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शिक्षक दिवस स्पेशलः दिव्यांग शिक्षिका अनुपमा ने सरकारी स्कूल की बदली सूरत, मां कहकर बुलाते हैं बच्चे

अनुपमा का 12 घंटे से ज्यादा का समय स्कूल के लिए व्यतीत होता है. अपनी ड्यूटी के अलावा बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा के लिए वह अलग से एक संस्था से निःशुल्क सेवा दिलवा रही हैं. जो इस स्कूल के विकास के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है.

बच्चों के साथ शिक्षिका
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Published : Sep 5, 2019, 10:22 AM IST

Updated : Sep 5, 2019, 2:59 PM IST

बेगूसरायः पुरानी कहावत है कि 'हिम्मते-ए-मर्दा, मदद-ए-खुदा' यानी कि अगर कोई इंसान किसी काम के लिए सच्चे मन से हिम्मत करे तो खुदा या भगवान भी उसकी मदद करता है. कुछ ऐसी ही हिम्मत शारीरिक रूप से दिव्यांग शिक्षक अनुपमा सिंह ने दिखाई, जिसकी बदौलत मध्य विद्यालय बीहट की तस्वीर ही बदल गई. यह स्कूल अब राष्ट्रीय स्तर के किसी भी सरकारी और प्राइवेट स्कूल को हर विद्या में टक्कर देने को तैयार हैं.

Begusarai
अनुपमा सिंह, शिक्षिका

अनुपमा ने बदल दी स्कूल की तकदीर
अमूमन सरकारी स्कूलों के बारे में लोग यही मानते हैं कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती है, सिर्फ योजनाओं का लाभ लेने के लिए सरकारी स्कूल में बच्चे जाते हैं. लेकिन सालों से चली आ रही इस धारणा को बदलने का श्रेय बेगूसराय जिले में अगर किसी को जाता है तो वह नाम है, अनुपमा सिंह का. अनुपमा सिंह शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं और सरकारी शिक्षक के पद पर मध्य विद्यालय बीहट में कार्यरत हैं.

Begusarai
कराटे सीखते बच्चे

शिक्षकों के सहयोग से किया बदलाव
जिस समय अनुपमा सिंह ने इस विद्यालय में योगदान दिया था, उस समय यह विद्यालय भी आम सरकारी विद्यालयों की तरह खानापूर्ति वाला विद्यालय था. लेकिन अनुपमा सिंह ने सभी सहायक शिक्षकों, खासकर प्रधानाचार्य रंजन सिंह के सहयोग से स्कूल में परिवर्तन की क्रांतिकारी शुरुआत की.

Begusarai
स्कूल में खेलते बच्चे

स्कूल में किए गए नए-नए प्रयोग
अनुपमा सिंह के आने के बाद बच्चों को पढ़ाई लिखाई के नए-नए तौर तरीके सिखाए गए. इतना ही नहीं स्पोर्ट्स, एथलेटिक्स, रंगमंच, नाटक, कलाकृति के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विषयों में बारीकी से शिक्षा दी गई. खास करके स्कूल में चेतना सत्र के आयोजन के कारण स्कूल के बच्चों में बौद्धिक क्षमता का जबरदस्त विकास हुआ है. अब बच्चे किसी भी मंच पर बखूबी अपनी बात रखते हैं और किसी भी मुद्दे पर बड़े से बड़े डिबेट में भाग लेने का हौसला रखते हैं.

बच्चों ने लहराया कामयाबी का परचम
स्कूल के सभी बच्चे अनुपमा सिंह को दीदी या मां कहकर पुकारते हैं. अनुपमा सिंह भी स्कूल के बच्चों को अपने बच्चों से भी ज्यादा प्यार देती हैं, जिस वजह से घरेलू वातावरण में बच्चे खुलकर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं. इस स्कूल के छात्र-छात्राओं ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में बेगूसराय और बिहार का परचम लहराया है. बिहार के चुनिंदा स्कूलों में शुमार मध्य विद्यालय बीहट अब परिचय का मोहताज नहीं है.

