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धोरैया सीट पर भूदेव चौधरी ने पहली बार जलाया लालटेन, कार्यकर्ताओं ने किया स्वागत

बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों पर हुए चुनाव के परिणाम घोषित हो गए हैं. बिहार चुनाव में एनडीए को एक बार फिर पूर्ण बहुमत मिला है. जबकि आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.

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बांका
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Published : Nov 12, 2020, 7:16 PM IST

बांका: जिले के धोरैया विधानसभा सीट पर पहली बार लालटेन जला है. राजद के लिए धोरैया सीट निकालना आसान नहीं था. धोरैया में पिछले 20 सालों से जदयू का एकछत्र राज था. राजद प्रत्याशी भूदेव चौधरी ने इसे समाप्त कर विजयी हुए हैं. 20 साल पहले धोरैया में सीपीआई के गढ़ को भी ध्वस्त करके जदयू का पताका लहराने वाले भी भूदेव चौधरी ही थे. इस बार जदयू के गढ़ में राजद का विजयी पताका फहराने वाला भी भूदेव चौधरी ही बने.

पुरानी पहचान बनी जीत का कारण
सीपीआई के गढ़ को ध्वस्त कर पहली बार साल 2000 में भूदेव चौधरी ने जदयू उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की थी. 2005 में एक बार भी जीत का सेहरा भूदेव चौधरी को धोरैया कि जनता की ओर से पहनाया गया. चार साल बाद 2009 में जमुई के सांसद बनने के बाद धोरैया की कमान मनीष कुमार को सौंप दिया गया. लेकिन धोरैया से भूदेव चौधरी का लगाव कम नहीं हुआ. सांसद बनने के बाद भी वह हमेश धोरैया की जनता से रूबरू होते रहते थे. इसलिए धोरैया कि जनता के बीच उनकी पहचान बनी हुई थी और यहां की जनता उनके 9 साल के कार्यकाल को भी बखूबी जानती थी. उनकी पुरानी पहचान भी धोरैया में जदयू के समीकरण को ध्वस्त करने में सहायक बनी.

सत्ता का घमंड बना हार का कारण
सीपीआई के गढ़ को अब तक संभालकर रखने वाले पूर्व विधान पार्षद सह सीपीआई नेता संजय कुमार का भी भरपूर सहयोग महागठबंधन को मिला. इससे पहले कभी भी उन्हे खुलकर प्रचार करते हुए नही देखा गया था. इस चुनाव में खुलकर राजद प्रत्याशी भूदेव चौधरी के पक्ष में चुनाव प्रचार किया. धोरैया के आम लोगों की माने तो सत्ता का घमंड और न झुकने की आदत जदयू नेता मनीष कुमार के लिए घातक साबित हुआ. जदयू नेता मनीष कुमार ने एनडीए कार्यकताओं को कभी तरजीह नहीं दी. एनडीए की सरकार में धोरैया के भाजपा कार्यकर्ता अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे थे.

बांका: जिले के धोरैया विधानसभा सीट पर पहली बार लालटेन जला है. राजद के लिए धोरैया सीट निकालना आसान नहीं था. धोरैया में पिछले 20 सालों से जदयू का एकछत्र राज था. राजद प्रत्याशी भूदेव चौधरी ने इसे समाप्त कर विजयी हुए हैं. 20 साल पहले धोरैया में सीपीआई के गढ़ को भी ध्वस्त करके जदयू का पताका लहराने वाले भी भूदेव चौधरी ही थे. इस बार जदयू के गढ़ में राजद का विजयी पताका फहराने वाला भी भूदेव चौधरी ही बने.

पुरानी पहचान बनी जीत का कारण
सीपीआई के गढ़ को ध्वस्त कर पहली बार साल 2000 में भूदेव चौधरी ने जदयू उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की थी. 2005 में एक बार भी जीत का सेहरा भूदेव चौधरी को धोरैया कि जनता की ओर से पहनाया गया. चार साल बाद 2009 में जमुई के सांसद बनने के बाद धोरैया की कमान मनीष कुमार को सौंप दिया गया. लेकिन धोरैया से भूदेव चौधरी का लगाव कम नहीं हुआ. सांसद बनने के बाद भी वह हमेश धोरैया की जनता से रूबरू होते रहते थे. इसलिए धोरैया कि जनता के बीच उनकी पहचान बनी हुई थी और यहां की जनता उनके 9 साल के कार्यकाल को भी बखूबी जानती थी. उनकी पुरानी पहचान भी धोरैया में जदयू के समीकरण को ध्वस्त करने में सहायक बनी.

सत्ता का घमंड बना हार का कारण
सीपीआई के गढ़ को अब तक संभालकर रखने वाले पूर्व विधान पार्षद सह सीपीआई नेता संजय कुमार का भी भरपूर सहयोग महागठबंधन को मिला. इससे पहले कभी भी उन्हे खुलकर प्रचार करते हुए नही देखा गया था. इस चुनाव में खुलकर राजद प्रत्याशी भूदेव चौधरी के पक्ष में चुनाव प्रचार किया. धोरैया के आम लोगों की माने तो सत्ता का घमंड और न झुकने की आदत जदयू नेता मनीष कुमार के लिए घातक साबित हुआ. जदयू नेता मनीष कुमार ने एनडीए कार्यकताओं को कभी तरजीह नहीं दी. एनडीए की सरकार में धोरैया के भाजपा कार्यकर्ता अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे थे.

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