पटना: 11 फरवरी बिहार की राजनीति में नया रंग घोलेगा. कभी सीएम नीतीश कुमार के लिए रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर अपनी नई राजनीतिक डगर का एलान करेंगे. दरअसल जेडीयू से निकाले जाने के बाद प्रशांत किशोर ने अपने नए एलान के लिए 11 फरवरी की तारीख घोषित की है. मामला बिल्कुल साफ है कि प्रशांत किशोर दिल्ली विधान सभा चुनाव परिणाम के बाद इस बात का एलान करेंगे की उनकी आगे की सियासी तकनीक की रणनीति क्या होगी.
प्रशांत किशोर दलों के लिए बनें मुद्दा तो जेडीयू की मुसीबत
बिहार की राजनीति में जेडीयू वाले प्रशांत किशोर दलों के लिए मुद्दा बन गए हैं, और खुद जेडीयू के गले की हड्डी. प्रशांत किशोर बिहार में जेडीयू के लिए राजनीति करने के बजाय दिल्ली में आप की रणनीति में बनाने में जुटे तो गठबंधन की सियासत में बड़े और कड़े सवाल उठने लगे. नीतीश के चेहरे पर बिहार में बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन चुनाव लड़ेगा इसका ऐलान हो गया. ऐसे में हर कार्यकर्ता के दावे जिसमें जेडीयू के लिए समर्पित होकर काम करने का दावा किया गया उसपर चर्चा शुरू हो गयी.
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प्रशांत किशोर के काम को लेकर जेडीयू हुई असहज
विपक्षी दलों की बात तो छोड़ ही दें, खुद जेडीयू भी प्रशांत किशोर के काम को लेकर असहज हो गयी. नीतीश वाली जेडीयू में प्रशांत किशोर पार्टी में उपाध्यक्ष बनाए गए थे. कभी चर्चा भी होने लगी थी कि पीके पार्टी में नंबर 2 की कुर्सी है और नीतीश बिना उनसे पूछे कुछ नहीं करते. कहा जा रहा है कि जेडीयू पर प्रशांत किशोर इतने प्रभावकारी बन गए थे कि कई ऐसे निर्णय भी वे लेते थे जो नीतीश कुमार से बिना पूछे ही मान लिया जाता था. हालांकि पार्टी के लिए प्रशांत किशोर की रणनीति काम नहीं आ रही थी और इसपर लगतार सवाल भी उठ रहे थे. इससे सीएम नीतीश कुमार पर पार्टी के दूसरे नेताओं का दबाव बढ़ता जा रहा था.
प्रशांत किशोर की रणनीति हुई फेल
सीएए और 370 के मुद्दे पर प्रशांत किशोर ने पार्टी लाइन से अलग बयान दिया. लगातार वे इस बात को कहते रहे कि नीतीश कुमार अपने एजेंडे के मूल लाइन से हट गए है. हालांकि जेडीयू की ओर से बीजेपी के इन मुद्दों पर कोई बयान नहीं देने का एलान किया था, लेकिन उसके बाद भी प्रशांत किशोर लगतार बयान देते रहे. पीके के बयान को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि विपक्ष की बात दूर सत्ता के शामिल दलों के नेता भी प्रशांत किशोर के बयान को लेकर विरोध जताने लगे.
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झारखंड में नहीं काम आई रणनीति
प्रशांत किशोर जदयू में आए तो नीतीश को इस बात की उम्मीद थी की वे पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर ऊपर ले जाऐंगे. तकनीक की रणनीति के खिलाड़ी पीके जदयू में हर राज्य में जान डालेंगे. लेकिन, बिहार से आगे पार्टी कुछ कर ही नहीं पायी. बिहार में नीतीश के काम और छवि को लेकर पार्टी जरूर आगे बढ़ी लेकिन जहां जहां पार्टी को आगे ले जाने की जिम्मेदारी जेडीयू नेताओं को थी वहां पार्टी कुछ नहीं कर पायी.
सवालों के दायरे में पीके की भूमिका
झारखंड विधान सभा चुनाव में बीजेपी से विवाद और मतभेद के बीच जेडीयू यह कर चुनाव में उतरी की उसका बीजेपी से समझौता सिर्फ बिहार के लिए है. पार्टी को इस बात की उम्मीद थी की प्रशांत किशोर पार्टी को नई ऊंचाई देंगे, लेकिन पीके ने झारखंड चुनाव से ही मुंह मोड़ लिया और जेडीयू के बजाय दिल्ली के दल को पूरा समय दे दिया. पार्टी के नेताओं को इस बात का मलाल भी रहा कि अगर हालात इसी तरह से रहे तो पार्टी पूरे देश में कैसे काम कर पाएगी. ऐसे में पीके की भूमिका भी सवालों के दायरे में आ गयी.
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11 फरवरी को दिल्ली का परिणाम
प्रशांत किशोर 11 फरवरी को अपने नए प्लान का एलान करेंगे. राजनीति के समझदार इस बात का मतलब मानते हैं कि सरकार से साथ जुड़ कर तकनीकी रणनीति की हवाला देकर चुनाव में हवा बनाने का जो काम पीके करते रहे अब उसके दिन लद गए. दूसरे दलों के नेताओं का साफ आरोप है कि जेडीयू पीके की पार्टी थी फिर झारखंड में हर तिकड़म बाजी फेल केसे हो गयी. जेडीयू को यह पूरी तरह समझ आ गया कि पीके समय की तिकड़म बाजी के माहिर है. यही वजह है कि पीके ने पार्टी से पलटी मार ली.
11 फरवरी को पीके करेंगे अगले प्लान का एलान
कहा ये भी जा रहा है कि 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम आने है ऐसे में 11 को ही पीके के अपने नए प्लान का एलान करने का मकसद यही है कि वे दिल्ली की जीत को अपनी झोली में डालने की फिराक में है. हालांकि अगर केजरीवाल की पार्टी दिल्ली जीत जाती है तो इसे केजरीवाल का काम कहा जाएगा, पीके के राजनीत की तिकड़म नहीं. अब देखना यही है कि 11 फरवरी को पीके किसके साथ जाने का फैसला लेते हैं और उनकी कंपनी का करार किस राजनीति के समझौते पर होता है.