Begusarai
बच्चों के पढ़ाती शिक्षिका अनुपमा सिंह

स्कूल को देती हैं 12 घंटे से ज्यादा समय
ईटीवी भारत की टीम ने स्कूल के प्रधानाचार्य रंजन सिंह से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि अनुपमा सिंह के कारण इस स्कूल में काफी बदलाव हुए हैं. जिसके लिए वह बधाई और धन्यवाद की पात्र हैं. उन्होंने बताया कि अनुपमा का 12 घंटे से ज्यादा का समय स्कूल के लिए व्यतीत होता है. अपनी ड्यूटी के अलावा बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा के लिए वह अलग से एक संस्था से निःशुल्क सेवा दिलवा रही हैं. जो इस स्कूल के विकास के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है.

बच्चों के साथ दिव्यांग शिक्षिका अनुपमा

शिक्षकों के लिए प्रेणास्रोत हैं अनुपमा
बहरहाल, शिक्षक दिवस के अवसर पर अनुपमा सिंह जैसी सरकारी शिक्षक एक उदाहरण हैं. जो सरकारी सेवा में सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं आई हैं. सरकारी सेवा में आने का उद्देश्य शिक्षा दान करना उनकी प्राथमिकता में शुमार है. जिस तरीके से नया प्रयोग करते हुए अनुपमा सिंह ने इस विद्यालय की सूरत बदल दी, वो अन्य सरकारी शिक्षकों के लिए प्रेरणास्रोत है.

बेगूसरायः पुरानी कहावत है कि 'हिम्मते-ए-मर्दा, मदद-ए-खुदा' यानी कि अगर कोई इंसान किसी काम के लिए सच्चे मन से हिम्मत करे तो खुदा या भगवान भी उसकी मदद करता है. कुछ ऐसी ही हिम्मत शारीरिक रूप से दिव्यांग शिक्षक अनुपमा सिंह ने दिखाई, जिसकी बदौलत मध्य विद्यालय बीहट की तस्वीर ही बदल गई. यह स्कूल अब राष्ट्रीय स्तर के किसी भी सरकारी और प्राइवेट स्कूल को हर विद्या में टक्कर देने को तैयार हैं.

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अनुपमा सिंह, शिक्षिका

अनुपमा ने बदल दी स्कूल की तकदीर
अमूमन सरकारी स्कूलों के बारे में लोग यही मानते हैं कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती है, सिर्फ योजनाओं का लाभ लेने के लिए सरकारी स्कूल में बच्चे जाते हैं. लेकिन सालों से चली आ रही इस धारणा को बदलने का श्रेय बेगूसराय जिले में अगर किसी को जाता है तो वह नाम है, अनुपमा सिंह का. अनुपमा सिंह शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं और सरकारी शिक्षक के पद पर मध्य विद्यालय बीहट में कार्यरत हैं.

Begusarai
कराटे सीखते बच्चे

शिक्षकों के सहयोग से किया बदलाव
जिस समय अनुपमा सिंह ने इस विद्यालय में योगदान दिया था, उस समय यह विद्यालय भी आम सरकारी विद्यालयों की तरह खानापूर्ति वाला विद्यालय था. लेकिन अनुपमा सिंह ने सभी सहायक शिक्षकों, खासकर प्रधानाचार्य रंजन सिंह के सहयोग से स्कूल में परिवर्तन की क्रांतिकारी शुरुआत की.

Begusarai
स्कूल में खेलते बच्चे

स्कूल में किए गए नए-नए प्रयोग
अनुपमा सिंह के आने के बाद बच्चों को पढ़ाई लिखाई के नए-नए तौर तरीके सिखाए गए. इतना ही नहीं स्पोर्ट्स, एथलेटिक्स, रंगमंच, नाटक, कलाकृति के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विषयों में बारीकी से शिक्षा दी गई. खास करके स्कूल में चेतना सत्र के आयोजन के कारण स्कूल के बच्चों में बौद्धिक क्षमता का जबरदस्त विकास हुआ है. अब बच्चे किसी भी मंच पर बखूबी अपनी बात रखते हैं और किसी भी मुद्दे पर बड़े से बड़े डिबेट में भाग लेने का हौसला रखते हैं.

