भागलपुर: बांग्ला भाषा के मशहूर उपन्यासकार और लघुकथाकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय किसी पहचान के मोहताज नहीं है, साहित्य के क्षेत्र में इनका योगदान अमूल्य है. शरतचंद्र ने अपनी लेखनी के जरिए समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की. जिस कारण यह विद्रोही लेखक के रूप में पहचाने जाने लगे. बहुत कम लोगों को पता होगा कि शरतचंद्र का बिहार के भागलपुर से खास लगाव रहा है.
दरअसल, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने जीवन का लंबा अरसा भागलपुर में बिताया. बीते 15 सितंबर को उनका जन्मदिन था, जो जिले में मनाया गया. शरतचंद्र का ननिहाल भागलपुर में है. लेखनी में इन्होंने वह कीर्तिमान हासिल किया कि इनके तमाम उपन्यासों पर बॉलीवुड में कई फिल्में बनी, जो सिल्वर स्क्रीन पर ब्लॉकबस्टर साबित हुईं.
भागलपुर से जुड़ी हैं खास यादें
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के 'देवदास' उपन्यास पर फिल्म बनाकर निर्देशक ने जनता के दिलों में हमेशा के लिए देव और पारो के किरदार को जींवत कर दिया. वहीं, 'परिणीता' पर बनी फिल्म ने प्रेम में सादगी का संदेश दिया. बता दें कि शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने भागलपुर के प्राइमरी दुर्गाचरण विद्यालय में शिक्षा ली थी. आज भी यह स्कूल जिले में है. जहां परिसर में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की प्रतिमा स्थापित है. आगे चलकर उन्होंने भागलपुर के टीएनबी कॉलेजिएट से उच्च शिक्षा प्राप्त की.
भाषा की मोहताज नहीं हैं उनकी रचनाएं
जानकार कहते हैं कि शरतचंद्र ने अपने निजी जीवन की घटनाओं से प्रभावित होकर इतनी प्रभावी रचनाएं की. शरतचंद्र ने अपनी लेखनी के जरिए महिलाओं के लिए बहुत काम किया. उन्होंने समाज में महिलाओं को समान दर्जा दिलाने की लड़ाई लड़ी. उन्होंने रचनाएं भले बांग्ला भाषा में की. लेकिन, उनकी लेखनी का सार भाषा की बेड़ियों में नहीं बंध सका. उनकी लेखनी पर हिंदी और तमाम क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्में बनी.
शरतचंद्र की लेखनी में विलक्षण संवेदना थी
मौजूदा समय में शरतचंद्र का अस्तित्व भागलपुर में ही खत्म होता जा रहा है. ऐसे में देश की बात करना तो बेमानी है. आज जिले में इनकी पहचान स्कूल प्रांगण में बने एकमात्र स्टैचू से होती है. शरतचंद्र के ननिहाल में रह रहे उनके रिश्तेदार कहते हैं कि इतने महान साहित्यकार की उपेक्षा देखकर दुख होता है. शरतचंद्र की लेखनी में विलक्षण संवेदना झलकती थी.
साहित्य में आज भी प्रासंगिक हैं शरतचंद्र
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की जिंदगी को मशहूर लेखक विष्णु प्रभाकर ने अपनी लेखनी में उतारा. जिले के बंगाली समुदाय से जुड़े और अंग्रेजी अखबार के वरिष्ठ पत्रकार गौतम सरकार ने शरदचंद के बारे में कहा कि वह विद्रोही तेवर के लेखक थे. समाज में फैले छुआछूत और महिलाओं की उपेक्षा के खिलाफ शरतचंद्र ने आवाज बुलंद की. समाज के प्रति उनके योगदान के लिए वह कहीं ना कहीं साहित्य जगत में आज भी प्रासंगिक हैं.