अररिया: बिहार सरकार के शिक्षा विभाग (Education Department) के आदेश के विरोध में बोरा बेचने वाले कटिहार (Katihar) के शिक्षक मो. तमिजुद्दीन को निलंबित किए जाने के विरोध में शुक्रवार को शिक्षकों ने कई जिलों में विरोध प्रदर्शन किया. अररिया, कैमूर और भोजपुर में सड़क पर शिक्षकों ने बोरा बेचा और मो. तमिजुद्दीन के निलंबन के खिलाफ नारेबाजी की.
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राज्य शिक्षक संघ (State Teachers Association) के आह्वान पर अररिया जिला के अररिया प्रखंड के शिक्षकों ने चांदनी चौक पर विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान शिक्षक सिर पर रखकर बोरा बेचते नजर आए. शिक्षकों ने मांग किया कि बोरा बेचने वाले शिक्षक मो. तमिजुद्दीन को निलंबन मुक्त किया जाए और बोरा बेचने का आदेश वापस लिया जाए.
कैमूर जिला के भभुआ प्रखंड कार्यालय पर धरना देते हुए शिक्षकों ने एमडीएम (MDM) का बोरा बेचा. इस दौरान राज्य सरकार के विरोध में जमकर नारेबाजी की गई. जिलाध्यक्ष संतोष कुमार प्रसाद ने कहा, 'सरकार शिक्षकों के खिलाफ काम कर रही है. बिहार सरकार शिक्षा और शिक्षक का स्तर नीचे गिरा चुकी है, इसके कारण शिक्षक बोरा बेचने को मजबूर हैं.'
भोजपुर में भी शिक्षकों ने सड़क पर बोरा बेचकर सरकार के आदेश का विरोध किया. जगदीशपुर में प्रखंड कार्यालय के सामने शिक्षक एकत्रित होकर बीच सड़क पर बोरा बेचने लगे. प्रति बोरे की कीमत 10 रुपये ली गई. शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष पंकज कुमार सिंह मंटू ने कहा, 'शिक्षा विभाग मध्याह्न भोजन के तत्कालीन निदेशक सतीश चन्द्र झा द्वारा 2014-15 और 2015-16 में सरकार द्वारा आवंटित चावल के खाली बोरा को 10 रुपये प्रति बोरा की दर से बेचकर पैसा जमा करने का निर्देश दिया गया था. इसके अनुपालन के लिए कटिहार के शिक्षक बोरा बेचने निकले तो सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया.
"सरकार बोरा बेचने का आदेश देने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करे. अगर चौबीस घंटे के अंदर मो. तमिजुद्दीन का निलंबन समाप्त नहीं हुआ तो 16 अगस्त को जिला मुख्यालय पर बोरा बेचने का कार्यक्रम किया जाएगा."- पंकज कुमार सिंह मंटू, जिलाध्यक्ष, शिक्षक संघ
बता दें कि पूरा मामला स्कूली बच्चों के मध्याह्न भोजन योजना से जुड़ा है. शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि सत्र 2014-15 और सत्र 2015-16 में सरकारी स्कूलों को जो एमडीएम के चावल उपलब्ध कराए गए थे, उनके खाली बोरों को गिनती के साथ बिक्री कर प्रति बोरा 10 रुपये की दर से राशि विभाग को भेजी जाए.
शिक्षा विभाग के इस आदेश से शिक्षक काफी परेशान हो गए हैं. उनका कहना है कि काफी समय बीत जाने के कारण बोरों को चूहों ने काट दिया है. वहीं, बेंच-डेस्क के अभाव में स्कूली बच्चों ने बैठने के लिए भी बोरों का इस्तेमाल किया है. अब पांच साल बाद उन पुराने बोरों को कहां से वापस लाएंगे और राशि कैसे भेजी जाएगी? शिक्षा विभाग के आदेश में यह भी कहा गया है कि जो शिक्षक बोरा बेचकर राशि विभाग को नहीं भेजेंगे, उनके वेतन से बोरे की राशि काट ली जाएगी.
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