भोजपुर: बिहार के आरा में मोहर्रम के दौरान मजलिस और जुलूस का सिलसिला जारी है. बीते मंगलवार को कर्बला के शहीदों के नाम का एक मातमी जुलूस निकाला गया. इस जुलूस में शहर के महादेवा स्थित डिप्टी शेर अली के इमामबाड़ा से स्व. अहमद हुसैन की तरफ से शहर 'बीबी का डोला' भी निकला गया. जो शहर में महादेवा रोड, धर्मन चौक, गोपाली चौक, शीश महल चौक, बिचली रोड होते हुए वापस धर्मन चौक, महादेवा रोड स्थित डिप्ली शेर गली के इमामबाड़ा में जाकर समाप्त हुआ.
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200 साल से निकल रहा बीबी का डोलाः जुलूस में शामिल मातमी रेयाज हुसैन ने बताया कि ये जुलूस निकलने की परम्परा लगभग 200 वर्ष पुरानी है. शिया समुदाय के लोग विशेषकर काले कपड़े पहनकर इस शोकपूर्ण घटना की याद में शोक मनाते हैं. जुलूस में सभी समुदाय के लोग शामिल रहते हुए अपना भरपूर सहयोग करते हैं. वहीं इस मौके पर मौजूद जेएनयू के रिसर्च स्कॉलर सादैन रजा ने कहा कि हम लोग गम मना कर ये संदेश देना चाहते हैं कि इमाम हुसैन को कितनी बरर्बता से शहीद किया गया इसके बावजूद इमाम ने सच्चाई और इंनासियत का दामन नहीं छोड़ा. हुसैन के आदर्श किसी एक धर्म के लिए नहीं है, उनके आदर्श तमाम मानव जाति के लिए हर दौर में प्रसांगिक रहेंगे.
"इमाम हुसैन के आदर्शों पर चल कर आज पूरी दुनिया में शांति स्थापित की जाती है. यही वजह है कि उनके आदर्शों को सिर्फ मुस्लिम सुदाय के लोगों द्वारा ही आत्मसात नहीं किया जाता, बल्कि महात्मा गांधी, भीम राव अम्बेडर, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, रविंद्र नाथ टैगोर, स्वामी शंकराचार्य , एडवर्ड ब्राउन, नेल्सन मंडेला, चार्ल्स डिकेन्स और रेनौल्ड निकोल्सन जैसे महापुरूषों ने भी इमाम के बताए हुए रास्ते पर चलने और उनकी कुर्बानी को याद रखने का संदेश दिया है"- सादैन रजा, रिसर्च स्कॉलर, जेएनयू
जुलूस में दिया गया भाईचारे का संदेशः इस जुलूस में सैयद अली हुसैन, सैयद हसनैन, सैयद शब्बीर हसन, सैयद रेयाज हुसैन और सैयद कमर बिलग्रामी ने इमाम हुसैन की याद में नौहा पढ़ा. जुलूस में शामिल लोग "है आज भी ज़माने में चर्चा हुसैन का, चलता है सारी दुनिया मे सिक्का हुसैन का, मज़हब की क़ैद है नहीं ज़िक्रे हुसैन में, हर हक़ परस्त हो गया शैदा हुसैन का" पढ़ते हुए बीबी के डोले के साथ-साथ चल रहे थे. जुलूस में छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल थे, जो इमाम की याद में मातम करते हुए प्रोसेशन के साथ-साथ चल रहे थे. जुलूस में "सर्व-धर्म हुसैनी एकता समाज" की तरफ़ से गुड्डू अंसारी, ओम प्रकाश "मुन्ना", महफूज़ आलम, लड्डन अंसारी, मेहदी हसन, वीर बहादुर और शमीम अहमद का इसके संचालन में महत्वपूर्ण योगदान रहा.
जुलूस में सुरक्षा का पुख्ता इंतजामः जुलूस में स्थानीय प्रशासन की ओर से सुरक्षा का सख्त बंदोबस्त किया गया था. शहर के टाउन थाना और नवादा पुलिस के जवान भारी संख्या में तैनात थे, जो जुलूस के साथ-साथ चल रहे थे. पुलिस के जवान जुलूस के मद्देनजर ट्रैफिक व्यवस्था को भी सुचारू बनाए हुए थे. जुलूस के दौरान किसा भी तरह की लोगों को कोई परेशानी ना हो प्रशासन की तरफ से इसका पूरा ध्यान रखा गया था. प्रशासन की तत्पर्यता के कारण मातमी जुलूस शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हुआ.
मोहर्रम शुरू होते ही शोक में डूब जाते हैं मुसलमान: कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत को याद करके मुसलमान मोहर्रम में गम मनाते हैं. मोहर्रम के महीने की शुरुआत होते ही मुसलमान शोक में डूब जाते हैं. ज्यादातर घरों में शादी और अन्य शुभ काम नहीं होते है. शिया समुदाय के लोग तो 2 महीने 8 दिन तक शोक मनाते हैं. इस दौरान इस समुदाय के लोग चमकदार कपड़ों से परहेज करते हैं. ज्यादातर लोग काला कपड़ा पहनते हैं. 2 महीने 8 दिन तक अपने घरों में शादी-ब्याह सहित अन्य खुशियों वाला कोई आयोजन नहीं करते हैं. यही नहीं वे लोग किसी अन्य समुदाय की खुशियों में शरीक होने से बचते हैं. इसके अलावा शिया समुदाय की महिलाएं इस दौरान श्रृंगार से भी परहेज करती हैं.