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चमत्कारिक है औरंगाबाद का यह सूर्य मंदिर, यहां कुंड में स्नान से दूर होते हैं चर्म रोग

इस सूर्य कुण्ड में नहाने से शरीर के सारे चर्म रोग दूर हो जाते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार इस कुंड में सबसे पहले राजा ऐल ने स्नान किया था. जिसके बाद उनके सारे कुष्ठ रोग दूर हो गए. तभी से इस कुण्ड के प्रति लोगों की आस्था बन गई.

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Published : Sep 23, 2019, 4:15 PM IST

सूर्यकुण्ड में स्नान करने से होता कुष्ठ रोग दूर

औरंगाबाद: जिले में एक ऐसा तालाब है, जिसमें स्नान करने से शरीर के सारे कुष्ठ दूर हो जाते हैं. इस तालाब को सूर्यकुंड तालाब के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस तालाब में स्नान करके चर्म रोगी ठीक हो सकते हैं.

'सूर्य कुण्ड है कुष्ठ रोगी के लिए वरदान'
सूर्य शरीर के मालिक हैं, इन्हें आदिदेव भी कहा जाता है. इनकी कृपा जिसपर पड़ जाए उसका जीवन सफल हो जाता है. ऐसी ही कृपा देव सूर्यनगरी के सूर्यकुंड में है. कहा जाता है कि यहां का पानी कुष्ठ रोगियों के लिए वरदान है. मंदिर से थोड़ी ही दूर पर इस सूर्यकुंड तालाब को कुष्ठ निवारक तालाब के नाम से जाना जाता है. इस तालाब में स्नान करने से चर्म रोग से ग्रसित कई बीमारियां दूर हो जाती हैं. इस कुष्ठ निवारक तालाब के बारे में कई कहावत भी मशहूर है.

लोगों की आस्था से जुड़ा है यह सूर्यकुण्ड

राजा ऐल ने किया था कुण्ड में स्नान
इन कहानियों में सूर्य पुराण की सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी के अनुसार देव मंदिर के निर्माण से पहले इला के पुत्र राजा ऐल जिन्हें किसी ऋषि ने श्राप दिया. इसके बाद ऐल को श्वेत कुष्ठ रोग हो गया. इसके बाद एक बार वन में घूमते वक्त राजा ऐल राह भटक गए. भटकते-भटकते राजा प्यास से व्याकुल हो उठे और पानी की तलाश में निकल पड़े. पानी की खोज करते हुए उन्हें एक छोटा सरोवर दिखा और उन्होंने अंजुरी में अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी को भरा और उसे पिया. थके-हारे राजा ने पानी से अपने शरीर के विभिन्न अंगो को भी धोया और पास ही वृक्ष के नीचे आराम करने लगे.

कुण्ड में नहाने से दूर होते हैं चर्म रोग
आराम के बाद राजा ने जब अपने हाथों को देखा तो उन्हें अपने हाथों के सारे कुष्ठ दाग गायब दिखे. साथ ही राजा ने यह भी देखा उस पानी ने अंग के जिस जिस भाग को छुआ है, वहां से भी कुष्ठ के दाग गायब थे. जल के छुने से कुष्ठ जाता देख राजा बहुत खुश हो गए और कपड़े पहने ही सरोवर में कूद गये. राजा ने जमकर स्नान किया. कुछ दिनों के बाद राजा के शरीर के सारे कुष्ठ रोग समाप्त हो गए. तब से आज तक यह तालाब चर्म रोगियों और कुष्ठ रोगियों के लिए वरदान बना हुआ है. इस कुण्ड में चर्म रोग से ग्रसित लोग स्नान कर रोग मुक्त हो जाते हैं.

औरंगाबाद: जिले में एक ऐसा तालाब है, जिसमें स्नान करने से शरीर के सारे कुष्ठ दूर हो जाते हैं. इस तालाब को सूर्यकुंड तालाब के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस तालाब में स्नान करके चर्म रोगी ठीक हो सकते हैं.

'सूर्य कुण्ड है कुष्ठ रोगी के लिए वरदान'
सूर्य शरीर के मालिक हैं, इन्हें आदिदेव भी कहा जाता है. इनकी कृपा जिसपर पड़ जाए उसका जीवन सफल हो जाता है. ऐसी ही कृपा देव सूर्यनगरी के सूर्यकुंड में है. कहा जाता है कि यहां का पानी कुष्ठ रोगियों के लिए वरदान है. मंदिर से थोड़ी ही दूर पर इस सूर्यकुंड तालाब को कुष्ठ निवारक तालाब के नाम से जाना जाता है. इस तालाब में स्नान करने से चर्म रोग से ग्रसित कई बीमारियां दूर हो जाती हैं. इस कुष्ठ निवारक तालाब के बारे में कई कहावत भी मशहूर है.

लोगों की आस्था से जुड़ा है यह सूर्यकुण्ड

राजा ऐल ने किया था कुण्ड में स्नान
इन कहानियों में सूर्य पुराण की सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी के अनुसार देव मंदिर के निर्माण से पहले इला के पुत्र राजा ऐल जिन्हें किसी ऋषि ने श्राप दिया. इसके बाद ऐल को श्वेत कुष्ठ रोग हो गया. इसके बाद एक बार वन में घूमते वक्त राजा ऐल राह भटक गए. भटकते-भटकते राजा प्यास से व्याकुल हो उठे और पानी की तलाश में निकल पड़े. पानी की खोज करते हुए उन्हें एक छोटा सरोवर दिखा और उन्होंने अंजुरी में अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी को भरा और उसे पिया. थके-हारे राजा ने पानी से अपने शरीर के विभिन्न अंगो को भी धोया और पास ही वृक्ष के नीचे आराम करने लगे.

कुण्ड में नहाने से दूर होते हैं चर्म रोग
आराम के बाद राजा ने जब अपने हाथों को देखा तो उन्हें अपने हाथों के सारे कुष्ठ दाग गायब दिखे. साथ ही राजा ने यह भी देखा उस पानी ने अंग के जिस जिस भाग को छुआ है, वहां से भी कुष्ठ के दाग गायब थे. जल के छुने से कुष्ठ जाता देख राजा बहुत खुश हो गए और कपड़े पहने ही सरोवर में कूद गये. राजा ने जमकर स्नान किया. कुछ दिनों के बाद राजा के शरीर के सारे कुष्ठ रोग समाप्त हो गए. तब से आज तक यह तालाब चर्म रोगियों और कुष्ठ रोगियों के लिए वरदान बना हुआ है. इस कुण्ड में चर्म रोग से ग्रसित लोग स्नान कर रोग मुक्त हो जाते हैं.

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