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फिर याद आए मशहूर लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, बिहार के भागलपुर से जुड़ी हैं खास यादें - विष्णु प्रभाकर

शरतचंद्र ने अपनी लेखनी के जरिए महिलाओं के लिए बहुत काम किया. उन्होंने समाज में महिलाओं को समान दर्जा दिलाने की लड़ाई लड़ी. उन्होंने रचनाएं भले बांग्ला भाषा में की. लेकिन, उनकी लेखनी का सार भाषा की बेड़ियों में नहीं बंध सका.

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Published : Sep 20, 2019, 4:05 PM IST

भागलपुर: बांग्ला भाषा के मशहूर उपन्यासकार और लघुकथाकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय किसी पहचान के मोहताज नहीं है, साहित्य के क्षेत्र में इनका योगदान अमूल्य है. शरतचंद्र ने अपनी लेखनी के जरिए समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की. जिस कारण यह विद्रोही लेखक के रूप में पहचाने जाने लगे. बहुत कम लोगों को पता होगा कि शरतचंद्र का बिहार के भागलपुर से खास लगाव रहा है.

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प्राइमरी दुर्गाचरण विद्यालय

दरअसल, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने जीवन का लंबा अरसा भागलपुर में बिताया. बीते 15 सितंबर को उनका जन्मदिन था, जो जिले में मनाया गया. शरतचंद्र का ननिहाल भागलपुर में है. लेखनी में इन्होंने वह कीर्तिमान हासिल किया कि इनके तमाम उपन्यासों पर बॉलीवुड में कई फिल्में बनी, जो सिल्वर स्क्रीन पर ब्लॉकबस्टर साबित हुईं.

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स्कूल प्रबंधन ने कहा अमर उपन्यासकार

भागलपुर से जुड़ी हैं खास यादें
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के 'देवदास' उपन्यास पर फिल्म बनाकर निर्देशक ने जनता के दिलों में हमेशा के लिए देव और पारो के किरदार को जींवत कर दिया. वहीं, 'परिणीता' पर बनी फिल्म ने प्रेम में सादगी का संदेश दिया. बता दें कि शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने भागलपुर के प्राइमरी दुर्गाचरण विद्यालय में शिक्षा ली थी. आज भी यह स्कूल जिले में है. जहां परिसर में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की प्रतिमा स्थापित है. आगे चलकर उन्होंने भागलपुर के टीएनबी कॉलेजिएट से उच्च शिक्षा प्राप्त की.

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जानकारों ने दी जानकारी

भाषा की मोहताज नहीं हैं उनकी रचनाएं
जानकार कहते हैं कि शरतचंद्र ने अपने निजी जीवन की घटनाओं से प्रभावित होकर इतनी प्रभावी रचनाएं की. शरतचंद्र ने अपनी लेखनी के जरिए महिलाओं के लिए बहुत काम किया. उन्होंने समाज में महिलाओं को समान दर्जा दिलाने की लड़ाई लड़ी. उन्होंने रचनाएं भले बांग्ला भाषा में की. लेकिन, उनकी लेखनी का सार भाषा की बेड़ियों में नहीं बंध सका. उनकी लेखनी पर हिंदी और तमाम क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्में बनी.

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शरतचंद्र की रचनाएं

शरतचंद्र की लेखनी में विलक्षण संवेदना थी
मौजूदा समय में शरतचंद्र का अस्तित्व भागलपुर में ही खत्म होता जा रहा है. ऐसे में देश की बात करना तो बेमानी है. आज जिले में इनकी पहचान स्कूल प्रांगण में बने एकमात्र स्टैचू से होती है. शरतचंद्र के ननिहाल में रह रहे उनके रिश्तेदार कहते हैं कि इतने महान साहित्यकार की उपेक्षा देखकर दुख होता है. शरतचंद्र की लेखनी में विलक्षण संवेदना झलकती थी.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

साहित्य में आज भी प्रासंगिक हैं शरतचंद्र
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की जिंदगी को मशहूर लेखक विष्णु प्रभाकर ने अपनी लेखनी में उतारा. जिले के बंगाली समुदाय से जुड़े और अंग्रेजी अखबार के वरिष्ठ पत्रकार गौतम सरकार ने शरदचंद के बारे में कहा कि वह विद्रोही तेवर के लेखक थे. समाज में फैले छुआछूत और महिलाओं की उपेक्षा के खिलाफ शरतचंद्र ने आवाज बुलंद की. समाज के प्रति उनके योगदान के लिए वह कहीं ना कहीं साहित्य जगत में आज भी प्रासंगिक हैं.

भागलपुर: बांग्ला भाषा के मशहूर उपन्यासकार और लघुकथाकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय किसी पहचान के मोहताज नहीं है, साहित्य के क्षेत्र में इनका योगदान अमूल्य है. शरतचंद्र ने अपनी लेखनी के जरिए समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की. जिस कारण यह विद्रोही लेखक के रूप में पहचाने जाने लगे. बहुत कम लोगों को पता होगा कि शरतचंद्र का बिहार के भागलपुर से खास लगाव रहा है.