बच्चों ने लहराया कामयाबी का परचम
स्कूल के सभी बच्चे अनुपमा सिंह को दीदी या मां कहकर पुकारते हैं. अनुपमा सिंह भी स्कूल के बच्चों को अपने बच्चों से भी ज्यादा प्यार देती हैं, जिस वजह से घरेलू वातावरण में बच्चे खुलकर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं. इस स्कूल के छात्र-छात्राओं ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में बेगूसराय और बिहार का परचम लहराया है. बिहार के चुनिंदा स्कूलों में शुमार मध्य विद्यालय बीहट अब परिचय का मोहताज नहीं है.

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बच्चों के पढ़ाती शिक्षिका अनुपमा सिंह

स्कूल को देती हैं 12 घंटे से ज्यादा समय
ईटीवी भारत की टीम ने स्कूल के प्रधानाचार्य रंजन सिंह से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि अनुपमा सिंह के कारण इस स्कूल में काफी बदलाव हुए हैं. जिसके लिए वह बधाई और धन्यवाद की पात्र हैं. उन्होंने बताया कि अनुपमा का 12 घंटे से ज्यादा का समय स्कूल के लिए व्यतीत होता है. अपनी ड्यूटी के अलावा बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा के लिए वह अलग से एक संस्था से निःशुल्क सेवा दिलवा रही हैं. जो इस स्कूल के विकास के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है.

बच्चों के साथ दिव्यांग शिक्षिका अनुपमा

शिक्षकों के लिए प्रेणास्रोत हैं अनुपमा
बहरहाल, शिक्षक दिवस के अवसर पर अनुपमा सिंह जैसी सरकारी शिक्षक एक उदाहरण हैं. जो सरकारी सेवा में सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं आई हैं. सरकारी सेवा में आने का उद्देश्य शिक्षा दान करना उनकी प्राथमिकता में शुमार है. जिस तरीके से नया प्रयोग करते हुए अनुपमा सिंह ने इस विद्यालय की सूरत बदल दी, वो अन्य सरकारी शिक्षकों के लिए प्रेरणास्रोत है.

Intro:नोट-विसुअल और बाइट दो अलग अलग फ़ाइल अटैच किया हूँ चेक कर लें कृपया।

एंकर- पुरानी कहावत है" हिम्मते मर्द मदद ए खुदा" यानी कि अगर कोई व्यक्ति किसी कार्य के लिए सच्चे मन से हिम्मत जुटा लें तो खुदा या भगवान भी उसकी मदद करते हैं। कुछ ऐसी ही हिम्मत शारीरिक रूप से दिव्यांग शिक्षक अनुपमा सिंह ने दिखाई जिसके बदौलत अनुपमा सिंह ने मध्य विद्यालय बिहट की तस्वीर बदल कर रख दी। यह विद्यालय अब देश स्तर के किसी भी सरकारी और प्राइवेट विद्यालयों को हर विधा में टक्कर देने को तैयार है।


