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मिलिए बिहार की बेटी पायल से, ओलंपिक में मेडल लाने का रखती है माद्दा

तालाब से तैराकी सीखकर नेशनल स्तर की तैराक बनी पायल को सरकारी मदद की आस है, पायल दावा करती हैं कि उन्हें अगर मदद मिली तो वो ओलंपिक में मेडल लाने का माद्दा रखती हैं.

पायल पंडित, नेशनल तैराक
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Published : Aug 28, 2019, 2:30 PM IST

Updated : Aug 29, 2019, 7:57 AM IST

बेगूसराय: तालाब को स्विमिंग पुल और पिता को कोच बनाकर नेशनल तैराक बनी पायल पंडित सरकारी उदासीनता के कारण काफी आहत हैं. पायल पंडित का दावा है कि सरकार अगर उनकी मदद करती तो, वो ओलंपिक पदक लाने का माद्दा रखती हैं.

पायल यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर भी रही
जिले के वीरपुर प्रखंड की पायल पंडित की यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर भी रही हैं. पायल ने अपने पिता से तैराकी सीखी, वह 2006 से 2007 तक यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर रही. बेगूसराय की पायल को 4 वर्ष की उम्र से ही पानी से काफी लगाव था.

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तालाब में प्रैक्टिस करती पायल पंडित

पिता ने ठाना बेटी को बनाएंगे तैराक

बेटी पायल को पानी से लगाव देख पिता के मन में ख्याल आया कि एक दिन मैं अपनी बेटी को इंग्लिश चैनल के लिए तैयार कर लूंगा. पिता की तमन्ना और बेटी की जिद ने 2005 में कला संस्कृति युवा विभाग द्वारा पहली बार जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल कर राज्य स्तर के लिए चुनी गई. तब वो सात साल की थी.

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पायल पंडित और उनके पिता से बातचीत करते ईटीवी भारत संवाददाता

तैराकी में हमेशा रही आगे

जिसके बाद पायल के पिता गांव के तालाब में लगातार प्रैक्टिस कराने लगे. लगातार स्कूली गेम में अव्वल आने वाली पायल अब नेशनल स्तर की तैराक बन चुकी थी. यही कारण था कि वर्ष 2007 से 2014 तक पायल राज्य चैंपियन रहीं. इसी दौरान 2006 में पुणे में आयोजित नेशनल प्रतियोगिता में पायल को सातवां स्थान मिला, लेकिन पायल के संघर्ष की कहानी और छोटी उम्र में कुछ करने की जिद को देख यूनिसेफ ने अपने कैलेंडर का ब्रांड एंबेसडर बना दिया और इस बार के लोकसभा चुनाव में जिलाप्रशासन ने उसे स्वीप आइकॉन बनाया.

बेगूसराय से आशीष कुमार की स्पेशल रिपोर्ट

बचपन से है ओलंपिक का शौक
ईटीवी भारत से खास बातचीत में पायल ने बताया कि उसे बचपन से ही ओलंपिक में जाने का शौक था. पिता का साथ मिलने के बाद उसका हौसला और भी बढ़ता गया. यही कारण है कि अब तक वह 14 नेशनल गेम खेल चुकी है. वर्ष 2016 में पटना में हुए एक्वथोलान स्विमिंग में भाग ली थी. जिसमें 6 किलोमीटर तैरना पड़ता है और 5 किलोमीटर दौड़ना पड़ता है.

पैसे के अभाव में गांव के तालाब में प्रैक्टिस
पायल ने बताया कि नेशनल से आगे जाने के लिए उसे अब उच्च स्तरीय प्रशिक्षण की आवश्यकता है, लेकिन परिवार की आर्थिक कमजोरी से उसके लिए यह संभव नहीं हो पा रहा है. जिसके कारण वह भी अपने पिता के सानिध्य में गांव में ही प्रैक्टिस कर रही है. पायल कहती हैं कि अगर उन्हें सरकार की मदद मिले तो वो ओलंपिक में मेडल ला सकती हैं.

