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उज्ज्वला के नाम पर 'धुएं से आजादी' का नारा... लेकिन महंगे सिलेंडर के चलते फिर 'सुलगने' लगे चूल्हे - clean fuel

केंद्र सरकार (Central Government) ने उज्ज्वला योजना के तहत महिलाओं को फ्री गैस सिलेंडर दिए गए थे. लेकिन, एक रिपोर्ट के मुताबिक बहुत तेजी से बायोमास की सहायता से खाना बनाने वालों की संख्या बढ़ रही है. जिसकी वजह से ना सिर्फ वायु प्रदूषण फैल रहा है, बल्कि उज्जवला योजना भी सवालों के घेरे में है. पढ़ें रिपोर्ट...

पटना
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Published : Sep 30, 2021, 9:41 PM IST

पटना: केंद्र सरकार (Central Government) की उज्जवला रसोई योजना (Ujjwala Yojana) सवालों के घेरे में है. पहले भी इसे लेकर सवाल उठते रहे हैं, हालांकि सरकार ये दावा करती है कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को उनके स्वास्थ्य और शुद्ध हवा के लिए रसोई गैस उज्जवला योजना के तहत बड़ी संख्या में बांटे गए हैं.

ये भी पढ़ें- बिहार में गैस की 'आंच' पड़ी धीमी, कीमत HIGH, सब्सिडी दहाई

एक रिपोर्ट के मुताबिक बहुत तेजी से रसोई गैस के बजाय बायोमास की सहायता से खाना बनाने वालों की संख्या बढ़ रही है. सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही नहीं, बल्कि शहरी इलाकों में भी छोटे दुकानदारों ने रसोई गैस की जगह कोयले, लकड़ी और उपले का प्रयोग शुरू कर दिया है. जिसकी वजह से ना सिर्फ वायु प्रदूषण फैल रहा है, बल्कि उज्जवला योजना भी सवालों के घेरे में आ गई है.

देखें रिपोर्ट

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Bihar State Pollution Control Board) वायु प्रदूषण कम करने के लिए विभिन्न एजेंसियों की मदद से काम कर रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉक्टर अशोक कुमार घोष ने बताया कि हमारे सर्वे में यह बड़ी जानकारी मालूम हुई है कि जो पटना में वायु प्रदूषण है, उसकी वजह सिर्फ पटना की शहरी जलवायु नहीं है, बल्कि बाहर से आने वाली हवा भी वायु प्रदूषित कर रही है.

ये भी पढ़ें- उज्जवला 2.0 : गैस सिलेंडर सस्ते नहीं हुए तो रसोई में उठता रहेगा लकड़ी का धुआं

''वायु प्रदूषण में एक बड़ा योगदान आसपास के ग्रामीण इलाकों का है, जहां बायोमास बर्निंग ज्यादा मात्रा में हो रही है. जिसकी वजह से हवा प्रदूषित हो रही है. यह उज्जवला योजना लागू करने के बाद की स्थिति है. जब लकड़ी, कोयला और उपले के उपयोग की वजह से हवा प्रदूषित हो रही है.''- डॉक्टर अशोक कुमार घोष, अध्यक्ष, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इस सर्वे की पुष्टि इंडियन रेजिडेंशियल एनर्जी सर्वे की रिपोर्ट से भी होती है. इसी महीने जारी द इंडियन रेजिडेंशियल एनर्जी सर्वे 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 29% लोगों का खाना अभी भी परंपरागत तरीके से पक रहा है. यानी वो लकड़ी, कोयला या उपले का प्रयोग करके खाना बना रहे हैं. इसमें बड़ी वजह गैस की कीमत है, जिसकी वजह से मुफ्त में कनेक्शन मिलने के बावजूद लोगों ने रसोई गैस छोड़कर लकड़ी और कोयले पर खाना बनाना शुरू कर दिया.

ये भी पढ़ें- बिहार में रसोई गैस की कीमत 900 के पार, गैस पर सब्सिडी लगभग खत्म

यह स्थिति सिर्फ ग्रामीण इलाकों की नहीं है, बल्कि शहरी इलाकों में भी गरीब और विशेष रूप से ठेले और फुटपाथ दुकानदार कोयला, लकड़ी और गोइठा का ही प्रयोग कर रहे हैं. सर्वे में शामिल 93% लोगों का कहना है कि गैस की कीमतें ज्यादा होने की वजह से वे पारंपरिक तरीके से खाना बनाना पसंद कर रहे हैं, जबकि 39% लोग ऐसे भी हैं, जो उपले या अन्य बायोमास मुफ्त मिलने की वजह से गैस पर खर्च करने से बचते हैं.