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प्राइमरी दुर्गाचरण विद्यालय

दरअसल, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने जीवन का लंबा अरसा भागलपुर में बिताया. बीते 15 सितंबर को उनका जन्मदिन था, जो जिले में मनाया गया. शरतचंद्र का ननिहाल भागलपुर में है. लेखनी में इन्होंने वह कीर्तिमान हासिल किया कि इनके तमाम उपन्यासों पर बॉलीवुड में कई फिल्में बनी, जो सिल्वर स्क्रीन पर ब्लॉकबस्टर साबित हुईं.

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स्कूल प्रबंधन ने कहा अमर उपन्यासकार

भागलपुर से जुड़ी हैं खास यादें
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के 'देवदास' उपन्यास पर फिल्म बनाकर निर्देशक ने जनता के दिलों में हमेशा के लिए देव और पारो के किरदार को जींवत कर दिया. वहीं, 'परिणीता' पर बनी फिल्म ने प्रेम में सादगी का संदेश दिया. बता दें कि शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने भागलपुर के प्राइमरी दुर्गाचरण विद्यालय में शिक्षा ली थी. आज भी यह स्कूल जिले में है. जहां परिसर में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की प्रतिमा स्थापित है. आगे चलकर उन्होंने भागलपुर के टीएनबी कॉलेजिएट से उच्च शिक्षा प्राप्त की.

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जानकारों ने दी जानकारी

भाषा की मोहताज नहीं हैं उनकी रचनाएं
जानकार कहते हैं कि शरतचंद्र ने अपने निजी जीवन की घटनाओं से प्रभावित होकर इतनी प्रभावी रचनाएं की. शरतचंद्र ने अपनी लेखनी के जरिए महिलाओं के लिए बहुत काम किया. उन्होंने समाज में महिलाओं को समान दर्जा दिलाने की लड़ाई लड़ी. उन्होंने रचनाएं भले बांग्ला भाषा में की. लेकिन, उनकी लेखनी का सार भाषा की बेड़ियों में नहीं बंध सका. उनकी लेखनी पर हिंदी और तमाम क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्में बनी.

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शरतचंद्र की रचनाएं

शरतचंद्र की लेखनी में विलक्षण संवेदना थी
मौजूदा समय में शरतचंद्र का अस्तित्व भागलपुर में ही खत्म होता जा रहा है. ऐसे में देश की बात करना तो बेमानी है. आज जिले में इनकी पहचान स्कूल प्रांगण में बने एकमात्र स्टैचू से होती है. शरतचंद्र के ननिहाल में रह रहे उनके रिश्तेदार कहते हैं कि इतने महान साहित्यकार की उपेक्षा देखकर दुख होता है. शरतचंद्र की लेखनी में विलक्षण संवेदना झलकती थी.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

साहित्य में आज भी प्रासंगिक हैं शरतचंद्र
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की जिंदगी को मशहूर लेखक विष्णु प्रभाकर ने अपनी लेखनी में उतारा. जिले के बंगाली समुदाय से जुड़े और अंग्रेजी अखबार के वरिष्ठ पत्रकार गौतम सरकार ने शरदचंद के बारे में कहा कि वह विद्रोही तेवर के लेखक थे. समाज में फैले छुआछूत और महिलाओं की उपेक्षा के खिलाफ शरतचंद्र ने आवाज बुलंद की. समाज के प्रति उनके योगदान के लिए वह कहीं ना कहीं साहित्य जगत में आज भी प्रासंगिक हैं.

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देश के मशहूर उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की वर्षगांठ पर खास रिपोर्ट

बचपन से लेकर युवा होने तक शरत चंद्र चट्टोपाध्याय कि जिंदगी भागलपुर के ही गलियारों में गुजरी थी ननिहाल में अभी भी उनके संबंधी मनाते हैं जन्मदिन

बॉलीवुड के बड़े बड़े निर्देशक ने रंगीन पर्दे की दुनिया में देवदास और परिणीता जैसे फिल्म का सफल प्रदर्शन कर हर एक किरदार को इंसानी जहन में हमेशा के लिए समाहित कर दिया है संजय लीला भंसाली की करोड़ों की लागत से बनी फिल्म देवदास की पारो और चंद्रमुखी किरदार के सूत्रधार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की 143 वीं जयंती बीते कल बहुत ही साधारण रूप से भागलपुर के माणिक सरकार में स्थित प्राइमरी दुर्गाचरण स्कूल में एवं ननिहाल में बहुत ही सामान्य तरीके से मनाई गई ।

बॉलीवुड एवं अन्य सिनेमा उद्योग ने देवदास और परिणीता जैसी सफल फिल्मों में उपन्यासकार शरतचंद कि खुद की जिंदगी को किरदारों के रूप में हिंदी और ना जाने कितनी भाषाओं में सिनेमा के पर्दे पर सफलतापूर्वक प्रदर्शित कर करोड़ों रुपए कमाए थे

