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मलंग बाबा की मजार पर बहती है आस्था की गंगा, सभी समुदायों के लोग करते हैं चादरपोशी

आज जो भी लोग मजार पर मन्नतें मांगने जाते हैं, वहां जल रही अगरबत्ती के राख को सर पर तिलक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. लोग ये भी बताते हैं कि यहां आने पर हर मुरादें पूरी होती हैं.

मजार पहुंचे लोग
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Published : Jun 11, 2019, 4:45 PM IST

अररियाः जिले के फारबिसगंज में मलंग बाबा की मजार पर आस्था की गंगा बहती है. यहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग हर वृहस्पतिवार को आते हैं. बाबा के मजार पर मन्नत मांगने और यहां के जल से निरोग होने की आस्था के बीच श्रद्धालुओं की धूम मचती है. मन्नत पूरी होने पर भक्त दाता शाह मलंग की मजार पर चादरपोशी करते हैं. खास बात यह है कि इस मजार की देखरेख करने वाले हिंदू समुदाय के ही लोग हैं. जिनकी पूरी आस्था इससे जुड़ी है.

अररिया के फारबिसगंज अनुमंडल में दाता शाह बाबा मलंग के मजार पर आस्था लिए हर वृहस्पतिवार को सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं. हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोग मन्नत मांगने पहुंचते हैं. क्योंकि यहां जल से निरोग होने की आस्था और विश्वास की परम्परा चली आ रही है. लोग बताते हैं कि इस मजार की जानकारी सपने में हुई थी. तब से आशा और विश्वास की सोच पर यह परम्परा शुरू हुई. उसी के बाद खंडहर को साफ कर मन्नतों का दौर शुरू हुआ. मन्नत पूरी होने पर चादरपोशी होने लगी. ये कहानी तकरीबन 18 वर्ष पुरानी है.

मलंग बाबा की मज़ार

यह है मान्यता

यहां के धनावत परिवार को स्वप्न में मजार के होने की जानकारी मिली थी. उस वक्त न तो मलंग बाबा की प्रसिद्धि थी और ना ही आस्था की बहने वाली गंगा. आज जो भी लोग मजार पर मन्नतें मांगने जाते हैं, वहां जल रही अगरबत्ती के राख को सर पर तिलक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. लोग ये भी बताते हैं कि हर मुरादें यहां पूरी होती हैं. इस मजार के एक तरफ कुरान और दूसरी तरफ रामायण एकता का प्रतीक है. साथ ही अभी के हालात में जो बदलाव आया है उसके सुधार के लिए भी दुआ करते हैं.

हिंदू परिवार कर रहा देखभाल

हर साल 16 फरवरी को यहां उर्स मेला लगता है. कव्वाल बाहर से आते हैं. पूरी रात कव्वाली होती रहती है. भक्त झूमते रहते हैं. लोगों को 56 भोग का प्रसाद चढ़ावा और प्रसाद ग्रहण के लिए पूरे साल का इंतजार करना पड़ता है. मजार के अंदर जाने से पहले मर्द हो या महिला दोनों के का सिर ढ़का होना चाहिए. साथ ही चमड़े की कोई भी चीज अंदर नहीं ले जा सकते हैं. इस मजार की देखभाल धनावत परिवार के मनोज अग्रवाल और भाई विनोद अग्रवाल करते हैं. यहां पड़ोस के मुल्क नेपाल और देश के अन्य राज्यों बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं.

अररियाः जिले के फारबिसगंज में मलंग बाबा की मजार पर आस्था की गंगा बहती है. यहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग हर वृहस्पतिवार को आते हैं. बाबा के मजार पर मन्नत मांगने और यहां के जल से निरोग होने की आस्था के बीच श्रद्धालुओं की धूम मचती है. मन्नत पूरी होने पर भक्त दाता शाह मलंग की मजार पर चादरपोशी करते हैं. खास बात यह है कि इस मजार की देखरेख करने वाले हिंदू समुदाय के ही लोग हैं. जिनकी पूरी आस्था इससे जुड़ी है.

अररिया के फारबिसगंज अनुमंडल में दाता शाह बाबा मलंग के मजार पर आस्था लिए हर वृहस्पतिवार को सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं. हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोग मन्नत मांगने पहुंचते हैं. क्योंकि यहां जल से निरोग होने की आस्था और विश्वास की परम्परा चली आ रही है. लोग बताते हैं कि इस मजार की जानकारी सपने में हुई थी. तब से आशा और विश्वास की सोच पर यह परम्परा शुरू हुई. उसी के बाद खंडहर को साफ कर मन्नतों का दौर शुरू हुआ. मन्नत पूरी होने पर चादरपोशी होने लगी. ये कहानी तकरीबन 18 वर्ष पुरानी है.

