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अपनी बदहाली पर आंसू बहाता बेगूसराय जिले का प्रसिद्घ श्री कृष्ण महिला कॉलेज

बेगूसराय जिले के प्रसिद्घ महिला कॉलेज का अतीत जितना सुनहरा है वर्तमान उतना ही स्याह नजर आ रहा है. वर्ष 1958 में जब इसकी स्थापना हुई थी तब और अब के हालात में जमीन और आसमान का फर्क है.

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Published : Feb 5, 2019, 10:56 AM IST

महिला कॉलेज

बेगूसरायः जिले के नामचीन श्री कृष्ण महिला कॉलेज की बदहाली सरकार के उन तमाम दावों की पोल खोलती नजर आ रही है. जिस दावों में सरकार सूबे में शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने का ढीढोरा पीट रहा है. अपनी बदहाली पर आंसू बहाता कॉलेज सिर्फ सरकार के ढोल की आवाजें सुन रहा है.

बेगूसराय जिला मुख्यालय स्थित श्री कृष्ण महिला महाविद्यालय वर्ष 1958 के अपने स्थापना काल से ही बेहतरीन शिक्षा और अनुशासन के लिए बिहार में ऊंचा नाम रहा है लेकिन हाल के दिनों में यूनिवर्सिटी की प्रशासनिक कुव्यवस्था और सरकार की लापरवाही के कारण कॉलेज पढ़ाई के मामले में बत्तर स्थिति में पहुंच गया है. यहां छात्राओं की तुलना में शिक्षकों का जो अनुपात होना चाहिए वो बिल्कुक असामान्य है. जिसकी चलते छात्राओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है.

बता दें कि कॉलेज में सभी संकायों को मिलाकर 8 हजार 8 सौ के आसपास छात्राएं अध्ययन रत हैं और उनको पढ़ाने के लिए प्रिंसीपल को छोड़कर मात्र 14 शिक्षिकाएं मौजूद है. इन 14 शिक्षिकाओं में भी 7 की बहाली दो सप्ताह पूर्व गेस्ट टीचर के रूप में की गई है. शिक्षकों की कमी के कारण छात्राओं की उपस्थिति पर इसका प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है क्योंकि जिन विषयों के शिक्षक वहां हैं ही नहीं तो पढ़ाई कैसे हो पाएगी.

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स्नातक तक विज्ञान विषय की पढ़ाई के लिए यहां हजारों छात्राओं का दाखिला लिया गया है, लेकिन विज्ञान के लिए मात्र एक शिक्षिका है. बहाली यहां इसलिए नहीं हो पा रही क्योंकि विज्ञान के लिए स्वीकृत पद भी एक ही है जिसको अभी तक नहीं बढ़ाया गया है. लेकिन छात्राओं की संख्या सरकार के निर्देश पर बढ़ा दी गई है.

बदहाली का दंश झेल रहा श्री कृष्ण महिला कॉलेज
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कॉलेज में छात्राओं की भीड़ इसलिए इतनी ज्यादा है क्योंकि सरकार की ओर से दी जा रही दस हजार और पच्चीस हजार के अनुदान लेने वाले छात्राओं और अभिभावकों को पढ़ाई से ज्यादा उस पैसे की फिक्र होती है, ये बात खुद प्रिंसिपल ने स्वीकारी है. आखिर बिना शिक्षकों की पढ़ाई के परीक्षा पास करवाकर कैसे बच्चों के बेहतर भविष्य की कल्पना कर सकते हैं ?

बेगूसरायः जिले के नामचीन श्री कृष्ण महिला कॉलेज की बदहाली सरकार के उन तमाम दावों की पोल खोलती नजर आ रही है. जिस दावों में सरकार सूबे में शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने का ढीढोरा पीट रहा है. अपनी बदहाली पर आंसू बहाता कॉलेज सिर्फ सरकार के ढोल की आवाजें सुन रहा है.

बेगूसराय जिला मुख्यालय स्थित श्री कृष्ण महिला महाविद्यालय वर्ष 1958 के अपने स्थापना काल से ही बेहतरीन शिक्षा और अनुशासन के लिए बिहार में ऊंचा नाम रहा है लेकिन हाल के दिनों में यूनिवर्सिटी की प्रशासनिक कुव्यवस्था और सरकार की लापरवाही के कारण कॉलेज पढ़ाई के मामले में बत्तर स्थिति में पहुंच गया है. यहां छात्राओं की तुलना में शिक्षकों का जो अनुपात होना चाहिए वो बिल्कुक असामान्य है. जिसकी चलते छात्राओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है.

बता दें कि कॉलेज में सभी संकायों को मिलाकर 8 हजार 8 सौ के आसपास छात्राएं अध्ययन रत हैं और उनको पढ़ाने के लिए प्रिंसीपल को छोड़कर मात्र 14 शिक्षिकाएं मौजूद है. इन 14 शिक्षिकाओं में भी 7 की बहाली दो सप्ताह पूर्व गेस्ट टीचर के रूप में की गई है. शिक्षकों की कमी के कारण छात्राओं की उपस्थिति पर इसका प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है क्योंकि जिन विषयों के शिक्षक वहां हैं ही नहीं तो पढ़ाई कैसे हो पाएगी.

