पटना: पटना हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के विभागीय कार्रवाई के संचालन में सरकार के गैर जिम्मेदाराना रवैए पर नाराजगी जाहिर करते हुए राज्य के स्वास्थ्य विभाग पर 25 हजार रुपए बतौर हर्जाना लगाया है. जस्टिस पी बी बजन्थरी (Justice P B Bajanthary) ने डा. अरुण कुमार तिवारी की रिट याचिका को मंजूर करते हुए स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिया कि इस हर्जाने की राशि एक महीने में बिहार विधिक सेवा प्राधिकार में जमा करें. हाईकोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि जुलाई, 2002 में जिस विभागीय कार्रवाई को शुरु किया, उसमें आरोपी कर्मी को विभागीय आरोप पत्र (चार्ज मेमो) एवं विभागीय साक्ष्य की सूची तक नहीं सौंपी गई थी.
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हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग पर लगाया हर्जाना: हाईकोर्ट आदेश के आलोक में जो कार्रवाई शुरू हुई उसमें भी याचिकाकर्ता को आरोप पत्र और साक्ष्यों की सूची से वंचित रखा गया था. साथ ही अनुशासनात्मक अधिकारी ने विभागीय जांच रिपोर्ट तक याचिकाकर्ता को नहीं दिया था ताकि वो अपना बचाव प्रस्तुत कर सके. हाईकोर्ट के आदेश होने के बाद भी अपीलीय प्राधिकार ने कोई निर्णय नहीं लिया तब याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में अवमानना का मामला दायर किया. अवमानना के डर से अपीलीय प्राधिकार ने आनन-फानन में अपील को 2018 में खारिज कर दिया.
याचिकाकर्ता को बकाया वेतन देने का निर्देश: तब याचिकाकर्ता को चौथी बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के पिछले आदेश में सरकार से जिन जरूरी तथ्यों के बारे में पूछा, उसका कोई सटीक जवाब नहीं मिला. तब स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव तलब हुए. आज स्वास्थ्य विभाग के प्रभारी प्रधान सचिव कोर्ट में हाजिर हुए. हाई कोर्ट ने लंबे आदेश में उपरोक्त तथ्यों को उजागर करते हुए सरकार की गैर जिम्मेदाराना हरकत पर ही 25 हजार का हर्जाना लगाया. साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी को निरस्त करते हुए उसके वेतन, भत्ते बकाए सहित सभी सेवा लाभ देने का भी निर्देश दिया है.
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