अररियाः जिले के फारबिसगंज में मलंग बाबा की मजार पर आस्था की गंगा बहती है. यहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग हर वृहस्पतिवार को आते हैं. बाबा के मजार पर मन्नत मांगने और यहां के जल से निरोग होने की आस्था के बीच श्रद्धालुओं की धूम मचती है. मन्नत पूरी होने पर भक्त दाता शाह मलंग की मजार पर चादरपोशी करते हैं. खास बात यह है कि इस मजार की देखरेख करने वाले हिंदू समुदाय के ही लोग हैं. जिनकी पूरी आस्था इससे जुड़ी है.
अररिया के फारबिसगंज अनुमंडल में दाता शाह बाबा मलंग के मजार पर आस्था लिए हर वृहस्पतिवार को सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं. हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोग मन्नत मांगने पहुंचते हैं. क्योंकि यहां जल से निरोग होने की आस्था और विश्वास की परम्परा चली आ रही है. लोग बताते हैं कि इस मजार की जानकारी सपने में हुई थी. तब से आशा और विश्वास की सोच पर यह परम्परा शुरू हुई. उसी के बाद खंडहर को साफ कर मन्नतों का दौर शुरू हुआ. मन्नत पूरी होने पर चादरपोशी होने लगी. ये कहानी तकरीबन 18 वर्ष पुरानी है.
यह है मान्यता
यहां के धनावत परिवार को स्वप्न में मजार के होने की जानकारी मिली थी. उस वक्त न तो मलंग बाबा की प्रसिद्धि थी और ना ही आस्था की बहने वाली गंगा. आज जो भी लोग मजार पर मन्नतें मांगने जाते हैं, वहां जल रही अगरबत्ती के राख को सर पर तिलक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. लोग ये भी बताते हैं कि हर मुरादें यहां पूरी होती हैं. इस मजार के एक तरफ कुरान और दूसरी तरफ रामायण एकता का प्रतीक है. साथ ही अभी के हालात में जो बदलाव आया है उसके सुधार के लिए भी दुआ करते हैं.
हिंदू परिवार कर रहा देखभाल
हर साल 16 फरवरी को यहां उर्स मेला लगता है. कव्वाल बाहर से आते हैं. पूरी रात कव्वाली होती रहती है. भक्त झूमते रहते हैं. लोगों को 56 भोग का प्रसाद चढ़ावा और प्रसाद ग्रहण के लिए पूरे साल का इंतजार करना पड़ता है. मजार के अंदर जाने से पहले मर्द हो या महिला दोनों के का सिर ढ़का होना चाहिए. साथ ही चमड़े की कोई भी चीज अंदर नहीं ले जा सकते हैं. इस मजार की देखभाल धनावत परिवार के मनोज अग्रवाल और भाई विनोद अग्रवाल करते हैं. यहां पड़ोस के मुल्क नेपाल और देश के अन्य राज्यों बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं.