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बक्सर के नावानगर में 12 एकड़ जमीन में बनेगा हिरणों का अभ्यारण्य, शिकार पर लगाया गया प्रतिबंध

नावानगर गांव में वन विभाग की ओर से 12 एकड़ जमीन पर हिरणों के लिए अभ्यारण्य बनाने के लिए जमीन चिन्हित कर ली गई है. जमीन को वन एवं पर्यावरण विभाग को हस्तांतरित करने के लिए पत्राचार किया गया है. जिलाधिकारी ने कहा कि जल्द ही काले हिरण को स्थनांतरित करने का कार्य किया जाएगा. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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Published : Sep 20, 2021, 7:26 AM IST

बक्सर: एक ऐसा वन्यजीव जो इंसानों के बीच भी बड़े ही मस्ती से रह लेता है. उसकी खूबसूरती और चुलबुलापन बरबस ही हर किसी का मन मोह लेता है. जी हां, हम बात कर रहें हैं ब्लैक बक की जिसे काला हिरण (Black Buck In Buxar) या कृष्ण मृग के नाम से भी जाना जाता है. भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला यह शाकाहारी जीव बक्सर जिले में भी देखने को मिलता है. विलुप्त हो रहे इस खूबसूरत जीव को बचाने के लिए इसके शिकार पर प्रतिबंध (Blackbuck hunting banned) लगा दिया गया है. बक्सर में इनकी सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए जिला प्रशासन ने योजनाबद्ध तरीके से तैयारियां शुरू कर दी है.

इसे भी पढ़ें: वन विभाग की पशु तस्करों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई, काले हिरण का छाल बरामद

संरक्षित वन्य जीव काला हिरण के लिए बक्सर में भी अभयारण्य बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है. इस संबंध बक्सर डीएम अमन समीर (Buxar DM Aman Sameer) ने बताया कि जिले के नवानगर क्षेत्र में जिला प्रशासन ने लगभग 12 एकड़ जमीन चिन्हित किया है. उस जमीन को वन एवं पर्यावरण विभाग को हस्तांतरित करने के लिए पत्राचार किया गया है. जिलाधिकारी ने कहा कि इस संदर्भ में वन विभाग से बात हो गई है. बक्सर जिले में पाये जाने वाले सारे हिरण को स्थानांतरित किया जाएगा. सबसे पहले काले हिरण को रखा जाएगा और उसे आने वाले समय में काला हिरण अभयारण्य के रूप विकसित किया जाएगा.

देखें रिपोर्ट.

ये भी पढ़ें: VTR में शिकारियों ने हिरण को गोलियों से किया छलनी, मांस निकालते हुआ गिरफ्तार

गौरतलब है कि काला हिरण भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाला एक मृग है. इसे (एंटीलोप सर्विकप्रा) के नाम से भी जाना जाता है. काला हिरन भारत, नेपाल और पाकिस्तान समेत बांग्लादेश में पाए जाने वाले हिरण की एक प्रजाति है. स्वीडिश जीव वैज्ञानिक कार्ल लिनिअस ने सबसे पहले इनके बारे में 1758 में बताया था. यह हिरण जीनस एनिलिओप का एकमात्र मौजूदा सदस्य है.

ये हिरण शाहकारी होते हैं और घास-पत्तिया खातें हैं. मादा कृष्ण मृग मात्र 8 महीनों में ही वयस्क हो जाती हैं. वहीं, नर हिरन 1 से डेढ़ साल में वयस्क होते हैं. इनके गर्भ काल का समय आम तौर पर 6 महीने का होता है. जिसके बाद एक बछड़े का जन्म होता है. यह हिरण घास के मैदानों में और जंगली इलाकों में पाए जाते है. काले हिरण जहां पानी की भरपूर सुविधा मिलती है, वहीं रहना पसंद करते हैं.

यह प्रजाति अब मूलतः भारत में ही पाई जाती है. बंगलादेश में यह हिरण लुप्त हो गए हैं. अत्यधिक शिकार वनों की कटाई और निवास स्थान में कमी के कारण काले हिरण की संख्या में तेजी से कमी आई है. इन हिरणों की उम्र 10 से 15 साल की ही होती है. आईयूसीएन ने भारत के काले हिरण को अब लुप्तप्राय वाली श्रेणी में रखा है. भारत में 1972 वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत काले हिरन के शिकार पर प्रतिबंध है. शिकार करने वाले पर कानूनी कर्रवाई के तहत सजा एवं जुर्माना हो सकती है. काले हिरण गर्म जलवायु में भी रह सकते हैं. देश में राजस्थान का ताल छापर अभयारण्य कृष्ण मृग के कारण ही प्रसिद्ध है.

भारत में यह मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र बुंदेलखंड और तमिलनाडु में पाए जाते हैं. अपने देश में भी अब इन हिरणों की संख्या काफी कम हो गई है. एक अनुमान के मुताबिक अभी भारत में इनकी संख्या 50 हजार के करीब है. हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व माना जाता है. यही वजह है कि ये भारत के ग्रामीण इलाकों में बेखौफ विचरण करते देखे जाते हैं.