Body:vo- अमूमन सरकारी विद्यालयों के बारे में बच्चे और उनके अभिभावक यही मानते हैं कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती है सिर्फ सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए सरकारी विद्यालय खोले गए हैं ,लेकिन वर्षों से चली आ रही यह धारणा को बदलने का श्रेय बेगूसराय जिले में अगर किसी को जाता है वह नाम अनुपमा सिंह का है ।अनुपमा सिंह वैसे तो शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं और सरकारी शिक्षक के पद पर मध्य विद्यालय बिहट में कार्यरत हैं ।जिस समय अनुपमा सिंह ने इस विद्यालय में योगदान दिया था उस समय यह विद्यालय भी आम सरकारी विद्यालयों की तरह खानापूर्ति वाला विद्यालय था ,लेकिन अनुपमा सिंह ने सभी सहायक शिक्षकों, खासकर प्रधानाचार्य रंजन सिंह के सहयोग से स्कूल में परिवर्तन की क्रांतिकारी शुरुआत की ।ना सिर्फ यहां के बच्चों को पढ़ाई लिखाई के नए नए तौर-तरीके सिखाए गए, बल्कि स्पोर्ट्स, एथलेटिक्स, रंगमंच ,नाटक, कलाकृति के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विषयों में बारीकी से शिक्षा दी गई ।खास करके स्कूल के सत्र शुरुआत होने के साथ ही चेतना सत्र के आयोजन के कारण स्कूल के बच्चों में बौद्धिक क्षमता का जबरदस्त विकास हुआ है। अब बच्चे किसी भी मंच पर बखूबी अपनी बात रखते हैं और किसी भी मुद्दे पर बड़े से बड़े डिबेट में हैं भाग लेने का माद्दा रखते हैं। विद्यालय की खास बात ये हैं कि इस विद्यालय में लड़के और लड़कियों को अलग अलग तरीके से व्यवहार नहीं किया जाता है ।जो पढ़ाई लड़के करते हैं वहीं पढ़ाई लड़कियों को भी दी जाती है। इसी तरह एथलेटिक्स और रंगमंच से जुड़ी गतिविधियों में लड़कियां भी उतनी ही भागीदार होती हैं जितना किसी क्लास का छात्र।
स्कूल के सभी बच्चे अनुपमा सिंह को दीदी या मां कहकर पुकारते हैं और अनुपमा सिंह भी स्कूल के बच्चों को अपने बच्चों से भी ज्यादा प्यार देती हैं, जिस वजह से घरेलू वातावरण में बच्चे खुलकर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं। इस विद्यालय के छात्र छात्राओं ने राज्य स्तरीय और देश स्तरीय कई प्रतियोगिताओं में बेगूसराय और बिहार का परचम लहराया है ।शिक्षा विभाग बिहार के चुनिंदा स्कूलों में शुमार प्राथमिक विद्यालय बीहट अब परिचय का मोहताज नहीं है। कहीं ना कहीं अनुपमा सिंह के द्वारा किए गए कार्य अब इस विद्यालय की पहचान बन गए हैं ,जो आम सरकारी शिक्षकों के लिए एक नजीर बन गई है ।शिक्षक दिवस के अवसर पर ईटीवी भारत की टीम ने इस विद्यालय का दौरा किया और अनुपमा सिंह से खास बातचीत की।
वन टू वन विथ अनुपमा सिंह, दिव्यांग शिक्षिका मध्य विद्यालय बीहट
vo- ईटीवी भारत की टीम ने स्कूल के प्रधानाचार्य रंजन सिंह से बातचीत की प्रधानाचार्य रंजन सिंह ने बताया कि अनुपमा के कारण इस स्कूल में काफी बदलाव हुए हैं जिसके लिए वह बधाई और धन्यवाद की पात्र हैं ।उन्होंने बताया कि अनुपमा का 12 घंटे से ज्यादा का समय स्कूल के लिए व्यतीत होता है और अपनी ड्यूटी के अलावा बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा के लिए वह अलग से एक संस्था से निशुल्क सेवा दिलवा रही हैं जो इस स्कूल के विकास के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है।
बाइट-डॉ रंजन सिंह,प्रधानाचार्य, मध्य विद्यालय बीहट


Conclusion:fvo- बहरहाल शिक्षक दिवस के अवसर पर अनुपमा सिंह जैसे सरकारी शिक्षक एक उदाहरण हैं जो सरकारी सेवा में सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं आई हैं। सरकारी सेवा में आने का उद्देश्य शिक्षा दान करना उनकी प्राथमिकता में शुमार है ।जिस तरीके से नया नया प्रयोग करते हुए अनुपमा सिंह ने इस विद्यालय की सूरत बदल दी वो अन्य सरकारी शिक्षकों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
Last Updated : Sep 5, 2019, 2:59 PM IST
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