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छठ पूजा में बांस के सूप और दउरा का उपयोग हुआ कम, खस्ता हुई मल्लिक समाज की आर्थिक स्थिति

लोक आस्था के महापर्व छठ ( Chhath ) को लेकर बिहार समेत देश भर में उत्सव का माहौल है. वहीं, छठ पूजा में बांस के सूप और दउरा की जगह पीतल और अन्य धातुओं के सामान प्रयोग किये जाने से मल्लिक समाज की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो रही है.

मल्लिक समाज
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Published : Nov 7, 2021, 8:31 PM IST

Updated : Nov 7, 2021, 9:18 PM IST

बेगूसराय: बिहार ही नहीं देश में लोक आस्था के महापर्व छठ ( Chhath Puja ) का बड़ा महत्व है. सूर्य उपासना के इस पर्व पर मल्लिक समाज ( Mallik Samaj ) के द्वारा बनाए गए बांस का सूप छठ पूजा पर खास महत्व रखता है. इसके बिना छठ पूजा की कल्पना नहीं की जा सकती. हालांकि वर्तमान में छठ पूजा पर आधुनिकता का रंग का चढ़ चुका है. छठ पूजा में लोग बांस की सूप और दउरा की जगह पीतल और दूसरी धातुओं के बने समानों का प्रयोग कर रहे हैं. इसका सीधा प्रभाव मल्लिक समाज पर पड़ रहा है. जिससे उनकी आर्थिक हालत खराब हो रही है.

ये भी पढ़ें- Chhath Puja 2021: नहाय-खाय के साथ सोमवार से शुरू होगा सूर्य उपासना का महापर्व छठ, जानें सूर्योदय और सूर्यास्त का समय

मंहगाई की मार कुटीर उद्योगों पर पड़ रही है. जिससे छोटे उद्योग-धंधे काफी प्रभावित हो रही है. सैकड़ों लोगों के हाथों को काम दिलाने वाले कुटीर उद्योग कहीं न कहीं सरकारी उपेक्षा, बढ़ती महंगाई और आधुनिकता के बीच दम तोड़ रहा है. जो छठ पूजा पर मल्लिक समाज की पीड़ा छलक रही है. इससे हमारी सभ्यता और संस्कृति पर भी कहीं न कहीं फर्क पड़ रहा है. धातु के सूप और दउरा आदि के बाजार में आ जाने से श्रद्धालु पुरानी संस्कृति को भूल रही है. जिसका खामियाजा मल्लिक समाज की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है.

देखें वीडियो

जिससे मल्लिक समाज की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन बेहद खराब होती जा रही है. इसके अलावा बढ़ती महंगाई के कारण बांस की कीमत ने इस उद्योग को काफी प्रभावित किया है. मल्लिक समाज की माने तो निर्माण में लागत की उपेक्षा बचत इतना कम है कि उसकी मजदूरी भी ठीक से नहीं निकल पाती है. जिसके कारण परिवार के भरण-पोषण के लिए दो जून की रोटी इकट्ठा करना भी मुश्किल हो गया है.

उनका कहना है कि इस हाल में बाल-बच्चों को परवरिश, पढ़ाई, लिखाई सही ढंग से संभव नहीं हो पा रही है. इसके बावजूद सरकार के पास उनके उत्थान की कोई खास योजना नहीं है. जिससे इस समुदाय में नाराजगी देखी जा रही है. वर्षों से बांस निर्मित सूप, दउरा, डाला, डलिया आदि बनाकर जीविकोपार्जन करने वाला समाज आज सबसे नीचे पायदान पर खड़ा है और खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है.

छठ पर्व स्थानीय रामाशीष मल्लिक और राम चरित्र मल्लिक ने बताया कि 10 साल पूर्व 15 से 20 रुपये में बांस की खरीददारी करते थे. आज बास की कीमत 150 से 200 रुपये है जबकि उस हिसाब से न तो बिक्री है न ही दाम मिल पा रहा है. उन लोगों ने बताया कि आम दिनों में 15 से 20 रुपये में सूप की बिक्री होती है जबकि छठ के मौके पर इसकी बिक्री 50 से 60 में रुपये की जा रही है, लेकिन खरीदारी करने वाले पहले से कम हैं.

