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'रेशमी' सपने दिखा बुनकरों से वोट बटोरते हैं नेता, भुखमरी की कगार पर पहुंचे कारीगर

साल 1989 भागलपुर दंगे के बाद रेशम कारोबार में पूरी तरह से आग लग गई है. जिस भागलपुरी रेशम के धाक पूरी दुनिया में थी, आज वही रेशम स्थानीय बाजार में सिमट कर रह गया है.

रेशम बुनकर
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Published : Apr 6, 2019, 1:46 PM IST

भागलपुर: रेशम घर और भागलपुर एक-दूसरे के पर्याय हैं. लेकिन यहां के रेशम बुनकर आज सरकार की अनदेखी की मार झेल रहे हैं. जिले का बुनकर समाज आज भुखमरी के हाल में जीने को मजबूर हैं. जिस भागलपुरी रेशम के कपड़े पहन इंसानी जिस्म में चार चांद लग जाते हैं, उसी रेशम को तैयार करने वाले बुनकरों की जिंदगी में आज अंधेरा छा गया है.

1989 के दंगे के बाद दयनीय हो गई स्थिति
भागलपुर जिला रेशम के बिना अधूरा सा लगता है. लेकिन साल 1989 भागलपुर दंगे के बाद रेशम कारोबार में पूरी तरह से आग लग गई है. जिस भागलपुरी रेशम के धाक पूरी दुनिया में थी, आज वही रेशम स्थानीय बाजार में सिमट कर रह गया है. साथ ही इसे बनाने वाले बुनकर भी किसी तरह से अपनी जिंदगी का गुजर बसर कर रहे हैं.

वर्तमान सरकार बुनकरों की देखरेख में फेल
बुनकरों का कहना है कि जिस रेशम से भागलपुर की पहचान है, मौजूदा सरकार उसी पहचान को जीवंत रखने में फेल हो रही है. इसका फल है कि हमलोग आज भुखमरी के हालात में जिंदगी गुजार रहे हैं. किसी तरीके से अपने परिवार को चला रहे हैं. सरकार ने बुनकर क्रेडिट कार्ड भी दिया. लेकिन उससे बुनकरों को कोई खास फायदा नहीं हो पाया. सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च करके बुनकर सेट भी लोगों के लिए बनवाए लेकिन आज वह खंडहर बन चुका है.

अपनी बदहाली की बात बताते रेशम बुनकर

करोड़ों खर्च करने के बावजूद सुधरी नहीं स्थिति
आपको बता दें कि जब 1989 दंगे के बाद बुनकर की स्थिति खराब हो गई थी तो मौजूदा सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर बुनकर सेट बनवाए थे. ताकि बुनकर यहां से धागा खरीद कर और गुणकारी कर अपनी जिंदगी को अच्छे से जी सकें. लेकिन, करोड़ों की यह कल्याणकारी योजना भी बुनकरों की जिंदगी को बदलने के लिए नाकाफी रही. नतीजतन अभी भी बुनकरों की स्थिति काफी बदतर है.

हर बार की तरह इस बार भी नेता दिखा रहे सपने
76 साल के शाह अफाक अभी भी बुनकरी कर रहे है और मजबूरी की जिंदगी जी रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस बार भी चुनाव में नेता आ रहे हैं और स्थिति को बेहतर बनाने का वादा कर रहे हैं. लेकिन, अब उम्मीद खत्म हो गई है और सब्र का बांध टूट गया है. भागलपुर का चंपानगर इलाके के बुनकर इसी पेशे पर निर्भर हैं और लाखों लोग की जिंदगी बुनकरी के व्यवसाय से चलती है. बावजूद इसके सरकार किसी तरह की कोशिश करती नहीं दिख रही है.

भागलपुर: रेशम घर और भागलपुर एक-दूसरे के पर्याय हैं. लेकिन यहां के रेशम बुनकर आज सरकार की अनदेखी की मार झेल रहे हैं. जिले का बुनकर समाज आज भुखमरी के हाल में जीने को मजबूर हैं. जिस भागलपुरी रेशम के कपड़े पहन इंसानी जिस्म में चार चांद लग जाते हैं, उसी रेशम को तैयार करने वाले बुनकरों की जिंदगी में आज अंधेरा छा गया है.

1989 के दंगे के बाद दयनीय हो गई स्थिति
भागलपुर जिला रेशम के बिना अधूरा सा लगता है. लेकिन साल 1989 भागलपुर दंगे के बाद रेशम कारोबार में पूरी तरह से आग लग गई है. जिस भागलपुरी रेशम के धाक पूरी दुनिया में थी, आज वही रेशम स्थानीय बाजार में सिमट कर रह गया है. साथ ही इसे बनाने वाले बुनकर भी किसी तरह से अपनी जिंदगी का गुजर बसर कर रहे हैं.

वर्तमान सरकार बुनकरों की देखरेख में फेल
बुनकरों का कहना है कि जिस रेशम से भागलपुर की पहचान है, मौजूदा सरकार उसी पहचान को जीवंत रखने में फेल हो रही है. इसका फल है कि हमलोग आज भुखमरी के हालात में जिंदगी गुजार रहे हैं. किसी तरीके से अपने परिवार को चला रहे हैं. सरकार ने बुनकर क्रेडिट कार्ड भी दिया. लेकिन उससे बुनकरों को कोई खास फायदा नहीं हो पाया. सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च करके बुनकर सेट भी लोगों के लिए बनवाए लेकिन आज वह खंडहर बन चुका है.

