भागलपुर: बहुत ही प्रचलित कहावत है कि किसकी किस्मत कब बदल जाए, कहना मुश्किल होता है. जी, हां हम बात कर रहे हैं भागलपुर के नाथनगर स्थित अनाथालय में पल रही डेढ़ वर्ष की शिवांगी की. जिसे, अमेरिकी युवा दंपति गैरेट डेविड लाउफ और इमिली बेल लॉफ ने भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ वुमन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट की सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी की सभी कानूनी प्रक्रिया को पूरा करते हुए, लंबे इंतजार के बाद गोद लेकर अपना लिया है.
शिवांगी की किलकारी अब सात समंदर पार गूंजेगी
अमेरिकी दंपत्ति ने करीब 1 साल से ज्यादा समय से एडॉप्शन का इंतजार कर रहे थे. प्रतीक्षा सूची में थे. शिवांगी करीबन डेढ़ वर्ष से अनाथालय में ही पल रही थी. वाकई हमारे भारतीय सामाजिक कुरीतियों पर यह किसी करारा तमाचा से कम नहीं है. जहां समाज का एक तबका बच्चियों को पैदा होते ही लावारिस छोड़ कर भाग जाते हैं. वहीं, सात समंदर पार का युवा दंपत्ति उसी बच्चे को लेने के लिए साल भर से ज्यादे समय इंतजार कर गोद लेते हैं. जिला पदाधिकारी ने इससे एक काफी सराहनीय कदम बताया है. उन्होंने कहा कि बच्ची को कम से कम एक बेहतर अभिभावकत्व मिलेगा और बच्ची की जिंदगी काफी बेहतर होगी.
डीएम ने की उज्जवल भविष्य की कामना
गोद लेने वाले गैरेट डेविड लॉफ ने कुछ भी बोलने से मना किया दिया. लेकिन बात करते हुए उन्होंने बताया कि वह पेशे से इंजीनियर हैं. भगवान का दिया हुआ उनके पास सब कुछ है लेकिन संतान नहीं था. जो कि अब मिल गई है. बच्ची को गोद लेते वक्त लॉफ दंपत्ति काफी खुश दिख रहे थे. सभी कानूनी प्रक्रिया और एडॉप्शन फॉर्मेलिटीज पूरी होने के बाद जिलाधिकारी प्रणव कुमार ने लॉफ दंपति को शुभांगी को सौंपते हुए उसके उज्जवल भविष्य की कामना की. गौरतलब है कि शुभांगी रामानंदी देवी हिंदू अनाथालय की 13 वीं बच्ची है जो सभी एडॉप्शन फॉर्मेलिटीज को पूरा कर विदेश जा रही है.
प्रति वर्ष 600 से ज्यादा बच्चे लिये जाते हैं विदेशियों के द्वारा गोद
हमारे समाज में चारों ओर फैली कुरीतियों की वजह से ही आज अनाथालय जैसे केंद्र संचालित होते हैं. जहां एक तरफ सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के बात करती है. वहीं, समाज की कुरीति में अभी भी बेटा और बेटी के बीच में भेदभाव जैसी चीजें देखने को मिलती है. बताते चलें कि सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2010 के बाद से प्रति वर्ष 600 से ज्यादा बच्चे विदेशियों के द्वारा गोद लिए जा रहे हैं. 2012-13 और 2014 में यह आंकड़ा 300 से 450 सौ के बीच पहुंचा था. लेकिन अब फिर या आंकड़ा प्रतिवर्ष 600 के पार कर चुका है. वहीं, भारत में रहने वाले लोग प्रतिवर्ष 3000 से ज्यादा बच्चों को गोद ले रहे हैं.