बेगूसराय: कोरोना वायरस के कारण देश में जारी लॉकडाउन अब पारिवारिक रिश्ते निभाने में भी पांव की जंजीर बन गया है. हालात ये हैं कि अंत समय में लोग अपने परिजन का मुंह देखना तो दूर मुखाग्नि से भी महरूम हो रहे हैं. जिले के दो मामलों ने लोगों को झकझोर दिया है.
पहले तो बनारस में रामजी महतो की मौत पर उनके पिता ने पुतले को मुखाग्नि दी. वहीं, ताजा मामला मंझौल थाना इलाके का है. जहां नागालैंड में पिता की हुई मौत के बाद बेटे ने वीडियो कॉलिंग के जरिए अपने पिता को मुखाग्नि दी. दोनों ही मामले में लॉकडाउन की वजह से मृतक के परिजन शव का अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाए और ना मुखाग्नि दी जा सकी. खास बात ये रही कि दोनों ही मौत की वजह कोरोना संक्रमण नहीं था.
लोगों को अपनों का अंतिम दर्शन नहीं हो रहा नसीब
कोरोना वायरस को लेकर हुए लॉकडाउन में सरकारी उदासीनता की वजह से लोगों को अपनों का अंतिम दर्शन भी नसीब नहीं हो रहा है. इतना ही नहीं परिजन अपनों के दाह संस्कार में भी हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं. मजबूरन ऑनलाइन ही दर्शन और दाह संस्कार में भाग लेना पड़ रहा है.
पुतला को मुखाग्नि देकर किया अंतिम संस्कार
दरअसल मंझौल थाना क्षेत्र के कमलापुर गांव निवासी चंद्रदेव राम की मौत नागालैंड के दीमापुर में हो गई थी, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता और परिजनों के लाख गुहार के बावजूद शव लाया नहीं जा सका, जिसके बाद परिजनों ने ऑनलाइन ही चंद्रदेव राम का अंतिम दर्शन किया. जिस समय दीमापुर में दाह संस्कार किया गया, उसी वक्त यहां गंडक नदी किनारे पुतला बनाकर परिजनों ने मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया.
'नहीं मिल पायी सरकारी सहायता'
बताया जाता है कि चंद्रदेव राम दीमापुर में गार्ड का काम करता था और 3 अप्रैल को वह बीमार पड़ा. जिसके बाद उसे इलाज के लिए निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बिमारी की सूचना पर परिजनों ने उसे लाने के लिए मंझोल एसडीओ को आवेदन भी दिया, लेकिन कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पाया. इस बीच 21 अप्रैल की रात चंद्रदेव राम का निधन हो गया. इसके बाद फिर परिजनों ने शव लाने का प्रयास किया, लेकिन सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण यह भी संभव नहीं हो पाया.
बनारस प्रशासन ने किया था अंतिम संस्कार
दिल्ली से पैदल लौट रहे एक ड्राइवर की बनारस में मौत हो गई. इसके बाद बाद लॉकडाउन की वजह से ना तो उनके परिजन मृतक से मिल पाए न ही शव का अंतिम संस्कार हो पाया. खास बात यह है कि जहां बनारस में प्रशासन के द्वारा मृत व्यक्ति के शव का संस्कार किया गया. वहीं, परिजनों ने कोरोना संक्रमण के भय से शव को लेने से भी इनकार किया था और बाद में गांव में ही कुश की प्रतिमूर्ति बनाकर हिंदू रीति रिवाज से मृत युवक का संस्कार किया गया.
बता दें कि बिहार के बेगूसराय के रामजी महतो तीन अप्रैल को दिल्ली से पैदल अपने घर के लिए निकले थे, लेकिन 16 अप्रैल को वाराणसी में चलते-चलते उनकी मौत हो गई. बदनसीबी का आलम यह था कि जिन घर वालों तक पहुंचने के लिए रामजी पैदल निकल पड़े थे, उनके पास शव लेने और दाह संस्कार करने तक के पैसे नहीं थे और लॉक डाउन के कारण वो वहां नही पहुंच पाए. कोरोना के खौफ के कारण जाने से परहेज किया. वाराणसी पुलिस ने ही शव का दाह संस्कार किया.