उन्होंने कहा कि अनाज को छोड़ दें तो सरकार से मिलने वाली सभी सुविधा सही तरीके से उन तक नहीं पहुंच पाती है. सरकार को मल्लिक समाज की कोई चिंता नहीं है. उनकी मांग है कि सरकार उन्हें आवश्यक संसाधन मुहैया कराए ताकि उनकी जिंदगी भी पटरी पर आ सके.

ये भी पढ़ें- छठ को लेकर घाटों पर सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम, SDRF को किया गया तैनात

बेगूसराय: बिहार ही नहीं देश में लोक आस्था के महापर्व छठ ( Chhath Puja ) का बड़ा महत्व है. सूर्य उपासना के इस पर्व पर मल्लिक समाज ( Mallik Samaj ) के द्वारा बनाए गए बांस का सूप छठ पूजा पर खास महत्व रखता है. इसके बिना छठ पूजा की कल्पना नहीं की जा सकती. हालांकि वर्तमान में छठ पूजा पर आधुनिकता का रंग का चढ़ चुका है. छठ पूजा में लोग बांस की सूप और दउरा की जगह पीतल और दूसरी धातुओं के बने समानों का प्रयोग कर रहे हैं. इसका सीधा प्रभाव मल्लिक समाज पर पड़ रहा है. जिससे उनकी आर्थिक हालत खराब हो रही है.

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मंहगाई की मार कुटीर उद्योगों पर पड़ रही है. जिससे छोटे उद्योग-धंधे काफी प्रभावित हो रही है. सैकड़ों लोगों के हाथों को काम दिलाने वाले कुटीर उद्योग कहीं न कहीं सरकारी उपेक्षा, बढ़ती महंगाई और आधुनिकता के बीच दम तोड़ रहा है. जो छठ पूजा पर मल्लिक समाज की पीड़ा छलक रही है. इससे हमारी सभ्यता और संस्कृति पर भी कहीं न कहीं फर्क पड़ रहा है. धातु के सूप और दउरा आदि के बाजार में आ जाने से श्रद्धालु पुरानी संस्कृति को भूल रही है. जिसका खामियाजा मल्लिक समाज की आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है.

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जिससे मल्लिक समाज की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन बेहद खराब होती जा रही है. इसके अलावा बढ़ती महंगाई के कारण बांस की कीमत ने इस उद्योग को काफी प्रभावित किया है. मल्लिक समाज की माने तो निर्माण में लागत की उपेक्षा बचत इतना कम है कि उसकी मजदूरी भी ठीक से नहीं निकल पाती है. जिसके कारण परिवार के भरण-पोषण के लिए दो जून की रोटी इकट्ठा करना भी मुश्किल हो गया है.

उनका कहना है कि इस हाल में बाल-बच्चों को परवरिश, पढ़ाई, लिखाई सही ढंग से संभव नहीं हो पा रही है. इसके बावजूद सरकार के पास उनके उत्थान की कोई खास योजना नहीं है. जिससे इस समुदाय में नाराजगी देखी जा रही है. वर्षों से बांस निर्मित सूप, दउरा, डाला, डलिया आदि बनाकर जीविकोपार्जन करने वाला समाज आज सबसे नीचे पायदान पर खड़ा है और खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है.

छठ पर्व स्थानीय रामाशीष मल्लिक और राम चरित्र मल्लिक ने बताया कि 10 साल पूर्व 15 से 20 रुपये में बांस की खरीददारी करते थे. आज बास की कीमत 150 से 200 रुपये है जबकि उस हिसाब से न तो बिक्री है न ही दाम मिल पा रहा है. उन लोगों ने बताया कि आम दिनों में 15 से 20 रुपये में सूप की बिक्री होती है जबकि छठ के मौके पर इसकी बिक्री 50 से 60 में रुपये की जा रही है, लेकिन खरीदारी करने वाले पहले से कम हैं.

उन्होंने कहा कि अनाज को छोड़ दें तो सरकार से मिलने वाली सभी सुविधा सही तरीके से उन तक नहीं पहुंच पाती है. सरकार को मल्लिक समाज की कोई चिंता नहीं है. उनकी मांग है कि सरकार उन्हें आवश्यक संसाधन मुहैया कराए ताकि उनकी जिंदगी भी पटरी पर आ सके.

ये भी पढ़ें- छठ को लेकर घाटों पर सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम, SDRF को किया गया तैनात

Last Updated : Nov 7, 2021, 9:18 PM IST
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