बेगूसरायः पुरानी कहावत है कि 'हिम्मते-ए-मर्दा, मदद-ए-खुदा' यानी कि अगर कोई इंसान किसी काम के लिए सच्चे मन से हिम्मत करे तो खुदा या भगवान भी उसकी मदद करता है. कुछ ऐसी ही हिम्मत शारीरिक रूप से दिव्यांग शिक्षक अनुपमा सिंह ने दिखाई, जिसकी बदौलत मध्य विद्यालय बीहट की तस्वीर ही बदल गई. यह स्कूल अब राष्ट्रीय स्तर के किसी भी सरकारी और प्राइवेट स्कूल को हर विद्या में टक्कर देने को तैयार हैं.
अनुपमा ने बदल दी स्कूल की तकदीर
अमूमन सरकारी स्कूलों के बारे में लोग यही मानते हैं कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती है, सिर्फ योजनाओं का लाभ लेने के लिए सरकारी स्कूल में बच्चे जाते हैं. लेकिन सालों से चली आ रही इस धारणा को बदलने का श्रेय बेगूसराय जिले में अगर किसी को जाता है तो वह नाम है, अनुपमा सिंह का. अनुपमा सिंह शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं और सरकारी शिक्षक के पद पर मध्य विद्यालय बीहट में कार्यरत हैं.
शिक्षकों के सहयोग से किया बदलाव
जिस समय अनुपमा सिंह ने इस विद्यालय में योगदान दिया था, उस समय यह विद्यालय भी आम सरकारी विद्यालयों की तरह खानापूर्ति वाला विद्यालय था. लेकिन अनुपमा सिंह ने सभी सहायक शिक्षकों, खासकर प्रधानाचार्य रंजन सिंह के सहयोग से स्कूल में परिवर्तन की क्रांतिकारी शुरुआत की.
स्कूल में किए गए नए-नए प्रयोग
अनुपमा सिंह के आने के बाद बच्चों को पढ़ाई लिखाई के नए-नए तौर तरीके सिखाए गए. इतना ही नहीं स्पोर्ट्स, एथलेटिक्स, रंगमंच, नाटक, कलाकृति के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विषयों में बारीकी से शिक्षा दी गई. खास करके स्कूल में चेतना सत्र के आयोजन के कारण स्कूल के बच्चों में बौद्धिक क्षमता का जबरदस्त विकास हुआ है. अब बच्चे किसी भी मंच पर बखूबी अपनी बात रखते हैं और किसी भी मुद्दे पर बड़े से बड़े डिबेट में भाग लेने का हौसला रखते हैं.
बच्चों ने लहराया कामयाबी का परचम
स्कूल के सभी बच्चे अनुपमा सिंह को दीदी या मां कहकर पुकारते हैं. अनुपमा सिंह भी स्कूल के बच्चों को अपने बच्चों से भी ज्यादा प्यार देती हैं, जिस वजह से घरेलू वातावरण में बच्चे खुलकर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं. इस स्कूल के छात्र-छात्राओं ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में बेगूसराय और बिहार का परचम लहराया है. बिहार के चुनिंदा स्कूलों में शुमार मध्य विद्यालय बीहट अब परिचय का मोहताज नहीं है.
स्कूल को देती हैं 12 घंटे से ज्यादा समय
ईटीवी भारत की टीम ने स्कूल के प्रधानाचार्य रंजन सिंह से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि अनुपमा सिंह के कारण इस स्कूल में काफी बदलाव हुए हैं. जिसके लिए वह बधाई और धन्यवाद की पात्र हैं. उन्होंने बताया कि अनुपमा का 12 घंटे से ज्यादा का समय स्कूल के लिए व्यतीत होता है. अपनी ड्यूटी के अलावा बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा के लिए वह अलग से एक संस्था से निःशुल्क सेवा दिलवा रही हैं. जो इस स्कूल के विकास के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है.
शिक्षकों के लिए प्रेणास्रोत हैं अनुपमा
बहरहाल, शिक्षक दिवस के अवसर पर अनुपमा सिंह जैसी सरकारी शिक्षक एक उदाहरण हैं. जो सरकारी सेवा में सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं आई हैं. सरकारी सेवा में आने का उद्देश्य शिक्षा दान करना उनकी प्राथमिकता में शुमार है. जिस तरीके से नया प्रयोग करते हुए अनुपमा सिंह ने इस विद्यालय की सूरत बदल दी, वो अन्य सरकारी शिक्षकों के लिए प्रेरणास्रोत है.