बांकाः आम को फलों का राजा कहा जाता है. आम में भी दूधिया मालदा आम की बात हो तो इसकी अपनी विशेष पहचान है. बांका जिले के कटोरिया जैसे पहाड़ी इलाकों में बड़े पैमाने पर दूधिया मालदा आम की उपज होती है. जिससे इसकी बागवानी करने वाले किसानों को भी बड़ा मुनाफा होता है. लेकिन पिछले दो सालों से कटोरिया के ग्रामीण क्षेत्रों के दर्जनों दूधिया मालदा आम की बागवानी पर निर्भर रहनेवाले किसानों के लिए फलों का राजा घाटे का सौदा साबित हो रहा है. कोरोना और लाॅकडाउन के कारण इन किसानों तक व्यापारी पहुंच नहीं पा रहे हैं, वहीं किसान भी अपने आम को बड़े शहरों तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं. जिसके कारण उन्हें औने-पौने दामों में अपनी उपज को बेचना पड़ रहा है.
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लॉकडाउन के कारण हो रहा घाटा
सैकड़ों एकड़ में दूधिया मालदा आम का बगीचों में लगे अपनी आम के खरीदारों के बाट जोह रहे किसान अब खुद से ही आस-पास के मार्केटों में अपनी उपज को औने-पौने दामों पर दे रहे हैं.
कटोरिया के सुदूरवर्ती छाताकुरुम गांव में लगभग 20 एकड़ में 500 से अधिक दूधिया मालदा के पेड़ है. इस बगीचे के मालिक किसान प्रमोद कुमार सिंह बताते हैं कि खरीदार नहीं मिलने की वजह से इस बार आम के कारोबार में जबरदस्त घाटा हो रहा है.
"किसानों को ओने-पौने दाम में आम बेचना पड़ रहा है. कटोरिया से देश के विभिन्न शहरों में आम जाता था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से व्यापारी नहीं पहुंच पा रहे हैं. जिसके चलते अब बगीचे में ही आम सड़ने में लगे हैं. स्थानीय स्तर पर भी खरीदार कम है. लॉकडाउन की वजह से लोग अपने घरों से नहीं निकल पा रहे हैं, जिसके चलते उनके आमों की बिक्री नहीं हो पा रही है." प्रमोद कुमार सिंह, किसान
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जिला प्रशासन से नहीं मिल रही मदद
एक और आम बगीचे के मालिक किसान विनोद सिंह बताते हैं कि आम का उत्पादन करनेवाले किसानों को जिला प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है. दो वर्षों से लॉक डाउन की वजह से आम की बिक्री पर खासा असर पड़ा है. जिसके चलते इस बार भी ये घाटे का सौदा ही साबित हुआ है. वे बताते हैं कि कटोरिया से पटना, हाजीपुर, कोलकाता सहित अन्य शहरों में आम भेजे जाते हैं. लेकिन इस बार व्यापारियों के नहीं आने की वजह से आमों की बिक्री नही हो सकी है.
किसान कहीं जाकर आम बेच भी नहीं सकते हैं क्योंकि जिला प्रशासन की ओर से रोका जाता है. यदि जिला प्रशासन की और से आम के किसानों के लिए ई-पास निर्गत करा दिया जाए तो किसानों को कुछ हद तक सहूलियत होगी और घाटे की भी थोड़ी बहुत भरपाई हो सकेगी. विनोद सिंह, किसान