पटना: बिहार में विधानसभा की 2 सीटों के लिए उपचुनाव (By-Election) 30 अक्टूबर को होना है. इस चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की प्रतिष्ठा दांव पर है, क्योंकि यह दोनों सीटें जदयू (JDU) के कब्जे की थी. इधर, विपक्ष एक बार फिर पिछले चुनाव की तरह बेरोजगारी और शिक्षकों के मुद्दे को लेकर सरकार पर सवाल खड़े कर रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में शिक्षकों ने जमकर सरकार के खिलाफ वोटिंग की थी और जदयू को विशेष तौर पर परेशानी में डाला था. इस बार भी शिक्षकों का मुद्दा तारापुर और कुशेश्वरस्थान में जदयू पर भारी पड़ सकता है.
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2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार में बेरोजगारी और शिक्षक नियोजन के साथ कई अन्य मुद्दे विपक्ष ने उठाए थे. इस बार भी चुनाव में विपक्ष ने बेरोजगारी और शिक्षकों के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है. पिछली बार शिक्षकों ने जमकर अपनी नाराजगी सरकार के खिलाफ दिखाई थी, जिसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ा था. एक बार फिर सोशल मीडिया के जरिए और चुनाव में नीतीश की रैली में जिस तरह से शिक्षक अभ्यर्थियों ने प्रदर्शन किया उससे विपक्ष उत्साहित है. विपक्ष का दावा है कि इस बार भी बेरोजगारी और शिक्षक का मुद्दा दोनों सीटों पर जदयू के लिए भारी पड़ेगा.
''सरकार ने पिछले एक साल में किया ही क्या है. सरकार को यह बताना चाहिए कि सवा लाख शिक्षकों की नियुक्ति का क्या हुआ. वहीं, जिन शिक्षकों के वेतन वृद्धि और सेवा शर्त लागू करने की घोषणा सरकार ने की थी उसमें कितने वादे उनके पूरे हो पाए. शिक्षकों की नाराजगी और बेरोजगार युवकों की परेशानी सरकार पर इस चुनाव में भी भारी पड़ेगी.''- मृत्युंजय तिवारी, प्रदेश प्रवक्ता, राजद
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इधर, भाजपा ने राजद के इस दावे पर पलटवार किया है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि एनडीए सरकार ने ही बिहार में साढ़े तीन लाख शिक्षकों की नियुक्ति की थी. एक लाख से ज्यादा शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है.
''बिहार में बेरोजगारी दूर करने के लिए 19 लाख रोजगार देने के एजेंडे पर सरकार काम कर रही है. कहीं कोई नाराजगी नहीं है. राजद इस भुलावे में ना रहे क्योंकि शिक्षक और राज्य के युवा अच्छी तरह समझते हैं कि उनके लिए बेहतर काम सिर्फ एनडीए की सरकार ही कर सकती है.''- प्रेम रंजन पटेल, प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा
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इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार इंद्र भूषण कुमार कहते हैं कि पिछले चुनाव में शिक्षकों ने अपनी नाराजगी वोट के जरिए दिखाई थी. कई सीटों पर इसका सीधा प्रभाव देखा गया. इस बार भी जिस तरह से नीतीश कुमार की सभा में युवाओं ने टीचर की नौकरी में देरी के लिए सरकार से सवाल पूछा है और उस पर मुख्यमंत्री की नाराजगी देखने को मिली है इससे स्पष्ट है कि तारापुर और कुशेश्वरस्थान में भी शिक्षकों का वोट जदयू पर भारी पड़ सकता है.
''मामला सिर्फ सवा लाख शिक्षकों की नियुक्ति का ही नहीं है. सवाल तो यह भी है कि जो शिक्षक कई सालों से काम कर रहे हैं उनकी सेवा शर्त लागू क्यों नहीं हुई. उन्हें ट्रांसफर का लाभ क्यों नहीं दिया गया और 15% वेतन वृद्धि की घोषणा नीतीश कुमार ने पिछले चुनाव से पहले की थी उसका क्या हुआ. इंद्र भूषण कुमार ने कहा कि इन दोनों जगहों पर कुछ ना कुछ शिक्षकों की नाराजगी सरकार के लिए चुनौती तो है ही.''- इंद्र भूषण कुमार, वरिष्ठ पत्रकार