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यहां क्रिसमस के दिन 11 साल की बच्ची के मजार पर पूजा करने आते हैं सैंकड़ो लोग

अंग्रेज ऑफिसर की बेटी का नाम ईवा था. जिसकी साल 1879 में 11 साल की उम्र में ही मौत हो गई थी. ईवा की मौत के बाद उसे पास के खाली जगह में दफना दिया गया.

ईवा की मजार
ईवा की मजार
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Published : Dec 26, 2019, 12:22 PM IST

औरंगाबाद: भारत को पारंपरिक और सांस्कृतिक उत्सवों का देश कहा जाता है. यहां एक साथ कई धर्मों के लोग रहते है. जिस वजह से यहां पर हमेशा मेलों और त्योहारों के मौसम रहता है. साल के विदाई के समय देश में क्रिसमस की धूम रही. इस दौरान जिले के दाउदनगर के सिपहा में गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल देखने को मिली.

दरअसल, यहां एक क्रिश्चियन लड़की का कब्र है, जहां क्रिसमस के दिन हर साल मेला लगता है. सबसे खास बात ये है कि मेले में मजार पर पूजा करने वाले लोग सबसे ज्यादा हिन्दू समाज के होते हैं.

गंगा-जमुनी तहजीब
मेले में आए हुए लोग

'38 साल से हो रही है पूजा-अर्चना'
बताया जाता है कि जिस जगह पर पूजा-अर्चना की जाती है वो एक 11 वर्षीय क्रिश्चियन लड़की ईवा की मजार है. इस जगह पर हर साल क्रिसमस के दिन हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. यहां लगातार 38वें साल पूजा और मेले का आयोजन किया जा रहा है.

मजार पर पूजा करते लोग
मजार पर पूजा करते लोग

कौन है ईवा?
दरअसल अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बारुण के पास सोन नदी से निकले नहर में परिवहन का काम होता था. इन नहरों की देखरेख के लिए अंग्रेज ऑफिसर नियुक्त होते थे. उन्हीं में से एक ऑफिसर की बंगला सिपहा के पास नियुक्त था. उसकी बेटी का नाम ईवा था. जिसकी मौत साल 1879 में 11 साल की उम्र में हो गई थी. ईवा की मौत के बाद उसे पास के खाली जगह में दफना दिया गया. देश की आजादी के पूर्व कब्र के पास अंग्रेज अधिकारी तैनात होते थे और कब्र की देखभाल की जाती रही.

पूजा के आयोजक
पूजा के आयोजक

'ईवा से बनी रक्षा देवी'
देश के आजाद होने के बाद अंग्रेज चले गए. लेकिन नहर से परिवहन करने वाले यात्री और आसपास के लोग कब्र के पास चढ़ावा देना आरंभ किया. वहीं, इस मजार पर पूजा करने की शुरूआत 38 साल पहले हुई. इस संबंध में पूजा आयोजक प्रो. गणेश प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि उनकी शादी के 14 साल बीत जाने के बाद भी उन्हें कोई संतान नही हुआ. जिसके बाद एक दिन उन्होंने कब्र के पास जाकर मन्नत मांगी और उन्हें चमत्कारिक रूप से एक संतान हुई, जो एक लड़की थी. पो. गुप्ता ने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम ईवा रखा और 1983 के क्रिसमस से विधिवत पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं. कालांतर में इसकी महिमा धीरे-घीरे क्षेत्र में विख्यात हो गई और इस मजार को रक्षा देवी घोषित कर दिया गया.

पेश है एक रिपोर्ट

जुटती है हजारों की भीड़
इस, मजार पर हर साल हजारों की भीड़ जुटती है. मजार पर पूजा करने आए एक श्रद्धालु बताते हैं कि वो बचपन से ही इस मेले को देखते आ रहे हैं. यहां पर कुछ अलौकिक शक्ति है. इस जगह पर हर साल 25 दिसंबर के क्रिसमस के दिन हजारों लोगों की भीड़ जुटती है.

औरंगाबाद: भारत को पारंपरिक और सांस्कृतिक उत्सवों का देश कहा जाता है. यहां एक साथ कई धर्मों के लोग रहते है. जिस वजह से यहां पर हमेशा मेलों और त्योहारों के मौसम रहता है. साल के विदाई के समय देश में क्रिसमस की धूम रही. इस दौरान जिले के दाउदनगर के सिपहा में गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल देखने को मिली.

