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हौसले को सलाम, जब 'सरकार' ने नहीं सुनी तो ग्रामीणों ने खुद पैसे जोड़कर बना लिया पुल

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Published : Jul 17, 2021, 2:02 PM IST

Updated : Jul 17, 2021, 5:28 PM IST

बांका के एक गांव में लोगों ने एकजुटता की मिसाल कायम की है. जब किसी नेता, जनप्रतिनिधि या अफसर ने पुल नहीं बनवाया तो ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर इस कार्य को करने का संकल्प ले लिया है. पुल आधा बनकर तैयार भी है. पढ़ें रिपोर्ट.

बांका में पुल
बांका में पुल

बांकाः राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक मशहूर कविता है. 'मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है. गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर'. इस काव्य पंक्ति को जिले के अमरपुर प्रखंड अंतर्गत दौना सज्जादपुर गांव (Dauna Sajjadpur Village) के लोगों ने चरितार्थ कर दिखाया है.

दरअसल, यहां के ग्रामीणों ने विलासी नदी (Vilasi River) पर पुल बनाने का प्रण ले लिया है. जिसके बाद ग्रामीणों ने आपस में चंदा इकट्ठा किया और पुल को मूर्त रूप दने में जुट गए. आखिरकार श्रमदान और जमा किए पैसों से पुल का ढांचा तैयार हो गया है. बस ढलाई का इंतजार है. ग्रामीणों के अनुसार तीन दशकों से वे अपने नेता का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन आश्वासन के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला. गांव को दो हिस्सों में बांट रही इस नदी पर अब जल्द ही पुल तैयार हो जाएगा.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें- गंगा पर मेगा ब्रिज: कुछ पर कोरोना का असर तो कुछ में एजेंसी बन रही बाधा

बता दें कि दौना सज्जादपुर से होकर मुख्य सड़क के बगल से विलासी नदी बहती है. जिससे गांव दो हिस्से में बंट जाता है. पूर्व विधायक से लेकर वर्तमान विधायक तक नदी पर पुल बनाने का वादा करते रहे हैं लेकिन किसी ने इसे पूरा नहीं किया. अंत में ग्रामीणों को चंदा इकट्ठा करना ही एकमात्र उपाय लगा. खुशी की बात तो यह है कि ग्रामीणों का यह प्रयास रंग लाने लगा है. चार लाख से अधिक की राशि खर्च कर विलासी नदी पर पुल का ढांचा खड़ा कर दिया गया है. अब सिर्फ ढलाई का काम बांकी रह गया है.

पंचायत समिति सदस्य मोहम्मद जब्बार ने बताया कि 'विलासी नदी गांव को दो हिस्सों में बांटती है. एक हिस्से के लोगों को उतनी परेशानी नहीं उठानी पड़ती है, जितना नदी के दूसरे पार सैकड़ों घरों के लोगों को उठानी पड़ती है. नदी काफी गहरी होने के कारण लोगों के लिए इसे पार करना काफी मुश्किल भरा काम होता है. खासकर बरसात में परेशानी बढ़ जाती है. इस परेशानी से निबटने के लिये दशकों से लोग चचरी पुल बनाकर पार होते रहे थे.

''वर्तमान से लेकर पूर्व विधायक तक ने कई बार आश्वासन दिया. लेकिन पुल का निर्माण नहीं कराया. पूर्व विधायक जनार्दन मांझी ने तो 10 बार चुनाव के समय में पुल का नापी भी कराया. वर्तमान में बिहार के ग्रामीण कार्य मंत्री जयंत राज ने भी चुनाव के समय में पुल बनाने का वादा किया था. लेकिन वादा करके भूल गए. ग्रामीणों ने आपस में चंदा एकत्रित कर पुल बनाने का निर्णय लिया है. पुल का काम लगभग पूरा हो चुका है. सिर्फ ढलाई का ही काम बाकी रह गया है. पुल बन जाने से 500 लोगों को सीधा फायदा होगा.'' - मो. जब्बार, पंचायत समिति सदस्य , दौना

यह भी पढ़ें- अब और घटेगी बिहार और झारखंड के बीच की दूरी, सोन नदी पर पंडुका पुल निर्माण का रास्ता साफ

'पुल नहीं रहने की वजह से बारिश के दिनों में काफी समस्या होती थी. खासकर मरीजों को अस्पताल ले जाने में कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता था. नेताओं के वादे तो झूठ ही साबित हुए. इस पुल के लिये क्षेत्र के सासंद और विधायक से गुहार लगाते-लगाते और आश्वासन का घूंट पीते-पीते सभी लोग थक चुके थे. ग्रामीणों ने अपना श्रमदान देकर पुल का अधिकांश काम कर लिया है. इस नेक कार्य में गांव के मो. जब्बार का बड़ा सहयोग रहा. पुल बनाते वक्त उन्होंने कहा था कि चंदा के बाद भी अगर राशि घटेगी तो उसकी भरपाई करेंगे. अब जल्द ही ढलाई का कार्य होने वाला है. ढलाई होने के बाद दशकों से चली आ रही समस्या का समाधान हो जाएगा. ग्रामीणों की आवाजाही सुगम हो जाएगी.' -मो. अशफाक मंसूरी, ग्रामीण

