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मधुबनी पेंटिंग की तर्ज पर अंग प्रदेश की मंजूषा को पहचान दिलाने की पहल

भागलपुर की प्रसिद्ध पेंटिंग मंजूषा अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है. क्योंकि इस पेंटिंग का बाजार में भी काफी डिमांड है. मंजूषा पेंटिंग से बुने हुए सिल्क के कपड़े देश और विदेश में काफी अच्छे दामों में बिकते हैं. इसकी खास बात यह है कि यह सिर्फ लाल, हरा और पीला इन तीन रंगों से ही तैयार होता है.

पेंटिंग मंजूषा
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Published : Jun 25, 2019, 1:25 PM IST

भागलपुरः इन दिनों सरकारी महकमे में भागलपुर की प्रसिद्ध चित्र मंजूषा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कवायद जोरों पर है. मंजूषा पेंटिंग भागलपुर में सभी सरकारी भवनों में पायी जाती है. पर अब यह पेंटिंग्स विक्रमशिला एक्सप्रेस की कोच पर भी दिखेंगी.

अंग प्रदेश की मंजूषा को पहचान दिलाने की पहल

भागलपुर की प्रसिद्ध पेंटिंग मंजूषा अब किसी परिचय की मोहताज नहीं है. क्योंकि इस पेंटिंग का बाजार में भी काफी डिमांड है. मंजूषा पेंटिंग से बुने हुए सिल्क के कपड़े देश और विदेश में काफी अच्छे दामों में बिकते हैं. इसकी खास बात यह है कि यह सिर्फ लाल, हरा, पीला तीन रंगों से ही तैयार होता है.

bhagalpur
विक्रमशिला एक्सप्रेस पर मंजूषा

मंजूषा की जानकार चक्रवर्ती देवी
मंजूषा को बनाने वाली चक्रवर्ती देवी अब इस दुनिया में नहीं हैं. वो सिर्फ वहीं एक महिला थी जो इस प्राचीन कला को जानती थीं और उन्होंने कई लोगों को सिखा कर इस कला को पुनर्जीवित कर पहचान दिलाने में खास भूमिका अदा की. चक्रवर्ती देवी को अगर लोक कला मंजूषा की जननी कहा जाए तो गलत नहीं होगा. क्योंकि चक्रवर्ती देवी ही वो महिला हैं जिन्होंने इसका प्रशिक्षण और भी लोगों को देकर इस लोक कला को जिंदा रखा.

bhagalpur
मंजूषा पेंटिंग

टैक्सटाइल इंडस्ट्री में मंजूषा प्रसिद्ध
बता दें की मंजूषा अंग प्रदेश की वह चित्र गाथा है जो आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. टैक्सटाइल इंडस्ट्री में मंजूषा ने अपनी मौजूदगी दर्ज कर दी है. साथ ही भागलपुर में जितने भी प्रशासनिक भवन और दीवार हैं, हर जगह मंजूषा के चित्र उकेरे गए हैं ताकि मंजूषा अपने अस्तित्व में वापस लौट सकें. मंजूषा चित्र गाथा अंग प्रदेश का एक इतिहास है. इसे जीवित रखने के लिए वैश्विक सरकार के इस कदम की लोग सराहना कर रहे हैं.

भागलपुरः इन दिनों सरकारी महकमे में भागलपुर की प्रसिद्ध चित्र मंजूषा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कवायद जोरों पर है. मंजूषा पेंटिंग भागलपुर में सभी सरकारी भवनों में पायी जाती है. पर अब यह पेंटिंग्स विक्रमशिला एक्सप्रेस की कोच पर भी दिखेंगी.

अंग प्रदेश की मंजूषा को पहचान दिलाने की पहल

भागलपुर की प्रसिद्ध पेंटिंग मंजूषा अब किसी परिचय की मोहताज नहीं है. क्योंकि इस पेंटिंग का बाजार में भी काफी डिमांड है. मंजूषा पेंटिंग से बुने हुए सिल्क के कपड़े देश और विदेश में काफी अच्छे दामों में बिकते हैं. इसकी खास बात यह है कि यह सिर्फ लाल, हरा, पीला तीन रंगों से ही तैयार होता है.

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विक्रमशिला एक्सप्रेस पर मंजूषा

मंजूषा की जानकार चक्रवर्ती देवी
मंजूषा को बनाने वाली चक्रवर्ती देवी अब इस दुनिया में नहीं हैं. वो सिर्फ वहीं एक महिला थी जो इस प्राचीन कला को जानती थीं और उन्होंने कई लोगों को सिखा कर इस कला को पुनर्जीवित कर पहचान दिलाने में खास भूमिका अदा की. चक्रवर्ती देवी को अगर लोक कला मंजूषा की जननी कहा जाए तो गलत नहीं होगा. क्योंकि चक्रवर्ती देवी ही वो महिला हैं जिन्होंने इसका प्रशिक्षण और भी लोगों को देकर इस लोक कला को जिंदा रखा.