दरअसल, यहां एक क्रिश्चियन लड़की का कब्र है, जहां क्रिसमस के दिन हर साल मेला लगता है. सबसे खास बात ये है कि मेले में मजार पर पूजा करने वाले लोग सबसे ज्यादा हिन्दू समाज के होते हैं.

गंगा-जमुनी तहजीब
मेले में आए हुए लोग

'38 साल से हो रही है पूजा-अर्चना'
बताया जाता है कि जिस जगह पर पूजा-अर्चना की जाती है वो एक 11 वर्षीय क्रिश्चियन लड़की ईवा की मजार है. इस जगह पर हर साल क्रिसमस के दिन हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. यहां लगातार 38वें साल पूजा और मेले का आयोजन किया जा रहा है.

मजार पर पूजा करते लोग
मजार पर पूजा करते लोग

कौन है ईवा?
दरअसल अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बारुण के पास सोन नदी से निकले नहर में परिवहन का काम होता था. इन नहरों की देखरेख के लिए अंग्रेज ऑफिसर नियुक्त होते थे. उन्हीं में से एक ऑफिसर की बंगला सिपहा के पास नियुक्त था. उसकी बेटी का नाम ईवा था. जिसकी मौत साल 1879 में 11 साल की उम्र में हो गई थी. ईवा की मौत के बाद उसे पास के खाली जगह में दफना दिया गया. देश की आजादी के पूर्व कब्र के पास अंग्रेज अधिकारी तैनात होते थे और कब्र की देखभाल की जाती रही.

पूजा के आयोजक
पूजा के आयोजक

'ईवा से बनी रक्षा देवी'
देश के आजाद होने के बाद अंग्रेज चले गए. लेकिन नहर से परिवहन करने वाले यात्री और आसपास के लोग कब्र के पास चढ़ावा देना आरंभ किया. वहीं, इस मजार पर पूजा करने की शुरूआत 38 साल पहले हुई. इस संबंध में पूजा आयोजक प्रो. गणेश प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि उनकी शादी के 14 साल बीत जाने के बाद भी उन्हें कोई संतान नही हुआ. जिसके बाद एक दिन उन्होंने कब्र के पास जाकर मन्नत मांगी और उन्हें चमत्कारिक रूप से एक संतान हुई, जो एक लड़की थी. पो. गुप्ता ने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम ईवा रखा और 1983 के क्रिसमस से विधिवत पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं. कालांतर में इसकी महिमा धीरे-घीरे क्षेत्र में विख्यात हो गई और इस मजार को रक्षा देवी घोषित कर दिया गया.

पेश है एक रिपोर्ट

जुटती है हजारों की भीड़
इस, मजार पर हर साल हजारों की भीड़ जुटती है. मजार पर पूजा करने आए एक श्रद्धालु बताते हैं कि वो बचपन से ही इस मेले को देखते आ रहे हैं. यहां पर कुछ अलौकिक शक्ति है. इस जगह पर हर साल 25 दिसंबर के क्रिसमस के दिन हजारों लोगों की भीड़ जुटती है.

Intro:संक्षिप्त- औरंगाबाद जिले के दाउदनगर के पास सिपहां में एक क्रिश्चियन लड़की का कब्र है जहां क्रिसमस के दिन मेला लगता है और हिन्दू विधि विधान से पूजा होती है। खासबात यह है कि इस मेले में पूजा करने वाले अधिकतर हिन्दू ही होते हैं।

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औरंगाबाद- भारत की संस्कृति हमेशा से सर्वधर्म समभाव की रही है। ऐसा ही एक नजारा जिले के दाउदनगर के सिपहां लख के पास देखने को मिलता है । जहां हर वर्ष क्रिसमस के दिन हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं और एक क्रिश्चियन लड़की ईवा की मजार पर पूजा अर्चना करते हैं। इस मजार में दफन 11 वर्षीय ईवा को वे देवी का दर्जा देते हैं । यहां लगातार अड़तीसवे वर्ष पूजा-अर्चना और मेले का आयोजन हुआ।