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बिहार में करीब 71% लोगों के पास गैस कनेक्शन हैं, लेकिन इसमें से 49% लोग ही इसका नियमित उपयोग कर रहे हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह उज्जवला योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में बांटे गए सिलेंडर प्राप्त करने वाले लोगों का इसका उपयोग नहीं करना है, क्योंकि वहां गरीब लोगों में गैस के नियमित खरीदारी की क्षमता नहीं है. गैस के दाम बढ़ने की वजह से इन इलाकों में कई जगहों पर मौजूद गरीबों ने अपने सिलेंडर बेच दिए और फिर से लकड़ी कोयला और अन्य तरीके से भोजन पका रहे हैं.

ये भी पढ़ें- सिलेंडर ले लो! पटना में लाइन लगाकर उज्ज्वला योजना का सिलेंडर बेचने बैठ गईं महिलाएं

यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भोजन बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन की कमी की वजह से लोग सस्ते ईंधन का प्रयोग करते हैं. जिससे महिलाओं और बच्चों की सेहत को गंभीर रूप से नुकसान होता है. रिपोर्ट के मुताबिक हर साल लाखों लोग फेफड़ों के दीर्घकालिक अवरोध पैदा करने वाली बीमारियों और फेफड़े के कैंसर की वजह से जान गंवा देते हैं. इन बीमारियों की सबसे बड़ी वजह घर के भीतर होने वाला वायु प्रदूषण है, जिसमें बड़ी भूमिका कोयला, लकड़ी और उपले जैसे ठोस ईंधन से खाना बनाना निभाता है.

''सरकार चाहे लाख दावे करें, लेकिन हकीकत यही है कि रसोई गैस की कीमत लगातार बढ़ रही है. रसोई गैस सिलेंडर की कीमत एक हजार के करीब हो चुकी है और यही वजह है कि गरीब तबके के लोग गैस सिलेंडर से दूरी बना रहे हैं. इस साल फरवरी महीने से अब तक रसोई गैस की कीमतों में प्रति सिलेंडर करीब 100 रुपए से ज्यादा का इजाफा हो चुका है. फरवरी में रसोई गैस की कीमत में दो बार बढ़ोतरी हुई थी. वहीं, व्यवसायिक गैस सिलेंडर की कीमत पिछले 5 महीने में 115 रुपए तक बढ़ चुकी है.''-रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

ये भी पढ़ें- 'विशेष दर्जे' की मांग पर JDU का यू-टर्न, RJD ने कहा-'पलटी मारना CM नीतीश की पुरानी आदत'

इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि केंद्र सरकार ने उज्ज्वला योजना नाम से एक काफी बेहतरीन काम शुरू किया था, लेकिन हाल के वर्षों में सब्सिडी कम करने और रसोई गैस के दाम में लगातार वृद्धि ने इस योजना से गरीबों को दूर कर दिया है. अब स्थिति यह है कि जिस तरह दिल्ली में आसपास के इलाकों में पराली जलाने की वजह से प्रदूषण फैलता है, उसी तरह पटना में ग्रामीण इलाकों में लकड़ी और कोयले के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है.

पटना: केंद्र सरकार (Central Government) की उज्जवला रसोई योजना (Ujjwala Yojana) सवालों के घेरे में है. पहले भी इसे लेकर सवाल उठते रहे हैं, हालांकि सरकार ये दावा करती है कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को उनके स्वास्थ्य और शुद्ध हवा के लिए रसोई गैस उज्जवला योजना के तहत बड़ी संख्या में बांटे गए हैं.

ये भी पढ़ें- बिहार में गैस की 'आंच' पड़ी धीमी, कीमत HIGH, सब्सिडी दहाई

एक रिपोर्ट के मुताबिक बहुत तेजी से रसोई गैस के बजाय बायोमास की सहायता से खाना बनाने वालों की संख्या बढ़ रही है. सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही नहीं, बल्कि शहरी इलाकों में भी छोटे दुकानदारों ने रसोई गैस की जगह कोयले, लकड़ी और उपले का प्रयोग शुरू कर दिया है. जिसकी वजह से ना सिर्फ वायु प्रदूषण फैल रहा है, बल्कि उज्जवला योजना भी सवालों के घेरे में आ गई है.

देखें रिपोर्ट

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Bihar State Pollution Control Board) वायु प्रदूषण कम करने के लिए विभिन्न एजेंसियों की मदद से काम कर रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉक्टर अशोक कुमार घोष ने बताया कि हमारे सर्वे में यह बड़ी जानकारी मालूम हुई है कि जो पटना में वायु प्रदूषण है, उसकी वजह सिर्फ पटना की शहरी जलवायु नहीं है, बल्कि बाहर से आने वाली हवा भी वायु प्रदूषित कर रही है.

