पटना: बीजेपी के पूर्व सांसद आरके सिन्हा (RK Sinha) ने आधुनिक बिहार के निर्माता और संविधान के जनक डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा (Sachchidananda Sinha) को 'भारत रत्न' देने की मांग की है. उन्होंने सरकार पर उनकी अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा कि जिन्होंने अपनी जिंदगी की पूरी कमाई सरकार को दे दी, उनको मरणोपरांत भी देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान नहीं दिया गया.
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डॉ सच्चिदानंद सिन्हा की 150वीं जयंती के मौके पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पूर्व सांसद आरके सिन्हा ने कहा कि उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जाना चाहिए. साथ ही साथ बच्चों के सिलेबस में भी सच्चिदानंद सिन्हा की जीवनी को शामिल करना चाहिए. नई पीढ़ी को पता होना चाहिए कि उन्होंने देश के लिए कितना अहम योगदान दिया था.
आरके सिन्हा ने कहा कि सच्चिदानंद सिन्हा अपने देश के सबसे बड़े और सफल वकील रहे हैं. उन्होंने अपनी आमदनी का ज्यादातर हिस्सा लोक कल्याणकारी और आजादी के आंदोलन में खर्च कर दिया. बिहार विधानसभा भवन और बिहार विधान परिषद का भवन भी उनकी ओर से दान में दी गई जमीन पर स्थित है. हाल में इन दोनों भवनों की शताब्दी समारोह भी मनाए गए. उसी जगह पर कभी डॉक्टर सिन्हा का कृषि फार्म हुआ करता था. वहीं, आज जहां बिहार विद्यालय परीक्षा समिति है, वह विशाल भव्य भवन उनका आवास हुआ करता था.
बीजेपी नेता ने कहा कि सच्चिदानंद सिन्हा ने अपनी जिंदगी की सारी कमाई सरकार को दे दिया, लेकिन मरणोपरांत भी सरकार की मंशा साफ नहीं है. यही वजह है कि उनको अबतक भारत रत्न नहीं मिल पा रहा है. इससे सरकार की मंशा भी साफ पता चलती है.
आरके सिन्हा ने कहा कि राज्यसभा सांसद रहने के दौरान उन्होंने इस को लेकर के कई बार प्रधानमंत्री और गृह विभाग से मांग की थी, उस समय आश्वासन तो मिला लेकिन आज तक सच्चिदानंद सिन्हा को भारत रत्न नहीं मिल पाया. उन्होंने कहा कि भारत रत्न मिलने के लिए राज्य सरकार अनुशंसा करती है, ऐसे में उन्होंने एक बार फिर से डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को भारत रत्न से नवाजे के लिए मांग उठा रहे हैं.
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डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा बक्सर के मूल निवासी थे. उनका जन्म डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत चौंगाई प्रखंड के मुरार गांव में 10 नवंबर 1871 को प्रसिद्ध कायस्थ कुल में हुआ था. उनके पिता बख्शी शिव प्रसाद सिन्हा डुमरांव महाराज के मुख्य तहसीलदार थे. प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा गांव के ही विद्यालय में हुई. महज अठारह वर्ष की उम्र में 26 दिसंबर 1889 को उन्होंने उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैंड प्रस्थान किया. वहां से तीन साल तक पढ़ाई कर सन् 1893 ई. में स्वदेश लौटे. इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में दस वर्ष तक बैरिस्टरी की प्रैक्टिस की. उन्होंने इंडियन पीपुल्स एवं हिंदुस्तान रिव्यू नामक समाचार पत्रों का कई वर्षों तक संपादन किया. बाद में बंगाल से पृथक बिहार के निर्माण में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. वे सन् 1921 ई. में बिहार के अर्थ सचिव व कानून मंत्री का पद सुशोभित किए. पटना विश्वविद्यालय में उप कुलपति के पद पर रहते हुए उन्होंने सूबे में शिक्षा को नया मोड़ दिया. 6 मार्च 1950 को इस महान सपूत का निधन हो गया. डॉ. सिन्हा की स्मृति में पटना में सिन्हा लाइब्रेरी स्थापित है.