Body:औरंगाबाद जिले के दाउदनगर के पास सिपहां लख के पास स्थित ईवा का मजार कौमी एकता का मिसाल बना हुआ है। क्रिश्चियन लड़की ईवा के इस मजार पर पिछले 38 सालों से क्रिसमस के दिन पूजा-अर्चना होती आ रही है।

कौन है ईवा

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बारुण के पास इंद्रपुरी से सोन नदी से निकले नहर से ही परिवहन का कार्य होता था। यह नहर सोन नदी से लेकर पटना गंगा जी में समाप्त होती है। इन नहरों से परिवहन और सिंचाई की देखरेख के लिए अंग्रेज ऑफिसर नियुक्त होते थे। उन्हीं में से एक ऑफिसर का बंगला सिपहा लख के पास था। जहां 1879 ईस्वी में उनकी 11 वर्षीय बेटी ईवा की मृत्यु हो गई थी । मृत्यु के बाद वहां खाली पड़े पास की जगह में उसे दफना दिया गया था । जब तक देश आजाद नहीं हुआ था तबतक वहां किसी न किसी अंग्रेज अफसर की नियुक्ति होती रही। और कब्र की भी देखभाल होती रही।

कैसे लिया मज़ार के रूप

देश आजाद होने के बाद अंग्रेज यहां से चले गए लेकिन आसपास रहने वाले लोग और नहर से परिवहन करने वाले बोट के यात्री कुछ ना कुछ वहां जाकर कुछ न कुछ चढ़ावा चढ़ाते रहते थे।
लेकिन पूजा की असली शुरुआत आज से 38 वर्ष पहले दाउदनगर कॉलेज दाउदनगर के प्रोफेसर गणेश प्रसाद गुप्ता ने की। हर वर्ष लगातार क्रिसमस के दिन मेला लगाने और देवी पूजा की परंपरा उन्होंने ही शुरू की। प्रोफेसर गणेश प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि उन्हें शादी के 14 वर्ष बाद तक कोई संतान नहीं हुआ था। इस कारण वे विचलित से रहते थे । उन्हें लगता था कि इस कब्र में कोई शक्ति है क्योंकि वह देखते थे कि लोग यहां यदा-कदा आकर शीश झुकाते हैं, मन्नत मांगते हैं । वे भी ईवा के कब्र पर गए और मन्नत मांगी। वे क्रिसमस के दिन पूजा अर्चना किये थे और कब्र को साफ सुथरा करके मज़ार का रूप दे दिया। 1983 में उनके घर में पहला सन्तान हुआ। जो लड़की थी। प्रोफेसर गुप्ता ने अपनी लड़की का नाम ईवा ही रखा। वे 1983 के क्रिसमस से ही पूजा अर्चना शुरू कर दिया था। ईवा के मजार को विधिवत रक्षा देवी घोषित कर दिया गया।

हिन्दू श्रद्धालुओं की संख्या सबसे ज्यादा

पास के गांव बड़का बिगहा से आने वाले श्रद्धालु लड्डू सिंह राजपूत बताते हैं कि वह बचपन से ही इस मेले को देखते आ रहे हैं । उन्हें लगता है कि यहां कुछ ऐसी दैवी शक्ति जरूर है जिस कारण यहां प्रतिवर्ष लोगों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है । यहां आने वाले लोगों के मन में एक श्रद्धा होती है और वे श्रद्धा भाव से पूरे हिंदू रीती रिवाज से पूजा अर्चना करते हैं।इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि देवी की तरह पूजा अर्चना करने आने वालों में सबसे अधिक हिंदू श्रद्धालु ही हैं जो हर वर्ष 25 दिसंबर को क्रिसमस दिवस पर करते आ रहे हैं।


Conclusion:भारत की पुरातन सनातन संस्कृति में महिलाओं को देवी मानकर पूजने की पुरानी परम्परा रही है। आस्था और विश्वास के इसी संगम ने ईवा के कब्र को 140 वर्ष बाद भी प्रासंगिक बनाये हुए है और श्रद्धालुओं की भीड़ भी लगातार बढ़ती जा रही है।

विसुअल- रेडी टू अपलोड
बाइट- प्रो गणेश प्रसाद गुप्ता, पूजा के आयोजक
बाइट- लड्डू सिंह राजपूत, श्रद्धालु
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