बांका: जिले का लाइफलाइन कहे जाने वाले चांदन नदी पर बने पुल का जमीनदोज हुए सात माह से अधिक समय बीत गया है. इस पुल के अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह बिहार को बंगाल और झारखंड से जोड़ने में एक कड़ी का काम करता है. लेकिन अब लोग एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर इस समस्या से निजात कब मिलेगा?
चांदन नदी पर बने पुल के जमीनदोज हो जाने के बाद 9 महत्वपूर्ण थाने के अलावा बाराहाट, बौंसी, रजौन और धोरैया के लाखों की आबादी पूरी तरह से जिला मुख्यालय से कटा हुआ है. सदर प्रखंड के 50 से अधिक ऐसे गांव हैं. जहां के लोगों को रोजी-रोटी का जुगाड़ बांका आए बगैर पूरा नहीं हो सकता है. वहीं, राजस्व मंत्री रामनारायण मंडल की मानें तो केंद्र सरकार की ओर से लगभग 58 करोड़ की राशि पुल और डायवर्सन निर्माण के लिए स्वीकृत की गई है. फिलहाल लोगों के जेहन में एक ही सवाल बार-बार कौंध रहा है कि आखिर पुल का निर्माण कब शुरू होगा. इसका सटीक उत्तर किसी के पास नहीं है.
'नहीं मदद कर रहे जनप्रतिनिधि'
वहीं, शहर के डोकानिया मार्केट में काम करने वाले हरीश झा ने बताया कि सात महीने से तकलीफों के दौर से गुजर रहे हैं. स्थानीय सांसद से लेकर विधायक तक लोगों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि नदी में अधिक पानी आ जाने के बाद आवाजाही भी बड़ी समस्या हो जाती है. जीविका का साधन बांका पर ही निर्भर है. इसलिए बांका आए बगैर परिवार भी चलाना मुश्किल है.
व्यवसाय पूरी तरह से हो चुका है चौपट
बता दें कि चांदन नदी पर बने पुल के जमीनदोज हो जाने के बाद व्यवसाई से लेकर छोटे-छोटे दुकानदारों को भी परेशानी के दौर से गुजरना पड़ रहा है. गांव में किराना दुकान चलाने वाले राजवीर सिंह ने बताया कि सामान ले जाने में काफी परेशानी होती है. हालात ऐसे उत्पन्न हो गए हैं कि आमदनी से अधिक खर्च ही हो जा रहे हैं. वहीं, कुंदन सिंह बताते हैं कि पुल जमीनदोज हो जाने के बाद व्यवसाई वर्ग को काफी नुकसान हो रहा है. नदी के उस पार जितने भी ग्रामीण ग्राहक हैं, उनको बांका आने में परेशानी हो रही है. उन्होंने कहा कि वे लोग बाराहाट, बौंसी और रजौन की ओर रुख कर लिया है. जिसके चलते बांका का व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो गया है. उन्होंने कहा कि रोजाना जहां 40 हजार की बिक्री हो जाती थी. अब सिमटकर 5 हजार तक पहुंच गया है. कोई भी भारी समान पुल के उस पार नहीं जा पा रहा है. सामान लाने में भी अतिरिक्त राशि खर्च करने पड़ रहे हैं.