ऐसे में कहा जा सकता है कि जिला प्रशासन की यह कोशिश निश्चय ही एक सराहनीय कदम है. इससे न केवल पर्यटन की दृष्टि से बक्सर का नाम आगे आएगा बल्कि इस बेहद खूबसूरत एवं चुलबुले जीव की सुरक्षा तथा संरक्षा भी हो सकेगी.

बक्सर: एक ऐसा वन्यजीव जो इंसानों के बीच भी बड़े ही मस्ती से रह लेता है. उसकी खूबसूरती और चुलबुलापन बरबस ही हर किसी का मन मोह लेता है. जी हां, हम बात कर रहें हैं ब्लैक बक की जिसे काला हिरण (Black Buck In Buxar) या कृष्ण मृग के नाम से भी जाना जाता है. भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला यह शाकाहारी जीव बक्सर जिले में भी देखने को मिलता है. विलुप्त हो रहे इस खूबसूरत जीव को बचाने के लिए इसके शिकार पर प्रतिबंध (Blackbuck hunting banned) लगा दिया गया है. बक्सर में इनकी सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए जिला प्रशासन ने योजनाबद्ध तरीके से तैयारियां शुरू कर दी है.

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संरक्षित वन्य जीव काला हिरण के लिए बक्सर में भी अभयारण्य बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है. इस संबंध बक्सर डीएम अमन समीर (Buxar DM Aman Sameer) ने बताया कि जिले के नवानगर क्षेत्र में जिला प्रशासन ने लगभग 12 एकड़ जमीन चिन्हित किया है. उस जमीन को वन एवं पर्यावरण विभाग को हस्तांतरित करने के लिए पत्राचार किया गया है. जिलाधिकारी ने कहा कि इस संदर्भ में वन विभाग से बात हो गई है. बक्सर जिले में पाये जाने वाले सारे हिरण को स्थानांतरित किया जाएगा. सबसे पहले काले हिरण को रखा जाएगा और उसे आने वाले समय में काला हिरण अभयारण्य के रूप विकसित किया जाएगा.

देखें रिपोर्ट.

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गौरतलब है कि काला हिरण भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाला एक मृग है. इसे (एंटीलोप सर्विकप्रा) के नाम से भी जाना जाता है. काला हिरन भारत, नेपाल और पाकिस्तान समेत बांग्लादेश में पाए जाने वाले हिरण की एक प्रजाति है. स्वीडिश जीव वैज्ञानिक कार्ल लिनिअस ने सबसे पहले इनके बारे में 1758 में बताया था. यह हिरण जीनस एनिलिओप का एकमात्र मौजूदा सदस्य है.

ये हिरण शाहकारी होते हैं और घास-पत्तिया खातें हैं. मादा कृष्ण मृग मात्र 8 महीनों में ही वयस्क हो जाती हैं. वहीं, नर हिरन 1 से डेढ़ साल में वयस्क होते हैं. इनके गर्भ काल का समय आम तौर पर 6 महीने का होता है. जिसके बाद एक बछड़े का जन्म होता है. यह हिरण घास के मैदानों में और जंगली इलाकों में पाए जाते है. काले हिरण जहां पानी की भरपूर सुविधा मिलती है, वहीं रहना पसंद करते हैं.

यह प्रजाति अब मूलतः भारत में ही पाई जाती है. बंगलादेश में यह हिरण लुप्त हो गए हैं. अत्यधिक शिकार वनों की कटाई और निवास स्थान में कमी के कारण काले हिरण की संख्या में तेजी से कमी आई है. इन हिरणों की उम्र 10 से 15 साल की ही होती है. आईयूसीएन ने भारत के काले हिरण को अब लुप्तप्राय वाली श्रेणी में रखा है. भारत में 1972 वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत काले हिरन के शिकार पर प्रतिबंध है. शिकार करने वाले पर कानूनी कर्रवाई के तहत सजा एवं जुर्माना हो सकती है. काले हिरण गर्म जलवायु में भी रह सकते हैं. देश में राजस्थान का ताल छापर अभयारण्य कृष्ण मृग के कारण ही प्रसिद्ध है.

भारत में यह मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र बुंदेलखंड और तमिलनाडु में पाए जाते हैं. अपने देश में भी अब इन हिरणों की संख्या काफी कम हो गई है. एक अनुमान के मुताबिक अभी भारत में इनकी संख्या 50 हजार के करीब है. हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व माना जाता है. यही वजह है कि ये भारत के ग्रामीण इलाकों में बेखौफ विचरण करते देखे जाते हैं.

ऐसे में कहा जा सकता है कि जिला प्रशासन की यह कोशिश निश्चय ही एक सराहनीय कदम है. इससे न केवल पर्यटन की दृष्टि से बक्सर का नाम आगे आएगा बल्कि इस बेहद खूबसूरत एवं चुलबुले जीव की सुरक्षा तथा संरक्षा भी हो सकेगी.

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