दरभंगा: बिहार विधानसभा चुनाव में जिले की जाले सीट सबसे अधिक चर्चा में है. महागठबंधन ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और कांग्रेस नेता मशकूर अहमद उस्मानी को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं, बीजेपी ने इस सीट पर अपने मौजूदा विधायक जीबेश कुमार पर दोबारा भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया है.
विवादों में से रहा उस्मानी का नाता
कांग्रेस नेता मशकूर अहमद उस्मानी पर एएमयू में पढ़ने के दौरान पाकिस्तान के संस्थापक मो. अली जिन्ना की तस्वीर अपने कमरे में रखने का आरोप है. इसी वजह से बीजेपी उस्मानी को जिन्नावादी कह रही है. मशकूर के जाले से मैदान में उतरने के बाद ये सीट अचानक से पूरे बिहार ही नहीं बल्कि देश भर में चर्चा में आ गई है.
जाले में स्वास्थ्य व्यवस्था जर्जर-उस्मानी
कांग्रेस प्रत्याशी उस्मानी ने कहा कि जाले की पीएचसी और सीएचसी में न तो डॉक्टर हैं और न दवा. उन्होंने कहा कि यहां के युवा रोजगार के लिए बड़ी संख्या में पलायन करते हैं. यहां बाढ़ हर साल भयावह रूप दिखा कर जाती है. उस्मानी ने कहा कि वे इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए काम करेंगे. जाले में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बाढ़ की समस्या के स्थायी समाधान के लिए काम करेंगे. जाले के 38 फीसदी लोग आज भी साक्षर नहीं हैं.
'कांग्रेस प्रत्याशी मशकूर अहमद उस्मानी खुद पर लगे जिन्नावादी होने के आरोप को सिरे से खारिज करते हैं. उनका कहना है कि ये सांप्रदायिक ताकतों की चाल है और 7 नवंबर के चुनाव में ये साबित हो जाएगा' - मशकूर अहमद उस्मानी, कांग्रेस प्रत्याशी, जाले विधानसभा
बीजेपी प्रत्याशी ने आरोपों को किया खारिज
बीजेपी प्रत्याशी जीबेश कुमार ने जाले के शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछड़ेपन के उस्मानी के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि जाले में दरभंगा जिले का पहला रेफरल अस्पताल बना है. यहां डॉक्टर और दवाएं भी हैं. उन्होंने कहा कि आरजेडी के शासन काल में जाले के अस्पताल में 600 के करीब मरीज हर महीने आते थे जो अब 10 हजार की संख्या में पहुंचते हैं. उन्होंने कहा कि जाले के लोग शिक्षित और समझदार भी हैं.
'यहां के मतदाता 7 नवंबर को दिखा देंगे कि जाले में जिन्नावादी सोच चलती है कि गांधीवादी. उस्मानी उनके निकटतम प्रत्याशी तो क्या दूर-दूर तक नहीं टिकेंगे'-जीबेश कुमार, बीजेपी प्रत्याशी, जाले विधानसभा
जाले विधानसभा सीट पर महामुकाबला
जाले विधानसभा सीट बिहार की ऐसी सीट रही है जहां से तकरीबन हर पहचान वाली पार्टी ने जीत दर्ज की है. जाले में जातीय समीकरण चाहे जो भी रहे हों लेकिन यहां का परिणाम जातीय समीकरण से प्रभावित नहीं होता है. यही कारण है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इस बार इस सीट पर एक दूसरे को कड़ी टक्कर देती दिख रही हैं. ऐसे में जीत का सेहरा किसके सिर सजेगा ये 10 नवंबर को ही पता चल सकेगा.