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स्नातक तक विज्ञान विषय की पढ़ाई के लिए यहां हजारों छात्राओं का दाखिला लिया गया है, लेकिन विज्ञान के लिए मात्र एक शिक्षिका है. बहाली यहां इसलिए नहीं हो पा रही क्योंकि विज्ञान के लिए स्वीकृत पद भी एक ही है जिसको अभी तक नहीं बढ़ाया गया है. लेकिन छात्राओं की संख्या सरकार के निर्देश पर बढ़ा दी गई है.

बदहाली का दंश झेल रहा श्री कृष्ण महिला कॉलेज
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कॉलेज में छात्राओं की भीड़ इसलिए इतनी ज्यादा है क्योंकि सरकार की ओर से दी जा रही दस हजार और पच्चीस हजार के अनुदान लेने वाले छात्राओं और अभिभावकों को पढ़ाई से ज्यादा उस पैसे की फिक्र होती है, ये बात खुद प्रिंसिपल ने स्वीकारी है. आखिर बिना शिक्षकों की पढ़ाई के परीक्षा पास करवाकर कैसे बच्चों के बेहतर भविष्य की कल्पना कर सकते हैं ?

Intro:डे प्लान स्टोरी
एंकर-बेगूसराय के प्रसिद्घ महिला कॉलेज का अतीत जितना सुनहरा है वर्तमान उतना ही स्याह नजर आता है।वर्ष 1958 में जब इसकी स्थापना हुई थी तब और अब के हालात में आसमान जमीन का फर्क है।


Body:vo- बेगूसराय जिला मुख्यालय स्थित श्री कृष्ण महिला महाविद्यालय वर्ष 1958 के अपने स्थापना काल से ही बेहतरीन शिक्षा और अनुशासन के लिए बिहार में ऊंचा नाम रहा है लेकिन हाल के दिनों में यूनिवर्सिटी की प्रशासनिक कुव्यवस्था और सरकार की लापरवाही के कारण कॉलेज पढ़ाई के मामले में बत्तर स्थिति में पहुच गया है ऐसा नही की वहाँ मौजूद शिक्षिकाएँ बच्चों को नही पढ़ाती लेकिन छात्राओं की तुलना में शिक्षकों का जो अनुपात होना चाहिए वो बिल्कुक असामान्य है।कॉलेज में सभी संकायों को मिलाकर 8हजार 8 सौ के आसपास छात्राएं अध्ययन रत हैं और उनको पढाने के लिए प्रिंसीपल को छोड़कर मात्र 14 शिक्षिकाएँ मौजूद है इन 14 शिक्षिकाओं में भी 7 की बहाली दो सप्ताह पूर्व गेस्ट टीचर के रूप में की गई है।शिक्षकों की कमी के कारण छात्राओं की उपस्थिति पर इसका प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है क्योंकि जिन विषयो के शिक्षक वहाँ हैं ही नही तो पढ़ाई कैसे हो पाएगी ये सभी समझते हैं। स्नातक तक विज्ञान विषय की पढ़ाई के लिए यहाँ हजारों छात्राओं का दाखिला लिया गया है,लेकिन विज्ञान के लिए मात्र एक शिक्षिका ही यहां पदस्थापित है।बहाली यहां इसलिए नही हो पा रही क्योंकि विज्ञान के लिए स्वीकृत पद भी एक ही है जिसको अभी तक नही बढ़ाया गया है।लेकिन छात्राओं की संख्या सरकार के निर्देश पर बढा दी गई है।कॉलेज में पहले के हिसाब से यहां 28 शिक्षकों का पद सृजित है जबकि छात्राओं के अनुपात में स्वीकृत पद को पांच गुना बढ़ाने की आवश्यकता महशूश की जा रही है।कॉलेज में छात्राओं की भीड़ इसलिए इतनी ज्यादा है क्योंकि सरकार की ओर से दी जा रही दस हजार और पच्चीस हजार के अनुदान लेने वाले छात्राओं और अभिभावकों को पढ़ाई से ज्यादा उस पैसे की फिक्र होती है ,ऐसा हम नही कहते है खुद प्रिंसिपल इसे स्वीकारती है।वही बिना विज्ञान के शिक्षक,बिना प्रयोगशाला के छात्राएं कैसे पढ़ती हैं और प्रायोगिक परीक्षा पास करती हैं सवाल के जबाब में प्रिंसीपल ने कहा मेरा मुँह मत खुलवायें ये सब समझते हैं।निशचित तौर पर छात्राओ की बढ़ती संख्या और शिक्षिकाओं की कमी के कारण प्रिंसीपल की नाराजगी समझी जा सकती है ।
बाइट-स्वपना चौधरी, प्रिंसीपल ,महिला कॉलेज बेगूसराय


Conclusion:fvo-बहरहाल जो भी कॉलेज में जो शैक्षणिक अराजकता की स्थिति को देखते हुए सरकार और यूनिवर्सिटी को अविलंब हस्तक्षेप कर वहाँ शिक्षकों की संख्या बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।आखिर बिना शिकको की पढ़ाई के परीक्षा पास करवाकर कैसे बच्चों के बेहतर भविष्य की कल्पना कर सकते हैं ये बड़ा सवाल है ?
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