यह वही देवदास और परिणीता के रचयिता हैं जिसके फिल्म ने बिजनेस कर करोड़ों कमाकर बॉलीवुड की दुनिया में इतिहास रच डाला है हिंदी में देवदास फिल्म का तीन बार अलग अलग बॉलीवुड के बड़े बड़े सितारे वक्त के अलग-अलग आयाम पर सफलतापूर्वक प्रदर्शित कर चुके हैं लेकिन इन फिल्मों के सूत्रधार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के बारे में शायद ही इन फिल्मी हस्तियों एवं फिल्म उद्योग से जुड़े हुए निर्देशक को फिक्र होगी की शरद चंद चट्टोपाध्याय का अस्तित्व सिर्फ एक नाम से जानी जाने वाली सड़क एवं दुर्गाचरण प्राइमरी स्कूल के स्टेच्यू पर आकर सिमट चुका है शरद चंद के ननिहाल में रह रहे उनके संबंधियों को आज भी यह दर्द होता है कि जिस उपन्यासकार की किताबों पर करोड़ों और अरबों कमाने वाली फिल्म बन रही है वही सरकार अपने इस ऐतिहासिक धरोहर की कद्र नहीं कर पा रही है Body:
शरतचंद चट्टोपाध्याय की जिंदगी पर मशहूर उपन्यासकार और उनकी जिंदगी के काफी करीब रहे विष्णु प्रभाकर ने उनकी जिंदगी को अपने उपन्यास में उतारा था

यह वही शरतचंद्र चट्टोपाध्याय हैं जिन की जीवनी पर मशहूर उपन्यासकार विष्णु प्रभाकर ने आवारा मसीहा लिखा है शरतचंद चट्टोपाध्याय की रचनाएं आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है इनकी प्रसिद्ध रचनाओं में श्रीकांत देवदास और परिणीता जैसे कई उपन्यास शामिल है जिसमें शरदचंद चट्टोपाध्याय की छवि स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है यह जगजाहिर है कि उनकी हर एक रचना उनकी जिंदगी से जुड़ी हुई चीजों को बयान करती है यह वही कुर्सी है जिस पर कभी सदस्य चट्टोपाध्याय अनंत कल्पनाओं में खोए रहते थे और कलमबद्ध कर महान रचनाओं में पिरो दिया। यह इमारत करीबन 60 साल पहले कालिदासी की नाम की मशहूर नर्तकी का था जिसके नेत्र कला की चर्चा पूरे पूर्वी भारत में थी सन उन्नीस के दौरान भागलपुर बंगाल के वर्धमान का हिस्सा हुआ करता था और पूरे भागलपुर के कई हिस्सों में बांग्ला संस्कृति और सभ्यता से जुड़े लोग रहा करते थे उसी दौरान बचपन में ही शरदचंद अपने ननिहाल भागलपुर आकर रहने लगे थे और यही कि दुर्गाचरण स्कूल में उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और भागलपुर के टीएनबी कॉलेजिएट से उच्च शिक्षा प्राप्त की उनकी रचना देवदास में जिस पारो से देवदास प्यार करता है दरअसल में उनकी खुद की प्रेमिका अनुपमा है लेकिन रसूख में काफी अंतर होने की वजह से शरद चंद के घरवाले ने शरद चंद के प्रेम को तवज्जो नहीं दिया वहीं से फिर शरद चंद ने काली दासी नर्तकी के कोठे में पहुंचकर मुजरा सुनने लगे काली दासी के नृत्य एवं हुस्न की चर्चा उस समय पूरे पूर्वी भारत में थी लेकिन कालिदास जी भी शरद की स्थिति को देखकर उससे प्रेम में बंध गई थी । Conclusion:समाज के वंचित और उपेक्षित महिलाओं को लेकर काफी संजीदा रहते थे उपन्यासकार शरतचंद चट्टोपाध्याय
भागलपुर के बंगाली समुदाय से जुड़े हुए एवं अंग्रेजी अखबार के वरिष्ठ पत्रकार गौतम सरकार ने शरदचंद के बारे में उनके विद्रोही तेवर को लेकर बताया कि किस तरह उस समय समाज में छुआछूत एवं महिलाएं समाज में उपेक्षित थी शरद चंद ने खुलकर समाज के इस परंपरा के खिलाफ जंग छेड़ा और अपने उपन्यास में औरत को तवज्जो दिया कुल मिलाकर अगर बात करें तो आज इस महिला सशक्तिकरण की हम बात कर रहे हैं इसी मानसिकता को लेकर शरत ने साहित्य के माध्यम से समाज को जगाने का काम किया था उनकी रचना की एक पात्र जिससे वह प्यार करते थे नीरु या नीरूपमा जो कि बाल विधवा थी उस चरित्र को लेकर उन्होंने देवदास की रचना की ।

बाइट :प्रधानाचार्य छोटी दुर्गा चरण स्कूल भागलपुर
बाइट:शान्तनु गांगुली ,ननीहाल के रिश्तेदार नारंगी शर्ट में
बाइट:गौतम सरकार, वरिष्ठ पत्रकार ,द टेलीग्राफ हरे शर्ट में
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