बेगूसराय: 'जला अस्थियां बारी-बारी चिटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल, कलम आज उनकी जय बोल'. हिंदी साहित्य में देश प्रेम के कविताओं के लिए जाने-जाने वाले रामधारी सिंह दिनकर को किसी परिचय की जरूरत नहीं है.
एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रकवि दिनकर की उपाधि, राज्यसभा सदस्य, पद्मभूषण पुरस्कार जैसी तमाम उपलब्धियां उन्होंने अपने व्यक्तित्व और विद्वता के बल पर अर्जित किए. उनकी 112वीं जयंती पर देश आज उन्हें याद कर रहा है.
साधारण किसान परिवार में हुआ था जन्म
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म वर्ष 1908 ई में तत्कालीन मुंगेर जिला और वर्तमान बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. साधारण किसान परिवार में जन्मे रामधारी सिंह दिनकर के पिता का नाम रवि सिंह और माता का नाम मनरूप देवी था.
रामधारी सिंह दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई, जिसके बाद उन्होंने पटना में स्नातक स्तरीय पढ़ाई पूर्ण की. रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रमुख कवि और निबंधकार थे, वो आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि थे.
छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि
दिनकर हिंदी साहित्य के छायावाद काल के बाद कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे. उनकी रचनाओं में वीर रस का ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. राष्ट्रकवि दिनकर ने सामाजिक-आर्थिक असमानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना की. एक प्रगतिवादी और मानववादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों में गढ़ा. उनकी महान रचनाओं में 'रश्मिरथी' और 'परशुराम की प्रतीक्षा' शामिल है.
पद्म भूषण से किया गया था सम्मानित
दिनकर जी अप्रैल 1952 से 26 जनवरी 1964 तक लगातार राज्यसभा के सदस्य रहे. बाद में 1964 से 1965 तक भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए गए. वर्ष 1959 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान में लाखों लोगों की एक सभा में रामधारी सिंह दिनकर की कविता का पाठ कर जनता का मन मोह लिया शीर्षक था 'सिंहासन खाली करो जनता आ रही है'.
परिजन ने बताया कि जिस जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें लगातार राज्यसभा सदस्य बनाया, जब देश के हित की बात आई. तो उसी संसद में जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ भी उन्होंने काव्य पाठ करने से परहेज नहीं किया. इस वजह से जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया था, जिसका कभी भी मलाल उनके चेहरे पर देखने को नहीं मिला.
लेखनी के जरिए हमेशा अमर रहेंगे दिनकर
अपनी लेखनी के जरिए दिनकर हमेशा अमर रहेंगे. द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित उनके प्रबन्ध काव्य 'कुरुक्षेत्र' को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वां स्थान दिया गया.