यह भी पढ़ें- उद्घाटन से पहले ही नदी में बह गया 1.40 करोड़ की लागत से बन रहा ये पुल

बांकाः राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक मशहूर कविता है. 'मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है. गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर'. इस काव्य पंक्ति को जिले के अमरपुर प्रखंड अंतर्गत दौना सज्जादपुर गांव (Dauna Sajjadpur Village) के लोगों ने चरितार्थ कर दिखाया है.

दरअसल, यहां के ग्रामीणों ने विलासी नदी (Vilasi River) पर पुल बनाने का प्रण ले लिया है. जिसके बाद ग्रामीणों ने आपस में चंदा इकट्ठा किया और पुल को मूर्त रूप दने में जुट गए. आखिरकार श्रमदान और जमा किए पैसों से पुल का ढांचा तैयार हो गया है. बस ढलाई का इंतजार है. ग्रामीणों के अनुसार तीन दशकों से वे अपने नेता का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन आश्वासन के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला. गांव को दो हिस्सों में बांट रही इस नदी पर अब जल्द ही पुल तैयार हो जाएगा.

देखें रिपोर्ट

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बता दें कि दौना सज्जादपुर से होकर मुख्य सड़क के बगल से विलासी नदी बहती है. जिससे गांव दो हिस्से में बंट जाता है. पूर्व विधायक से लेकर वर्तमान विधायक तक नदी पर पुल बनाने का वादा करते रहे हैं लेकिन किसी ने इसे पूरा नहीं किया. अंत में ग्रामीणों को चंदा इकट्ठा करना ही एकमात्र उपाय लगा. खुशी की बात तो यह है कि ग्रामीणों का यह प्रयास रंग लाने लगा है. चार लाख से अधिक की राशि खर्च कर विलासी नदी पर पुल का ढांचा खड़ा कर दिया गया है. अब सिर्फ ढलाई का काम बांकी रह गया है.

पंचायत समिति सदस्य मोहम्मद जब्बार ने बताया कि 'विलासी नदी गांव को दो हिस्सों में बांटती है. एक हिस्से के लोगों को उतनी परेशानी नहीं उठानी पड़ती है, जितना नदी के दूसरे पार सैकड़ों घरों के लोगों को उठानी पड़ती है. नदी काफी गहरी होने के कारण लोगों के लिए इसे पार करना काफी मुश्किल भरा काम होता है. खासकर बरसात में परेशानी बढ़ जाती है. इस परेशानी से निबटने के लिये दशकों से लोग चचरी पुल बनाकर पार होते रहे थे.

''वर्तमान से लेकर पूर्व विधायक तक ने कई बार आश्वासन दिया. लेकिन पुल का निर्माण नहीं कराया. पूर्व विधायक जनार्दन मांझी ने तो 10 बार चुनाव के समय में पुल का नापी भी कराया. वर्तमान में बिहार के ग्रामीण कार्य मंत्री जयंत राज ने भी चुनाव के समय में पुल बनाने का वादा किया था. लेकिन वादा करके भूल गए. ग्रामीणों ने आपस में चंदा एकत्रित कर पुल बनाने का निर्णय लिया है. पुल का काम लगभग पूरा हो चुका है. सिर्फ ढलाई का ही काम बाकी रह गया है. पुल बन जाने से 500 लोगों को सीधा फायदा होगा.'' - मो. जब्बार, पंचायत समिति सदस्य , दौना

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'पुल नहीं रहने की वजह से बारिश के दिनों में काफी समस्या होती थी. खासकर मरीजों को अस्पताल ले जाने में कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता था. नेताओं के वादे तो झूठ ही साबित हुए. इस पुल के लिये क्षेत्र के सासंद और विधायक से गुहार लगाते-लगाते और आश्वासन का घूंट पीते-पीते सभी लोग थक चुके थे. ग्रामीणों ने अपना श्रमदान देकर पुल का अधिकांश काम कर लिया है. इस नेक कार्य में गांव के मो. जब्बार का बड़ा सहयोग रहा. पुल बनाते वक्त उन्होंने कहा था कि चंदा के बाद भी अगर राशि घटेगी तो उसकी भरपाई करेंगे. अब जल्द ही ढलाई का कार्य होने वाला है. ढलाई होने के बाद दशकों से चली आ रही समस्या का समाधान हो जाएगा. ग्रामीणों की आवाजाही सुगम हो जाएगी.' -मो. अशफाक मंसूरी, ग्रामीण

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Last Updated : Jul 17, 2021, 5:28 PM IST
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