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बांस का उत्पादन कर किसान लिखेंगे नई इबारत, टिश्यू कल्चर लैब में उन्नत किस्मों पर हो रही शोध

टिश्यू कल्चर लैब के प्रधान वैज्ञानिक एके चौधरी ने बताया कि बांस के उत्पादन से किसानों की आमदनी बढ़ सकती है. इस बांस का उत्पादन कर लाखों लोग रोजगार पा सकते हैं. इसके अलावा बांस को नहरों, तटबंधों और डैम के किनारे लगाकर डैम का बचाव भी किया जा सकता है.

बांस का उत्पादन
बांस का उत्पादन
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Published : Jun 7, 2020, 7:49 PM IST

भागलपुर: टीएनबी कॉलेज परिसर में टिशू कल्चर को लेकर लगातार शोध कार्य जारी है. इस लैब में बांस की उत्तम प्रजाति के पौधों का उत्पादन किया जा रहा है. वुड प्लांट का यह बिहार में पहला टिश्यू कल्चर लैब है. इसकी स्थापना बिहार सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से की गई है. लैब के प्रधान वैज्ञानिक प्रो. एके चौधरी ने बताया कि इस लैब से वन विभाग को पौधे दिए जा रहे हैं.

'बांस के पौधे पर चल रहा शोध'
टीएनबी कॉलेज के वनस्पति विभाग के वरीय शिक्षक सह लैब के प्रधान वैज्ञानिक प्रो. एके चौधरी ने बताया कि लैब की स्थापना 3 जून 2016 को हुई थी. इस लैब में बांस की उत्तम प्रजाति के लाखों पौधों का उत्पादन किया जा रहा है. लैब के खुलने के बाद बिहार में बांस के पौधे आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे. इस लैब में किसी पौधे के एक सेल से कल्चर कर कई पौधे तैयार किए जाते हैं. यह प्रक्रिया टिश्यू कल्चर लैब में पूरी की जाती है. यहां पर सबसे ज्यादा बांस के पौधे पर शोध किया जा रहा है.

शोध कार्य कर रही शोधार्थी
शोध कार्य कर रही शोधार्थी

'बिहार का पहला और सबसे बड़ा लैब'
लैब के प्रधान वैज्ञानिक ने बताया कि यह लैब बिहार का पहला और बड़ा बांस टिश्यू कल्चर लैब है. उन्होंने कहा कि यहां पर बांस की प्रजाती को लेकर शोध की रही है, जिसकी मोटाई कम और लंबाई भी कम हो. इसके फूल वह बीज 50 साल में तैयार होता है. इसके पौधे के लिए बीज का इतना लंबा इंतजार संभव नहीं है. जबकि अन्य विधि से पौधा प्राप्त करना काफी मंहगा भी है. लिहाजा लैब में बांस की ऐसी प्रजाति के पौधे का उत्पादन किया जा रहा है जो बिहार के वातावरण के अनुकूल हो और किमत भी कम हो.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'काटने के बाद और बढ़ेगे बांस'
वैज्ञानिक प्रोफेसर एके चौधरी ने बताया कि लैब में ऐसे बांस के पौधे पर शोध किया गया है. जो काटने के बाद और भी बढ़ेगी. जबकि अन्य पौधे काटे जाने के बाद खत्म हो जाते हैं. इस वजह से यह बांस किसानों के लिए रोजगार के साथ-साथ मिट्टी और पर्यावरण के लिए भी वरदान साबित होने वाला है. यदि किसानों में प्रशिक्षण दिया जाए तो उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हो सकती है. फिलहाल, लैब से वन विभाग को पौधे दिए जा रहे हैं. अभी हाल ही में नालंदा के बीनू बन में बांस के 10 हजार पौधे को भेजा जाना है. कुछ दिन पूर्व ही संजय गांधी जैविक उद्यान में भी बांस के पौधे को भेजा गया है.

ये भी पढ़े- पटना Zoo में अठखेलियां कर रहे वन्य जीव, कर्मचारियों निभा रहे पूरी जिम्मेदारी

किसानों के साथ-साथ पर्यावरण को भी लाभ
एके चौधरी ने कहा कि यदि इस बांस का उत्पादन का परीक्षण किया जाए और उसकी महत्ता और गुणवत्ता के बारे में किसानों को बताई जाए तो किसानों की आमदनी बढ़ सकती है. इस बांस का उत्पादन कर लाखों लोग रोजगार पा सकते हैं. इसके अलावा बांस को नहरों,तटबंधों और डैम के किनारे लगाकर डैम का बचाव भी किया जा सकता है.
गौरतलब है कि टीएनबी कॉलेज में टिश्यू कल्चर लैब के निर्माण के बाद से वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थियों और शोधार्थियों को भी काफी लाभ हो रहा है. शोधार्थियों बिहार के पर्यावरण को ध्यान में रखकर तरह-तरह के पौधे पर शोध कर रहे हैं. यह लैब नेशनल बंबू मिशन के सहयोग से कार्य कर रहा है. लैब में जिसतरह से शोध कार्य चल रहा है उससे यह साफ है कि आने वाले समय यह बिहार के विकास के लिए एक मिल का पत्थर साबित होगा.

