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बंजर भूमि पर तरबूज की खेती का लिया साहसिक फैसला, लेकिन बिक्री पर लगी कोरोना की नजर

किसानों का कहना है कि महंगी कीमत पर बीज खरीदकर तरबूज लगा दिया और फल भी अच्छा हुआ. जब तैयार फसल को बेचने की बारी आई तो कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया. ऐसी स्थिति है कि फसल पककर तैयार है. लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे हैं.

बांका
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Published : May 30, 2020, 8:41 PM IST

बांका: जिले की बंजर भूमि पर बागवानी के साथ-साथ इंटरक्रॉपिंग के तहत तरबूज की खेती की शुरुआत करना किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है. किसानों के तरबूज की फसल पर कोरोना की नजर लग गई है. दरअसल, कटोरिया प्रखंड के जयपुर अंतर्गत घुटिया गांव के एक दर्जन से अधिक किसानों ने 13 एकड़ बंजर भूमि पर पहली बार तरबूज की खेती की है.

बांका
तरबूज की देखभाल करता किसान

किसानों का कहना है कि महंगी कीमत पर बीज खरीदकर तरबूज लगा दिया और फलन भी अच्छा हुआ. जब तैयार फसल को जब बेचने की बारी आई तो कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया. ऐसी स्थिति है कि फसल पककर तैयार है. लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे हैं. जिससे किसानों के लिए लागत भी वसूल कर पाना मुश्किल हो रहा है. वहीं, बंजर भूमि पर पहली बार तरबूज की खेती करने का साहसिक फैसला अब किसानों को कांटे की तरह चुभने लगा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

लॉकडाउन की वजह से बिक्री हुआ प्रभावित
किसान जयकांत यादव बताते हैं कि बागवानी के साथ-साथ इंटरक्रॉपिंग के तहत पहली बार बंजर भूमि पर तरबूज की खेती की थी. पैदावार भी बंपर हुआ. लेकिन लॉकडाउन की वजह बिक्री नहीं हो पा रही है. तरबूज की खेती करने में जो पूंजी लगाया अब उसके भी वापस आने की उम्मीद नहीं रही. लॉकडाउन की वजह से आवाजाही की समस्या हो रही है. इसलिए कहीं जाकर बिक्री भी नहीं कर पा रहे हैं और ना ही व्यापारी आ रहे हैं. वहीं एक अन्य किसान राजेश कुमार यादव ने कहा कि महंगी कीमत पर उत्तम क्वालिटी का तरबूज लगाया. फसल पक कर तैयार है. अब तरबूज की बिक्री करने में परेशानी हो रही है.

बांका
तरबूज की खेती

पहली बार 13 एकड़ में तरबूज की खेती
किसान राजेश ने आगे बताया कि आलम यह है कि स्थानीय स्तर पर जो थोड़ा बहुत बिक रहा है. बाकी तरबूज खेतों में ही पड़े-पड़े बर्बाद हो जा रहे हैं. कोरोना काल में लागत भी वसूल कर पाना मुश्किल हो गया है. वहीं, किसान पंचानंद यादव कहते हैं कि एक दर्जन से अधिक किसानों ने मिलकर 13 एकड़ बंजर भूमि पर पहली बार तरबूज की खेती की है. लेकिन कोरोना के चलते आवाजाही प्रभावित है. जिससे खरीदार नहीं पहुंच पा रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्र में लगने वाले हटिया में भी बिक्री नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि पुलिस वाले भगा देते हैं. आस-पास के ग्रामीण ही दो-चार खरीद कर ले जाते हैं.

बांका
खेतों में फसल की देखभाल करते किसान

गौरतलब है कि पंचानंद यादव ने बताया कि एक लाख से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है. बिक्री नहीं होने की वजह से लागत भी निकलना असंभव सा प्रतीत हो रहा है. इस परेशानी का कोई हल नहीं दिख रहा है.

बांका: जिले की बंजर भूमि पर बागवानी के साथ-साथ इंटरक्रॉपिंग के तहत तरबूज की खेती की शुरुआत करना किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है. किसानों के तरबूज की फसल पर कोरोना की नजर लग गई है. दरअसल, कटोरिया प्रखंड के जयपुर अंतर्गत घुटिया गांव के एक दर्जन से अधिक किसानों ने 13 एकड़ बंजर भूमि पर पहली बार तरबूज की खेती की है.

बांका
तरबूज की देखभाल करता किसान

किसानों का कहना है कि महंगी कीमत पर बीज खरीदकर तरबूज लगा दिया और फलन भी अच्छा हुआ. जब तैयार फसल को जब बेचने की बारी आई तो कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया. ऐसी स्थिति है कि फसल पककर तैयार है. लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे हैं. जिससे किसानों के लिए लागत भी वसूल कर पाना मुश्किल हो रहा है. वहीं, बंजर भूमि पर पहली बार तरबूज की खेती करने का साहसिक फैसला अब किसानों को कांटे की तरह चुभने लगा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

लॉकडाउन की वजह से बिक्री हुआ प्रभावित
किसान जयकांत यादव बताते हैं कि बागवानी के साथ-साथ इंटरक्रॉपिंग के तहत पहली बार बंजर भूमि पर तरबूज की खेती की थी. पैदावार भी बंपर हुआ. लेकिन लॉकडाउन की वजह बिक्री नहीं हो पा रही है. तरबूज की खेती करने में जो पूंजी लगाया अब उसके भी वापस आने की उम्मीद नहीं रही. लॉकडाउन की वजह से आवाजाही की समस्या हो रही है. इसलिए कहीं जाकर बिक्री भी नहीं कर पा रहे हैं और ना ही व्यापारी आ रहे हैं. वहीं एक अन्य किसान राजेश कुमार यादव ने कहा कि महंगी कीमत पर उत्तम क्वालिटी का तरबूज लगाया. फसल पक कर तैयार है. अब तरबूज की बिक्री करने में परेशानी हो रही है.

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तरबूज की खेती

पहली बार 13 एकड़ में तरबूज की खेती
किसान राजेश ने आगे बताया कि आलम यह है कि स्थानीय स्तर पर जो थोड़ा बहुत बिक रहा है. बाकी तरबूज खेतों में ही पड़े-पड़े बर्बाद हो जा रहे हैं. कोरोना काल में लागत भी वसूल कर पाना मुश्किल हो गया है. वहीं, किसान पंचानंद यादव कहते हैं कि एक दर्जन से अधिक किसानों ने मिलकर 13 एकड़ बंजर भूमि पर पहली बार तरबूज की खेती की है. लेकिन कोरोना के चलते आवाजाही प्रभावित है. जिससे खरीदार नहीं पहुंच पा रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्र में लगने वाले हटिया में भी बिक्री नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि पुलिस वाले भगा देते हैं. आस-पास के ग्रामीण ही दो-चार खरीद कर ले जाते हैं.

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खेतों में फसल की देखभाल करते किसान

गौरतलब है कि पंचानंद यादव ने बताया कि एक लाख से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है. बिक्री नहीं होने की वजह से लागत भी निकलना असंभव सा प्रतीत हो रहा है. इस परेशानी का कोई हल नहीं दिख रहा है.

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