बेगूसरायः जिले के नामचीन श्री कृष्ण महिला कॉलेज की बदहाली सरकार के उन तमाम दावों की पोल खोलती नजर आ रही है. जिस दावों में सरकार सूबे में शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने का ढीढोरा पीट रहा है. अपनी बदहाली पर आंसू बहाता कॉलेज सिर्फ सरकार के ढोल की आवाजें सुन रहा है.
बेगूसराय जिला मुख्यालय स्थित श्री कृष्ण महिला महाविद्यालय वर्ष 1958 के अपने स्थापना काल से ही बेहतरीन शिक्षा और अनुशासन के लिए बिहार में ऊंचा नाम रहा है लेकिन हाल के दिनों में यूनिवर्सिटी की प्रशासनिक कुव्यवस्था और सरकार की लापरवाही के कारण कॉलेज पढ़ाई के मामले में बत्तर स्थिति में पहुंच गया है. यहां छात्राओं की तुलना में शिक्षकों का जो अनुपात होना चाहिए वो बिल्कुक असामान्य है. जिसकी चलते छात्राओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है.
बता दें कि कॉलेज में सभी संकायों को मिलाकर 8 हजार 8 सौ के आसपास छात्राएं अध्ययन रत हैं और उनको पढ़ाने के लिए प्रिंसीपल को छोड़कर मात्र 14 शिक्षिकाएं मौजूद है. इन 14 शिक्षिकाओं में भी 7 की बहाली दो सप्ताह पूर्व गेस्ट टीचर के रूप में की गई है. शिक्षकों की कमी के कारण छात्राओं की उपस्थिति पर इसका प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है क्योंकि जिन विषयों के शिक्षक वहां हैं ही नहीं तो पढ़ाई कैसे हो पाएगी.
स्नातक तक विज्ञान विषय की पढ़ाई के लिए यहां हजारों छात्राओं का दाखिला लिया गया है, लेकिन विज्ञान के लिए मात्र एक शिक्षिका है. बहाली यहां इसलिए नहीं हो पा रही क्योंकि विज्ञान के लिए स्वीकृत पद भी एक ही है जिसको अभी तक नहीं बढ़ाया गया है. लेकिन छात्राओं की संख्या सरकार के निर्देश पर बढ़ा दी गई है.
कॉलेज में छात्राओं की भीड़ इसलिए इतनी ज्यादा है क्योंकि सरकार की ओर से दी जा रही दस हजार और पच्चीस हजार के अनुदान लेने वाले छात्राओं और अभिभावकों को पढ़ाई से ज्यादा उस पैसे की फिक्र होती है, ये बात खुद प्रिंसिपल ने स्वीकारी है. आखिर बिना शिक्षकों की पढ़ाई के परीक्षा पास करवाकर कैसे बच्चों के बेहतर भविष्य की कल्पना कर सकते हैं ?