
रद्दी वस्तुओं से बनाई बेहद उपयोगी चित्रकला

रद्दी वस्तुओं से बेहद उपयोगी
बोलने और सुनने में असमर्थ विनीता का मन चित्रकला में खूब लगने लगा. फलतः परिजनों ने चित्रकला को ही विनीता के करियर के रूप में देखा. सुनीता के हाथों में वो हुनर है कि मशीन भी फेल हो जाए. घर की रद्दी वस्तुओं से बेहद उपयोगी और खूबसूरत सामान बना डालती हैं. उंगलियों पर नियंत्रण इतना कि कैनवास पर चल रहा ब्रश थोड़ा सा भी इधर उधर न जा पाये.

देखें रिपोर्ट

तीसरी कक्षा तक ही हुई पढ़ाई
30 अगस्त 1982 को जन्मी विनीता की शिक्षा-दीक्षा मात्र तीसरी कक्षा तक ही हो पाई. विनीता का मन चित्रकला में खूब रमा. हालांकि 2007 में मुफ्फसिल थाना क्षेत्र में गोविंदपुर के रहने वाले बलिराम राय से विवाह के पश्चात समयाभाव के कारण अपनी इस कला से दूर होती गईं. लेकिन एक बार फिर विनीता को उनकी लगन चित्रकला के पास लाई है और वे अपनी लगन और मेहनत की बदौलत पेंटिंग की दुनिया में एक मुकाम हासिल करना चाहती हैं.

buxar divyang women national award
राष्ट्रीय स्तर पर किया जा चुका है पुरस्कृत

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युवाओं के लिए प्रेरणा
विनीता आज के युवाओं और युवतियों के लिए एक प्रेरणा हैं. खास कर ऐसे लोगों के लिए जो साधन के अभाव का रोना रोते हैं. विनीता एक उदाहरण है कि जिनके अंदर भी कार्य करने की लगन और मेहनत करने का जज्बा होगा, उसके लिए न साधन का अभाव बाधक बन सकती है और न ही दिव्यांगता.

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