अपनी बदहाली की बात बताते रेशम बुनकर

करोड़ों खर्च करने के बावजूद सुधरी नहीं स्थिति
आपको बता दें कि जब 1989 दंगे के बाद बुनकर की स्थिति खराब हो गई थी तो मौजूदा सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर बुनकर सेट बनवाए थे. ताकि बुनकर यहां से धागा खरीद कर और गुणकारी कर अपनी जिंदगी को अच्छे से जी सकें. लेकिन, करोड़ों की यह कल्याणकारी योजना भी बुनकरों की जिंदगी को बदलने के लिए नाकाफी रही. नतीजतन अभी भी बुनकरों की स्थिति काफी बदतर है.

हर बार की तरह इस बार भी नेता दिखा रहे सपने
76 साल के शाह अफाक अभी भी बुनकरी कर रहे है और मजबूरी की जिंदगी जी रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस बार भी चुनाव में नेता आ रहे हैं और स्थिति को बेहतर बनाने का वादा कर रहे हैं. लेकिन, अब उम्मीद खत्म हो गई है और सब्र का बांध टूट गया है. भागलपुर का चंपानगर इलाके के बुनकर इसी पेशे पर निर्भर हैं और लाखों लोग की जिंदगी बुनकरी के व्यवसाय से चलती है. बावजूद इसके सरकार किसी तरह की कोशिश करती नहीं दिख रही है.

Intro:SPECIAL
RESHAM BUNKARON KO HAR CHUNAW ME NETA DIKHATE HAI RESHAMI KHWAAB

भागलपुर अंग प्रदेश रेशम यह सभी बिल्कुल पर्याय है भागलपुर के लेकिन जैसे रेशम है तो बुनकर भी हैं एक बड़ा समाज जोकि इन दिनों भुखमरी की हालात में जी रहा है जिस भागलपुरी रेशम के कपड़े से इंसानी जिस्म में चार चांद लग जाते हैं उसी रेशम को तैयार करने वाले बुनकरों की जिंदगी बद से बदतर हो गई है जब भागलपुर की बात करते हैं तो रेशम के बिना क्या बात बिल्कुल अधूरी रह जाती है लेकिन सन 1989 भागलपुर दंगे के बाद रेशम में पूरी तरह से आग लग गई है जिस भागलपुरी रेशम के धाक पूरी दुनिया में थी, आज वही रेशम स्थानीय बाजार में सिमट कर रह गया है और उसे बनाने वाले बुनकर किसी तरह से अपनी जिंदगी का गुजर बसर कर रहे हैं ।


Body:बुनकरों का कहना है कि जिस रेशम से भागलपुर की पहचान होती है मौजूदा सरकार उसी को तवज्जो नहीं दे पा रही है और हम लोग आज भुखमरी के हालात में जिंदगी गुजार रहे हैं किसी तरीके से अपने परिवार को चला रहे हैं सरकार ने बुनकर क्रेडिट कार्ड भी दिया लेकिन उससे बुनकरों को कोई खास फायदा नहीं हो पाया सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर कर बुनकर सेट भी लोगों के लिए बनवाए लेकिन आज वह खंडहर की स्थिति में है जब 1989 दंगे के बाद बुनकर की स्थिति खराब हो गई थी तो मौजूदा सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर बुनकर सेड को बनवाए थे ताकि बुनकर यहां पर से धागा खरीद कर और गुणकारी कर अपनी जिंदगी को अच्छे से जी सकें लेकिन करोड़ों की या कल्याणकारी योजना भी बुनकरों की जिंदगी को बदलने के लिए नाकाफी रही नतीजतन अभी भी बुनकरों की स्थिति काफी बदतर है इस बार भी चुनाव में नेता आ रहे हैं और स्थिति को बेहतर बनाने का वादा कर रहे हैं लेकिन अब उम्मीद खत्म हो गई है और सब्र का बांध टूट गया है अब बस खुद पर भरोसा है कि जब तक जिंदगी है किसी तरह से गुजर बसर कर अपने परिवार को दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो जाए और बच्चे और परिवार भूख से नहीं मरे ।


Conclusion:76 साल के शाह अफाक अभी भी बुनकरी कर रहे है और मजबूरी की जिंदगी जी रहे हैं ,किसी तरह से दो जून की रोजी का बंदोबस्त करना साफा के लिए मजबूरी है दूसरा कोई काम शाह अफाक के बस की बात नहीं है इसलिए बुनकरी ही करते हैं , भागलपुर का चंपानगर इलाके के बुनकर इसी पेशे पर निर्भर है और लाखों लोग की जिंदगी बुनकरी के व्यवसाय से चलती है ।1989 दंगे के बाद भागलपुर का रेशम पूरी तरह से बर्बाद हो गया , और लाखो बुनकरों की रोजी रोटी छिन गयी ,सरकार ने रेशम बुनकरों को फिर से अपने पारंपरिक पेशा में फिर से मुख्य धारा में लाने के लिए करोड़ों के योजना बुनकर शेड एवं बुनकर क्रेडिट कार्ड जैसी योजनाओं के शुरू किया लेकिन बुनकरों के लिए ये योजनाएं नाकाफ़ी साबित हुईं और बुनकरों के हालात दिन ब दिन बदतर होते चले गए ,हर चुनाव के दौरान बुनकर किसी न किसी पार्टी के एजेंडे में शामिल रहते है लेकिन कोई भी लोग इनकी मदद को आज तक आगे नही आया है ,जिसकी वजह से लोगी भी अच्छी खासी नाराजगी भी देखने को मिल रही है । हर चुनाव में नेता इन बुनकरों को रेशमी ख्वाब दिखा दे लेकिन उस भाग को आज तक कोई पूरा नहीं कर पाया।
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