भोजपुर: आरा से महज 12 किलोमीटर दूर साधु-संतों की तपोभूमि वाला गांव है गुंडी, जहां विख्यात साधु-संतों ने साधना कर अपने प्रचंड तपोबल और आध्यात्मिक विचार-धाराओं के प्रचार-प्रसार से सम्पूर्ण भारतवर्ष पर सर्वोत्कृष्ट साधुता का अद्भुत पताका लहराया है. वैसे तो ये गांव वर्तमान में आरा के सांसद राज कुमार सिंह का गोद लिया हुआ गांव कहलाता है. लेकिन इस गांव का जितना विकास होना चाहिए उतना नहीं हुआ है.
यहां जो मंदिरों का निर्माण हुआ है वो काफी प्राचीन और अद्भुत शैली से निर्मित हैं. यहां बस इस बात की कमी है कि यहां प्रचार-प्रसार का अभाव है. साथ ही सामाजिक और राजनैतिक जागरुकता नहीं होने से भोजपुर का धरोहर संकट में है.
रंगनाथ जी का मंदिर है भोजपुर का धरोहर
यहां के प्रमुख मंदिरों में श्री रंगनाथ जी का बड़ा मंदिर है. कहा जाता है कि मंदिर की स्थापन सन 1808 ई. में ही हो गई थी. इस मंदिर की विशेषता है कि मंदिर की पूरी बनावट दक्षिण भारत के आधार पर है और साथ ही साथ पूजा पद्धति भी दक्षिण भारतीय पद्धति के अनुसार ही है. इस मंदिर के इष्ट देवता भगवान विष्णु हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर का जब निर्माण हो रहा था, उस वक्त बार-बार ऐसा हो रहा था कि मंदिर की बनावट में कुछ न कुछ त्रुटि आ जा रही थी.
इस मंदिर का निर्माण तीसरी बार में संपन्न हुआ, जब माघ का महीना आया. तब इस मंदिर में देखा गया कि भगवान सूर्य की पहली किरण मंदिर के गोपुरम के बीचों-बीच होकर सीधे रंगनाथ भगवान के गर्भ गृह तक पहुंच रही है, जैसे मदुरोई का मीनाक्षी मंदिर है ठीक उसी प्रकार से. इस मीनाक्षी मंदिर के निर्माण शिल्पी लिंग राज स्वामी के वंशज के द्वारा हुआ.
यहां दक्षिण भारतीय पद्धति से होती है पूजा
इस मंदिर का भी निर्माण काफी प्राचीन है और यहां की भी पूजा पद्धति दक्षिण भारतीय है. कहा जाता है कि ये भगवान विष्णु के ही एक यज्ञावतार है और इस मंदिर में इनकी प्रतिमा स्वम्भू है. इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां हर वर्ष सावन महीना में पूरे एक महीने का भगवान यज्ञावतार जी का झूलन होता है. साथ ही यहां पूरे सावन महीना में देश के जाने माने कलाकारों द्वारा भजन कीर्तन होते रहता है. कहा जाता है कि इस मंदिर में किसी समय में मद्रास से एक अवधूतनी आई थी वो काफी ही विदुषी थी, उसने यहां शास्त्रार्थ किया था और यहां के विद्वानों की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी.
यहां के साधु-संत थे ख्याति प्राप्त
बताया जाता है कि जब हिंदी साहित्य का भक्ति काल अंतिम चरण में था और रीतिकाल की शुरुआत हो चुकी थी. तब यहां के एक महान संत बाबा रामेश्वरदास ने भक्ति काव्य की धारा बहा रहे थे. लोगों की ऐसी मान्यता थी कि आध्यात्मिक विचारधारा लोगों को सही मार्गदशर्न कर रही है. सामाजिक सुधारों में इनका काफी योगदान रहा है. यहां के सुप्रसिद्ध बाबा अवधूत राम हुए जिनकी ख्याति देश में है. कहा जाता है कि बाबा छोटी सी ही उम्र में संसारिक भावनाओं से विरक्त हो आध्यात्म से जुड़ गए. उन्होंने तांत्रिक पूजा पद्धति को अपना कर भगवान और समाज की सेवा में तल्लीन रहे. इस गांव में और भी साधु संतों ने दैवीय आशीर्वाद पाकर समाज को एक-एक नई चेतना दी है, एक नई जाग्रति दी है.