पायल के पिता क्या कहते हैं
वहीं, पायल के पिता मधुसूदन पंडित कहते हैं कि, एक समय था जब गांव के लोग ताना मारते थे. तरह-तरह की अफवाहें बेटी को लेकर फैली, लेकिन बावजूद इसके अपनी बेटी को नदी में ले जाना बंद नहीं किया. हालांकि 2010 में सोचा कि इससे सच में कुछ होने वाला नहीं है, इसलिए बेटी को पॉलिटेक्निक की तैयारी करवाई और सेलेक्ट होने पर उसे पढ़ने भेज दिया, लेकिन पायल ने प्रैक्टिस नहीं छोड़ा.

सरकारी मदद की आस
पायल के पिता कहते हैं कि पायल अब पढ़ाई के साथ-साथ स्विमिंग की तैयारी भी कर रही है, लेकिन इन सबके बीच पिता का भी दर्द झलक आया. वह कहते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण यहां से आगे की लड़ाई पायल नहीं लड़ पा रही है. सरकार तैराकी के लिए उत्साहित युवक-युवतियों के लिए कोई मदद नहीं कर रही है.

बेगूसराय में एक स्विमिंग पूल तक नहीं
पिता ने कहा कि बेगूसराय में एक स्विमिंग पूल तक नहीं है, कोच और प्रशिक्षण की बात तो दूर की है. उन्होंने सरकार के रवैए से काफी नाराजगी जताई, और साफ तौर पर कहा कि सरकार प्रतिभाओं का गला घोटने पर आमादा है. अगर यही हालात रहे तो नेशनल तैराकी तक जलवा बिखेरने वाली पायल पंडित जैसों की उम्मीद गांव में ही दम तोड़ देगी.

बेगूसराय: तालाब को स्विमिंग पुल और पिता को कोच बनाकर नेशनल तैराक बनी पायल पंडित सरकारी उदासीनता के कारण काफी आहत हैं. पायल पंडित का दावा है कि सरकार अगर उनकी मदद करती तो, वो ओलंपिक पदक लाने का माद्दा रखती हैं.

पायल यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर भी रही
जिले के वीरपुर प्रखंड की पायल पंडित की यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर भी रही हैं. पायल ने अपने पिता से तैराकी सीखी, वह 2006 से 2007 तक यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर रही. बेगूसराय की पायल को 4 वर्ष की उम्र से ही पानी से काफी लगाव था.

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तालाब में प्रैक्टिस करती पायल पंडित

पिता ने ठाना बेटी को बनाएंगे तैराक

बेटी पायल को पानी से लगाव देख पिता के मन में ख्याल आया कि एक दिन मैं अपनी बेटी को इंग्लिश चैनल के लिए तैयार कर लूंगा. पिता की तमन्ना और बेटी की जिद ने 2005 में कला संस्कृति युवा विभाग द्वारा पहली बार जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल कर राज्य स्तर के लिए चुनी गई. तब वो सात साल की थी.

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पायल पंडित और उनके पिता से बातचीत करते ईटीवी भारत संवाददाता

तैराकी में हमेशा रही आगे

जिसके बाद पायल के पिता गांव के तालाब में लगातार प्रैक्टिस कराने लगे. लगातार स्कूली गेम में अव्वल आने वाली पायल अब नेशनल स्तर की तैराक बन चुकी थी. यही कारण था कि वर्ष 2007 से 2014 तक पायल राज्य चैंपियन रहीं. इसी दौरान 2006 में पुणे में आयोजित नेशनल प्रतियोगिता में पायल को सातवां स्थान मिला, लेकिन पायल के संघर्ष की कहानी और छोटी उम्र में कुछ करने की जिद को देख यूनिसेफ ने अपने कैलेंडर का ब्रांड एंबेसडर बना दिया और इस बार के लोकसभा चुनाव में जिलाप्रशासन ने उसे स्वीप आइकॉन बनाया.

बेगूसराय से आशीष कुमार की स्पेशल रिपोर्ट

बचपन से है ओलंपिक का शौक
ईटीवी भारत से खास बातचीत में पायल ने बताया कि उसे बचपन से ही ओलंपिक में जाने का शौक था. पिता का साथ मिलने के बाद उसका हौसला और भी बढ़ता गया. यही कारण है कि अब तक वह 14 नेशनल गेम खेल चुकी है. वर्ष 2016 में पटना में हुए एक्वथोलान स्विमिंग में भाग ली थी. जिसमें 6 किलोमीटर तैरना पड़ता है और 5 किलोमीटर दौड़ना पड़ता है.