ये भी पढ़ें- उज्जवला 2.0 : गैस सिलेंडर सस्ते नहीं हुए तो रसोई में उठता रहेगा लकड़ी का धुआं

''वायु प्रदूषण में एक बड़ा योगदान आसपास के ग्रामीण इलाकों का है, जहां बायोमास बर्निंग ज्यादा मात्रा में हो रही है. जिसकी वजह से हवा प्रदूषित हो रही है. यह उज्जवला योजना लागू करने के बाद की स्थिति है. जब लकड़ी, कोयला और उपले के उपयोग की वजह से हवा प्रदूषित हो रही है.''- डॉक्टर अशोक कुमार घोष, अध्यक्ष, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इस सर्वे की पुष्टि इंडियन रेजिडेंशियल एनर्जी सर्वे की रिपोर्ट से भी होती है. इसी महीने जारी द इंडियन रेजिडेंशियल एनर्जी सर्वे 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 29% लोगों का खाना अभी भी परंपरागत तरीके से पक रहा है. यानी वो लकड़ी, कोयला या उपले का प्रयोग करके खाना बना रहे हैं. इसमें बड़ी वजह गैस की कीमत है, जिसकी वजह से मुफ्त में कनेक्शन मिलने के बावजूद लोगों ने रसोई गैस छोड़कर लकड़ी और कोयले पर खाना बनाना शुरू कर दिया.

ये भी पढ़ें- बिहार में रसोई गैस की कीमत 900 के पार, गैस पर सब्सिडी लगभग खत्म

यह स्थिति सिर्फ ग्रामीण इलाकों की नहीं है, बल्कि शहरी इलाकों में भी गरीब और विशेष रूप से ठेले और फुटपाथ दुकानदार कोयला, लकड़ी और गोइठा का ही प्रयोग कर रहे हैं. सर्वे में शामिल 93% लोगों का कहना है कि गैस की कीमतें ज्यादा होने की वजह से वे पारंपरिक तरीके से खाना बनाना पसंद कर रहे हैं, जबकि 39% लोग ऐसे भी हैं, जो उपले या अन्य बायोमास मुफ्त मिलने की वजह से गैस पर खर्च करने से बचते हैं.

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बिहार में करीब 71% लोगों के पास गैस कनेक्शन हैं, लेकिन इसमें से 49% लोग ही इसका नियमित उपयोग कर रहे हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह उज्जवला योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में बांटे गए सिलेंडर प्राप्त करने वाले लोगों का इसका उपयोग नहीं करना है, क्योंकि वहां गरीब लोगों में गैस के नियमित खरीदारी की क्षमता नहीं है. गैस के दाम बढ़ने की वजह से इन इलाकों में कई जगहों पर मौजूद गरीबों ने अपने सिलेंडर बेच दिए और फिर से लकड़ी कोयला और अन्य तरीके से भोजन पका रहे हैं.

ये भी पढ़ें- सिलेंडर ले लो! पटना में लाइन लगाकर उज्ज्वला योजना का सिलेंडर बेचने बैठ गईं महिलाएं

यूनाइटेड नेशंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भोजन बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन की कमी की वजह से लोग सस्ते ईंधन का प्रयोग करते हैं. जिससे महिलाओं और बच्चों की सेहत को गंभीर रूप से नुकसान होता है. रिपोर्ट के मुताबिक हर साल लाखों लोग फेफड़ों के दीर्घकालिक अवरोध पैदा करने वाली बीमारियों और फेफड़े के कैंसर की वजह से जान गंवा देते हैं. इन बीमारियों की सबसे बड़ी वजह घर के भीतर होने वाला वायु प्रदूषण है, जिसमें बड़ी भूमिका कोयला, लकड़ी और उपले जैसे ठोस ईंधन से खाना बनाना निभाता है.

''सरकार चाहे लाख दावे करें, लेकिन हकीकत यही है कि रसोई गैस की कीमत लगातार बढ़ रही है. रसोई गैस सिलेंडर की कीमत एक हजार के करीब हो चुकी है और यही वजह है कि गरीब तबके के लोग गैस सिलेंडर से दूरी बना रहे हैं. इस साल फरवरी महीने से अब तक रसोई गैस की कीमतों में प्रति सिलेंडर करीब 100 रुपए से ज्यादा का इजाफा हो चुका है. फरवरी में रसोई गैस की कीमत में दो बार बढ़ोतरी हुई थी. वहीं, व्यवसायिक गैस सिलेंडर की कीमत पिछले 5 महीने में 115 रुपए तक बढ़ चुकी है.''-रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

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इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि केंद्र सरकार ने उज्ज्वला योजना नाम से एक काफी बेहतरीन काम शुरू किया था, लेकिन हाल के वर्षों में सब्सिडी कम करने और रसोई गैस के दाम में लगातार वृद्धि ने इस योजना से गरीबों को दूर कर दिया है. अब स्थिति यह है कि जिस तरह दिल्ली में आसपास के इलाकों में पराली जलाने की वजह से प्रदूषण फैलता है, उसी तरह पटना में ग्रामीण इलाकों में लकड़ी और कोयले के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है.

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