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मंजूषा पेंटिंग

टैक्सटाइल इंडस्ट्री में मंजूषा प्रसिद्ध
बता दें की मंजूषा अंग प्रदेश की वह चित्र गाथा है जो आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. टैक्सटाइल इंडस्ट्री में मंजूषा ने अपनी मौजूदगी दर्ज कर दी है. साथ ही भागलपुर में जितने भी प्रशासनिक भवन और दीवार हैं, हर जगह मंजूषा के चित्र उकेरे गए हैं ताकि मंजूषा अपने अस्तित्व में वापस लौट सकें. मंजूषा चित्र गाथा अंग प्रदेश का एक इतिहास है. इसे जीवित रखने के लिए वैश्विक सरकार के इस कदम की लोग सराहना कर रहे हैं.

Intro:bh_bgp_madhubani painting ki tarj par ang ptadesh ki manjusha ko pahchan dilane ki pahal_2019_vzls3_bytes2_7202641 सरकारी महकमे के द्वारा अंग प्रदेश भागलपुर की प्रसिद्ध चित्र गाथा मंजूषा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कवायद इन दिनों जोरों पर है भागलपुर में सभी सरकारी भावनों में एवं उनकी दीवार पर मंजूषा पेंटिंग ऊकेरने के बाद अब सरकार के द्वारा भी मंजूषा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए कोशिश की जा रही है भागलपुर से नई दिल्ली को जाने वाली विक्रमशिला एक्सप्रेस की कोच अब अंग प्रदेश की प्रसिद्ध मंजूषा चित्रगाथा से सुसज्जित होकर दिल्ली जाएगी , भागलपुर की प्रसिद्ध पेंटिंग मंजूषा अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है क्योंकि इस पेंटिंग का बाजार में भी काफी डिमांड बढ़ गया है मंजूषा पेंटिंग से बोले हुए सिल्क के कपड़े देश और विदेश में काफी अच्छे दामों में बिकते हैं मंजूषा की खास बात यह है कि यह सिर्फ लाल हरा पीला तीन रंगो से ही तैयार होता है ।


Body:ऐसी मान्यता है किस सती बिहुला ने अपनी बात को रखने के लिए पहली बार मंजूषा को ओके राधा जिसके बाद से मंजूषा का प्रचलन अंग प्रदेश में शुरू हो गया है कई पारंपरिक चीज है बिना मंजूषा के पूरी नहीं हो सकती । मंजूषा को जीवनदान देने वाली चक्रवर्ती देवी अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन सिर्फ वही एक महिला थी जो इस प्राचीन कला को जानती थी और उन्होंने कई लोगों को सिखा कर इस कला को पुनर्जीवित कर पहचान दिलाने में आम भूमिका अदा की थी । चक्रवर्ती देवी को अगर लोक कला मंजूषा की जननी भी अगर कहा जाए तो यह किसी भी परिप्रेक्ष्य में गलत नही होगा क्योंकि चक्रवर्ती देवी ही वो महिला हैं जिन्होंने इसका प्रशिक्षण और भी लोगों को देकर इस लोक कला को जिंदा रखा ।


Conclusion:आपको बता दें की मंजूषा अंग प्रदेश की वह चित्र गाथा है जो आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है टैक्सटाइल इंडस्ट्री में मंजूषा ने अपनी मौजूदगी दर्ज कर दी है साथ ही साथ भागलपुर में जितने भी प्रशासनिक भवन और दीवाल हैं वहां सारे जगह मंजूषा के चित्र कुकेरे गए हैं ताकि मंजूषा अपने अस्तित्व में वापस लौट सकें और जो चक्रवर्ती देवी ने इसे फिर से जीवित करने की कोशिश की थी उनका प्रयास सफल हो और मंजूषा को बखूबी लोग जाने और समझे इसलिए उन्होंने काफी लोगों को मंजूषा का प्रशिक्षण भी दिया था जो आज पता चल रहा है मंजूषा चित्र गाथा अंग प्रदेश का एक इतिहास है और इसे जीवित रखने के साथ साथ वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सरकार के इस कदम के लोग सराहना कर रहे हैं । बाईट:गौतम सरकार ,वरिष्ठ पत्रकार एवं ऐतिहासिक मामलों के जानकर (चश्मे में बैठे हुए) बाईट:संजीव कुमार ,कला संस्कृति के जानकार चक्रवर्ती देवी का फ़ाइल फुटेज मंजूषा उकेरती उल्पी झा
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