मलंग बाबा की मज़ार

यह है मान्यता

यहां के धनावत परिवार को स्वप्न में मजार के होने की जानकारी मिली थी. उस वक्त न तो मलंग बाबा की प्रसिद्धि थी और ना ही आस्था की बहने वाली गंगा. आज जो भी लोग मजार पर मन्नतें मांगने जाते हैं, वहां जल रही अगरबत्ती के राख को सर पर तिलक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. लोग ये भी बताते हैं कि हर मुरादें यहां पूरी होती हैं. इस मजार के एक तरफ कुरान और दूसरी तरफ रामायण एकता का प्रतीक है. साथ ही अभी के हालात में जो बदलाव आया है उसके सुधार के लिए भी दुआ करते हैं.

हिंदू परिवार कर रहा देखभाल

हर साल 16 फरवरी को यहां उर्स मेला लगता है. कव्वाल बाहर से आते हैं. पूरी रात कव्वाली होती रहती है. भक्त झूमते रहते हैं. लोगों को 56 भोग का प्रसाद चढ़ावा और प्रसाद ग्रहण के लिए पूरे साल का इंतजार करना पड़ता है. मजार के अंदर जाने से पहले मर्द हो या महिला दोनों के का सिर ढ़का होना चाहिए. साथ ही चमड़े की कोई भी चीज अंदर नहीं ले जा सकते हैं. इस मजार की देखभाल धनावत परिवार के मनोज अग्रवाल और भाई विनोद अग्रवाल करते हैं. यहां पड़ोस के मुल्क नेपाल और देश के अन्य राज्यों बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं.

Intro:मलंग बाबा की मज़ार पर बहती है आस्था की गंगा, दोनों समुदायों के लोग हर विरहस्पतिवार को आते हैं बाबा के मज़ार पर मन्नत मांगने, जल से निरोग होने की आस्था के बीच मचती है श्रद्धालुओं की धूम, मन्नत पूरी होने पर भक्त दाता शाह मलंग की मज़ार पर करते हैं चादरपोशी, पड़ोस के मुल्क़ नेपाल एवं देश के अन्य राज्यों जैसे बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से माथा टेकने आते हैं श्रद्धालु।


Body:अररिया के फॉरबिसगंज अनुमंडल में दाता शाह बाबा मलंग के मज़ार पर बहती है दोनों समुदायों के लोगों की आस्था, हर विरहस्पतिवार को सैकड़ों की संख्या में दोनों धर्म के लोग मन्नत मांगने पहुंचते हैं बाबा के दरबार, मन्नत पूरी होने पर करते हैं चादर पोशी। क्योंकि यहां जल से निरोग होने की आस्था एवं विश्वास की परम्परा चलती आई है। लोग बताते हैं कि स्वप्न में आए आशा और विश्वास के सोच पर स्थापित हुए। उसी के बाद से खंडहर को साफ़ कर मन्नतों का दौर शुरू हुआ एवं मन्नत पूरी होने पर चादर पोशी होने लगी। ये वाक़्या तक़रीबन 18 वर्ष पूर्व जब धनावत परिवार को स्वप्न में मज़ार के होने की जानकारी मिली थी तो उस वक़्त न ही किसी को मलंग बाबा की प्रसिद्ध और ना ही आस्था का बहने वाले गंगा की। आज जो भी लोग मज़ार पर मन्नतें मांगने जाते हैं वहां जल रहे अगरबत्ती के राख को सर पर तिलक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। लोग ये भी बताते हैं कि हर मुरादें यहां पूरी होती है। इस मज़ार के एक तरफ़ क़ुरान को दूसरी तरफ़ रामायण को एकता का प्रतीक मानते हैं साथ ही अभी के हालात में जो बदलाव आया है उसके सुधार के लिए भी दुआ करते हैं। हर साल 16 फ़रवरी को यहां उर्स मेला लगता है कव्वाल बाहर से आते हैं पूरी रात कव्वाली होती रहती है भक्त झूमते रहते हैं। लोगों को 56 भोग का प्रसाद चढ़ावा एवं प्रसाद ग्रहण के लिए पूरे साल का इंतज़ार करना पड़ता है। मज़ार के अंदर जाने से पहले मर्द की सूरत में हो या महिला दोनों के का सर ढका होना चाहिए साथ ही चमड़े का कोई भी चीज़ अंदर नहीं ले जा सकते हैं। इस मज़ार का देखभाल धनावत परिवार के मनोज अग्रवाल और भाई विनोद अग्रवाल करते हैं।


Conclusion:विसुअल एवं बाइट
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