भागलपुर: टीएनबी कॉलेज परिसर में टिशू कल्चर को लेकर लगातार शोध कार्य जारी है. इस लैब में बांस की उत्तम प्रजाति के पौधों का उत्पादन किया जा रहा है. वुड प्लांट का यह बिहार में पहला टिश्यू कल्चर लैब है. इसकी स्थापना बिहार सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से की गई है. लैब के प्रधान वैज्ञानिक प्रो. एके चौधरी ने बताया कि इस लैब से वन विभाग को पौधे दिए जा रहे हैं.

'बांस के पौधे पर चल रहा शोध'
टीएनबी कॉलेज के वनस्पति विभाग के वरीय शिक्षक सह लैब के प्रधान वैज्ञानिक प्रो. एके चौधरी ने बताया कि लैब की स्थापना 3 जून 2016 को हुई थी. इस लैब में बांस की उत्तम प्रजाति के लाखों पौधों का उत्पादन किया जा रहा है. लैब के खुलने के बाद बिहार में बांस के पौधे आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे. इस लैब में किसी पौधे के एक सेल से कल्चर कर कई पौधे तैयार किए जाते हैं. यह प्रक्रिया टिश्यू कल्चर लैब में पूरी की जाती है. यहां पर सबसे ज्यादा बांस के पौधे पर शोध किया जा रहा है.

शोध कार्य कर रही शोधार्थी
शोध कार्य कर रही शोधार्थी

'बिहार का पहला और सबसे बड़ा लैब'
लैब के प्रधान वैज्ञानिक ने बताया कि यह लैब बिहार का पहला और बड़ा बांस टिश्यू कल्चर लैब है. उन्होंने कहा कि यहां पर बांस की प्रजाती को लेकर शोध की रही है, जिसकी मोटाई कम और लंबाई भी कम हो. इसके फूल वह बीज 50 साल में तैयार होता है. इसके पौधे के लिए बीज का इतना लंबा इंतजार संभव नहीं है. जबकि अन्य विधि से पौधा प्राप्त करना काफी मंहगा भी है. लिहाजा लैब में बांस की ऐसी प्रजाति के पौधे का उत्पादन किया जा रहा है जो बिहार के वातावरण के अनुकूल हो और किमत भी कम हो.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'काटने के बाद और बढ़ेगे बांस'
वैज्ञानिक प्रोफेसर एके चौधरी ने बताया कि लैब में ऐसे बांस के पौधे पर शोध किया गया है. जो काटने के बाद और भी बढ़ेगी. जबकि अन्य पौधे काटे जाने के बाद खत्म हो जाते हैं. इस वजह से यह बांस किसानों के लिए रोजगार के साथ-साथ मिट्टी और पर्यावरण के लिए भी वरदान साबित होने वाला है. यदि किसानों में प्रशिक्षण दिया जाए तो उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हो सकती है. फिलहाल, लैब से वन विभाग को पौधे दिए जा रहे हैं. अभी हाल ही में नालंदा के बीनू बन में बांस के 10 हजार पौधे को भेजा जाना है. कुछ दिन पूर्व ही संजय गांधी जैविक उद्यान में भी बांस के पौधे को भेजा गया है.

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किसानों के साथ-साथ पर्यावरण को भी लाभ
एके चौधरी ने कहा कि यदि इस बांस का उत्पादन का परीक्षण किया जाए और उसकी महत्ता और गुणवत्ता के बारे में किसानों को बताई जाए तो किसानों की आमदनी बढ़ सकती है. इस बांस का उत्पादन कर लाखों लोग रोजगार पा सकते हैं. इसके अलावा बांस को नहरों,तटबंधों और डैम के किनारे लगाकर डैम का बचाव भी किया जा सकता है.
गौरतलब है कि टीएनबी कॉलेज में टिश्यू कल्चर लैब के निर्माण के बाद से वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थियों और शोधार्थियों को भी काफी लाभ हो रहा है. शोधार्थियों बिहार के पर्यावरण को ध्यान में रखकर तरह-तरह के पौधे पर शोध कर रहे हैं. यह लैब नेशनल बंबू मिशन के सहयोग से कार्य कर रहा है. लैब में जिसतरह से शोध कार्य चल रहा है उससे यह साफ है कि आने वाले समय यह बिहार के विकास के लिए एक मिल का पत्थर साबित होगा.

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