पैसे के अभाव में गांव के तालाब में प्रैक्टिस
पायल ने बताया कि नेशनल से आगे जाने के लिए उसे अब उच्च स्तरीय प्रशिक्षण की आवश्यकता है, लेकिन परिवार की आर्थिक कमजोरी से उसके लिए यह संभव नहीं हो पा रहा है. जिसके कारण वह भी अपने पिता के सानिध्य में गांव में ही प्रैक्टिस कर रही है. पायल कहती हैं कि अगर उन्हें सरकार की मदद मिले तो वो ओलंपिक में मेडल ला सकती हैं.

पायल के पिता क्या कहते हैं
वहीं, पायल के पिता मधुसूदन पंडित कहते हैं कि, एक समय था जब गांव के लोग ताना मारते थे. तरह-तरह की अफवाहें बेटी को लेकर फैली, लेकिन बावजूद इसके अपनी बेटी को नदी में ले जाना बंद नहीं किया. हालांकि 2010 में सोचा कि इससे सच में कुछ होने वाला नहीं है, इसलिए बेटी को पॉलिटेक्निक की तैयारी करवाई और सेलेक्ट होने पर उसे पढ़ने भेज दिया, लेकिन पायल ने प्रैक्टिस नहीं छोड़ा.

सरकारी मदद की आस
पायल के पिता कहते हैं कि पायल अब पढ़ाई के साथ-साथ स्विमिंग की तैयारी भी कर रही है, लेकिन इन सबके बीच पिता का भी दर्द झलक आया. वह कहते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण यहां से आगे की लड़ाई पायल नहीं लड़ पा रही है. सरकार तैराकी के लिए उत्साहित युवक-युवतियों के लिए कोई मदद नहीं कर रही है.

बेगूसराय में एक स्विमिंग पूल तक नहीं
पिता ने कहा कि बेगूसराय में एक स्विमिंग पूल तक नहीं है, कोच और प्रशिक्षण की बात तो दूर की है. उन्होंने सरकार के रवैए से काफी नाराजगी जताई, और साफ तौर पर कहा कि सरकार प्रतिभाओं का गला घोटने पर आमादा है. अगर यही हालात रहे तो नेशनल तैराकी तक जलवा बिखेरने वाली पायल पंडित जैसों की उम्मीद गांव में ही दम तोड़ देगी.

Intro:एंकर-बेगूसराय यहां गढ़े से तैराकी सीख कर निकलते है नेशनल तैराक लेकिन सरकार की बेरुखी के कारण क्या इसी गढ़े में ओलंपिक खेलने की उम्मीद डूब कर दम तोड़ देगी ?
गढ़े को स्विमिंग पूल और पिता को कोच बनाकर नेशनल तैराकी तक अपना जलवा बिखरने वाली यूनिसेफ की पूर्व ब्रांड अम्बेसडर पायल पंडित सरकारी उदासीनता के कारण काफी आहत है उसने साफ कहा सरकार मदद करती तो ओलंपिक पदक लाने का भी दम मुझमे है सावित कर देती।


