बांका: जिले के किसान पारंपरिक खेती में फायदा नहीं होता देख वैकल्पिक खेती का रास्ता अख्तियार करने लगे हैं. लगातार मौसम की बेरुखी के चलते किसानों को पिछले तीन सालों में काफी नुकसान हुआ है. खरीफ और रबी फसल के बीच तीन महीने के अंतराल को कम करने, बेहतर उपज और मुनाफा के लिए इस बार किसानों ने बड़े पैमाने पर मूंग की खेती की है. किसानों के मुताबिक मूंग की खेती करने से दो फायदे मिलते हैं.
पहला कम समय में दलहनी फसल मिल जाता है और दूसरा खेतों की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखने के लिए नाइट्रोजन की जरूरत पड़ती है. जो मूंग के पौधे से हरी खाद के तौर पर मिल जाता है. किसी कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक जिले में पहली बार 20 हजार से अधिक हेक्टेयर में मूंग की खेती किसानों ने की है.
न्यूनतम खर्च पर मूंग की होती अधिक उपज
एक किसान ने बताया कि मूंग की खेती करना काफी फायदेमंद है. मूंग का पौधा धान की खेती के समय जैविक खाद का काम करता है. न्यूनतम खर्च पर मूंग की खेती की जा सकती है. सिर्फ ट्रैक्टर से जुताई कर खेतों में मूंग पाया जाता है. धान की खेती के समय खाद की भी जरूरत नहीं पड़ती है. एक कट्ठा में 20 किलो तक मूंग की उपज हो जाती है.
वहीं, एक अन्य किसान बताते हैं मूंग की खेती करने के पीछे का कारण ये है कि इसमें खर्च काफी कम होता है और उपज ज्यादा होता है. बाजार में अच्छी खासी कीमत भी मिल जाती है. जिस खेत में मूंग लगा रहता है उसमें धान की रोपाई के समय रासायनिक उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है. बारिश पड़ने पर मूंग लगे खेत की जुताई कर दी जाती है. इसे खेत को हरी खाद मिल जाता है और फसल का उत्पादन बेहतर होता है.
मूंग की फसल से खेतों में बढ़ रहा है नाइट्रोजन फिक्सेशन
जिला कृषि अधिकारी सुदामा महतो ने बताया कि कृषि विभाग का प्रयास हमेशा रहता है क्रॉपिंग इंटेंसिटी बढ़ाया जाए. किसान दो फसलों पर ही निर्भर न रहें. खासकर गर्मी के दौरान जब खेत खाली रहता है तो उसमें अतिरिक्त फसल लगाने पर जोर दिया गया. इसलिए किसानों को मूंग की खेती करने के लिए हरित चादर योजना के तहत प्रेरित किया जा रहा है.
मूंग की खेती करने से खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ती है. मूंग की फसल से खेतों में नाइट्रोजन फिक्सेशन बढ़ रहा है और बायोमास्क से खेती की संरचना अच्छी हो रही है. किसानों की रूचि देखते हुए 17 हजार हेक्टेयर में मूंग की खेती करने का लक्ष्य रखा गया था. किसानों ने इस बार 20 हजार से अधिक हेक्टेयर में मूंग की खेती की है. खास बात यह है कि बिना किसी अनुदान और सहायता के किसानों ने बड़े पैमाने पर खेती की है.