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रोहिणी नक्षत्र समाप्त, नहीं हुई बारिश, धान की बुआई में किसानों को हो रही परेशानी

बक्सर के किसान पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. जिले के सभी तलाब, नहर सूख गए हैं. सरकार की तरफ से सिंचाी की व्यवस्था नहीं की जा रही है. इस कारण किसानों को धान की रोपनी में काफी परेशानी हो रही है.

सूखी नहर
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Published : Jun 5, 2019, 7:52 PM IST

बक्सर: रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होते ही किसानों की परेशानी बढ़ती जा रही है. पानी के अभाव में किसान धान का बिचड़ा कैसे डाले यह सोच कर दुखी हैं. एक तरफ तो किसान मौसम की मार झेल रहे हैं, दूसरी तरफ सरकारी नलकूप की ध्वस्त हालत उनकी परेशानियों को और बढ़ा रहा है.

किसान का बयान

आज भी बदहाली की मार झेल रहे किसान
जिले के नेता और सांसद हर बार आते हैं और सरकारी घोषणाओं की अंबार लगा देते हैं, मगर धरतल पर ये योजनाएं कभी उतरती नहीं दिखती है. कई पार्टियां सत्ता में आती हैं और जाती हैं मगर किसानों की दशा आज भी वही है. जिले के तालाब और नहर सूखते जा रहे हैं. सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है. किसान पानी के लिए तरस रहे हैं, मगर सरकार उनके लिए किसी भी तरह की व्यवस्था करने का नाम नहीं ले रही है.

buxar
बहता

किसानों की समस्याओं को समझने की जरूरत
किसानों के इस हालात से निबटने के लिए सरकारी व्यवस्थाओं में बदलाव लाने की जरूरत है. वायदे और घोषणाओं से निकल कर किसानों की समस्याओं को दूर करने की जरूरत है. इनकी अनदेखी से विकास की कोई भी बात बेमानी ही होगी.

बक्सर: रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होते ही किसानों की परेशानी बढ़ती जा रही है. पानी के अभाव में किसान धान का बिचड़ा कैसे डाले यह सोच कर दुखी हैं. एक तरफ तो किसान मौसम की मार झेल रहे हैं, दूसरी तरफ सरकारी नलकूप की ध्वस्त हालत उनकी परेशानियों को और बढ़ा रहा है.

किसान का बयान

आज भी बदहाली की मार झेल रहे किसान
जिले के नेता और सांसद हर बार आते हैं और सरकारी घोषणाओं की अंबार लगा देते हैं, मगर धरतल पर ये योजनाएं कभी उतरती नहीं दिखती है. कई पार्टियां सत्ता में आती हैं और जाती हैं मगर किसानों की दशा आज भी वही है. जिले के तालाब और नहर सूखते जा रहे हैं. सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है. किसान पानी के लिए तरस रहे हैं, मगर सरकार उनके लिए किसी भी तरह की व्यवस्था करने का नाम नहीं ले रही है.

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बहता

किसानों की समस्याओं को समझने की जरूरत
किसानों के इस हालात से निबटने के लिए सरकारी व्यवस्थाओं में बदलाव लाने की जरूरत है. वायदे और घोषणाओं से निकल कर किसानों की समस्याओं को दूर करने की जरूरत है. इनकी अनदेखी से विकास की कोई भी बात बेमानी ही होगी.

Intro:मौसम के मौजूदा मिजाज से किसानों के माथे की लकीरें मोटी होती जा रही हैं ।रोहिणी नक्षत्र निकलती जा रही है ।धान का बिचड़ा कैसे डाले ये सोच कर किसान परेशान है ।वारिस हुई नही और नहरे तो खुद वीरान है ,सरकारी नलकूप कु व्यवस्था पहले से ही ध्वस्त है फिर कैसे हो किसानी।


Body:बात राजनीतिक दलों के वायदों की हो या सरकारी घोषणाओं की ,हर कोई किसानों के लिए अनेकों दावे करता है ।किंतु वास्तव में दावे केवल और केवल दावे ही रह जाते हैं । किसानों की दशा और दिशा आज भी वहीं हैं जो सालों पहले हुआ करती थी । क्या ये सच नहीं है कि यह मानसून नही किसानो के साथ शासन का छलावा है उन तथाकथित रहनुमाओं के कारनामों का खुलासा है जो 21वी सदी में भी किसानों को मानसून का कृपा पात्र बनाये रखा है । आखिर किसान करे तो क्या करे नलकूपों की व्यवस्था पहले से ही ध्वस्त है । नहर का आलम यह है कि ये पानी लाने के काम नही बल्कि उपला (गोइठा) बनाने के काम आ रही है ।इन बदहाल हो चुकी व्यवस्था के बीच कुछ किसान अपने दम पर बिचड़ा डाल रहें है तो कुछ स्थिति बदलने का इंतजार कर रहे हैं ।
बाइट संजय राय। किसान


Conclusion:ऐसे में सरकारी व्यवस्था में अत्यावश्यक बदलाव की जरूरत है ।वायदे और घोषणाओं से निकल कर किसानों की धरातलीय बदहाली और विवशता को देखने ,समझने और उसके निराकरण करने की है ।नही तो फिर इन अन्नदाताओं के समस्याओं को नजरअंदाज करके विकास की कोई भी बात बेमानी ही होगी ।
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