Body:vo- पिता से सीखी तैराकी और बन गई यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर जी हां हम बात कर रहे हैं,बेगूसराय जिले के वीरपुर प्रखंड की पायल पंडित की, जिसने छोटे से गड्ढे को स्विमिंग पूल बना दिया और पिता को कोच मानकर तैराकी में जब जलवा बिखेरा तो देश स्तर पर पायल पंडित का डंका बजने लगा।
वर्ष 2006 से 2007 तक यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर रही बेगूसराय की पायल को 4 वर्ष की उम्र से ही पानी से काफी लगाव था। बेटी पायल को पानी से लगाव देख पिता के मन में ख्याल आया कि एक दिन मैं अपनी बेटी को इंग्लिश चैनल के लिए तैयार कर लूंगा ।मन में यही तमन्ना लिए बेगूसराय के मधुसूदन पंडित अपने बेटी को तैरना सिखाने लगे कुछ महीने बाद मेहनत ने रंग दिखाया। पायल तैरना सीख गई पिता का सपना और पायल की जिद ने 1 वर्ष में उसे कुशल तैराक बना दिया ।वर्ष 2005 में जब वह 7 वर्ष की थी तब कला संस्कृति युवा विभाग द्वारा पहली बार जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता में भाग ली और प्रथम स्थान हासिल कर राज्य स्तर के लिए चुनी गई ।पायल के पिता गांव के ही कुरमा (खाए) तालाब में लगातार प्रैक्टिस कराने लगे ।लगातार स्कूली गेम में अव्वल आने वाली पायल अब नेशनल स्तर की तैराक बन चुकी थी। यही कारण था कि वर्ष 2007 से 2014 तक पायल राज्य चैंपियन रहीं। इसी दौरान 2006 में पुणे में आयोजित नेशनल प्रतियोगिता में कोई मैडल तो नहीं मिल सका पायल को सातवाँ स्थान मिला ,लेकिन पायल के संघर्ष की कहानी और छोटी उम्र में कुछ करने की जिद को देख यूनिसेफ ने अपने कैलेंडर का ब्रांड एंबेसडर बना दिया और इस बार के लोकसभा चुनाव में जिलाप्रशासन ने उसे स्वीप आइकॉन बनाया।पायल ने बताया कि उसे बचपन से ही ओलंपिक में जाने का शौक था ।पिता का साथ मिलने के बाद उसका हौसला और भी बढ़ता गया ।यही कारण है कि अब तक 14 नेशनल गेम खेल चुकी है जिसमें वर्ष 2016 में पटना में हुए एक्वथोलान स्विमिंग में भाग ली थी ,जिसमें 6 किलोमीटर तैरना पड़ता है और 5 किलोमीटर दौड़ना पड़ता है। पायल ने बताया कि नेशनल से आगे जाने के लिए उसे अब उच्च स्तरीय प्रशिक्षण की आवश्यकता है ,लेकिन परिवार के आर्थिक रूप से सुदृढ़ नहीं रहने के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण वह भी अपने पिता के सानिध्य में गांव में ही प्रैक्टिस कर रही हैं ।वहीं पायल के पिता मधुसूदन पंडित ने बताया कि एक समय था जब गांव के लोग ताना मारते थे तरह-तरह की अफवाहें बेटी को लेकर फैली लेकिन तब भी गांव के ताना को सुनते हुए अपनी बेटी को नदी में ले जाना बंद नहीं किया ।हालांकि 2010 में सोचा कि इससे सच में कुछ होने वाला नहीं है इसलिए बेटी को पॉलिटेक्निक की तैयारी करवाई और सिलेक्ट होने पर उसे पढ़ने भेज दिया लेकिन पायल प्रैक्टिस नहीं छोड़ा। अब पढ़ाई के साथ-साथ स्विमिंग की तैयारी भी कर रही है, लेकिन इस सबके बीच पायल पंडित और उसके पिता मधुसूदन पंडित का दर्द झलक आया ।इनका साफ कहना था कि आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण यहां से आगे की लड़ाई पायल नहीं लड़ पा रही है। सरकार तैराकी के लिए उत्साहित युवक-युवतियों के लिए कोई मदद नहीं कर पा रही है ।आप सोच सकते हैं कि बेगूसराय ऐसे बड़े और समृद्ध जिले में एक स्विमिंग पूल तक नहीं है कोच और प्रशिक्षण की बात तो दूर की है ।उन्होंने सरकार के रवैए से काफी नाराजगी जताई साफ तौर पर कहा कि सरकार प्रतिभाओं का गला घोटने पर आमदा है ,अगर यही हालात रहे तो नेशनल तैराकी तक जलवा बिखेरने वाली पायल पंडित तरीके के लोग लोगों की उम्मीद गांव में ही दम तोड़ देगी।
वन टू वन विथ मधुसूदन पंडित,पायल के पिता
पायल पंडित,तैराक


Conclusion:fvo-बहरहाल जो भी हो लेकिन स्पोर्ट्स और एथलेटिक्स को बढ़ावा देने का दम्भ भरने वाली केंद्र और राज्य की सरकार के लिए ये मामला काफी शर्मिंदगी भड़ा है अगर सरकार अब भी नही जागी तो पायल पंडित के सपनो की तरह कई प्रतिभाएं अपने मुकाम हासिल करने के पहले टूट कर बिखड़ जाएंगी।
Last Updated : Aug 29, 2019, 7:57 AM IST
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