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मिसाल: जन्मभूमि से दूर बिहार में इस महिला ने गरीबों को किया अपना जीवन समर्पित - LLB

पद्म श्री सुधा वर्गीज देश दुनिया की बड़ी शख्सियतों में शुमार हो चुकी हैं. पिछले 35 वर्षों से बिहार के गरीब समुदाय के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं. बच्चे इन्हें प्यार से साइकिल दीदी कहते है.

सुधा वर्गिज, समाजसेविका
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Published : Feb 27, 2019, 2:10 PM IST

Updated : Feb 27, 2019, 2:38 PM IST

पटना: केरल की मूल निवासी सुधा वर्गिज पिछले पैंतीस सालों से बिहार में रह कर झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों, लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं.

शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए पद्मश्री से हुईं सम्मानित
भारत सरकार ने इन इलाकों में शिक्षा के लिए उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा है. वहीं बिहार सरकार ने भी इन्हें मौलाना अब्दुल कलाम अवार्ड से सम्मानित किया. आज सुधा वर्गिज महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन गई हैं, जिन्हें लोग प्यार से साइकिल दीदी भी बुलाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने साइकिल चला कर ही गांव कि पंगडंडियो का सफर तय किया, और गरीबों, झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाली महिलाओं को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने में जुटी हैं.

कई एनजीओ का किया गठन
स्नातक और एलएलबी डिग्री धारी सुधा वर्गीज ने 1980 के दशक में नारी गुंजन एनजीओ का गठन किया. राज्य के 5 जिलों में सक्रिय एनजीओ ने वर्ष 2005 में दानापुर में एक प्रेरणा नाम से विद्यालय की स्थापना की जिसमें लड़कियों के लिएछात्रावास की सुविधा है.बाद में इस विद्यालय श्रृंखला में कई और संस्थानों की स्थापना की गई. वर्तमान में 3000 से अधिक छात्राएं यहां पढ़ाई कर रही हैं.

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सुधा वर्गिज, समाजसेविका

पद्मश्री सुधा वर्गीज किसी परिचय की मोहताज नहीं
आज पद्मश्री सुधा वर्गीज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों के लिए समर्पित कर दिया. महानायक अमिताभ बच्चन कई हस्तियों ने इन्हे सम्मानित किया है. मुसहर समुदाय की कठिनाइयों को देखते हुए उन्होंने तय किया कि उनको न सिर्फ शिक्षा देगी बल्कि उनके उत्थान के लिए भी काम करेंगी. इसके बाद शुरू हुआ कारवां जो लगातार चल रहा है. मौजूदा समय में राज्य में लगभग 900 स्वयं सहायता समूह उनकी प्रेरणा पर काम कर रहे हैं.

पटना: केरल की मूल निवासी सुधा वर्गिज पिछले पैंतीस सालों से बिहार में रह कर झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों, लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं.

शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए पद्मश्री से हुईं सम्मानित
भारत सरकार ने इन इलाकों में शिक्षा के लिए उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा है. वहीं बिहार सरकार ने भी इन्हें मौलाना अब्दुल कलाम अवार्ड से सम्मानित किया. आज सुधा वर्गिज महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन गई हैं, जिन्हें लोग प्यार से साइकिल दीदी भी बुलाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने साइकिल चला कर ही गांव कि पंगडंडियो का सफर तय किया, और गरीबों, झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाली महिलाओं को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने में जुटी हैं.

कई एनजीओ का किया गठन
स्नातक और एलएलबी डिग्री धारी सुधा वर्गीज ने 1980 के दशक में नारी गुंजन एनजीओ का गठन किया. राज्य के 5 जिलों में सक्रिय एनजीओ ने वर्ष 2005 में दानापुर में एक प्रेरणा नाम से विद्यालय की स्थापना की जिसमें लड़कियों के लिएछात्रावास की सुविधा है.बाद में इस विद्यालय श्रृंखला में कई और संस्थानों की स्थापना की गई. वर्तमान में 3000 से अधिक छात्राएं यहां पढ़ाई कर रही हैं.

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सुधा वर्गिज, समाजसेविका

पद्मश्री सुधा वर्गीज किसी परिचय की मोहताज नहीं
आज पद्मश्री सुधा वर्गीज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों के लिए समर्पित कर दिया. महानायक अमिताभ बच्चन कई हस्तियों ने इन्हे सम्मानित किया है. मुसहर समुदाय की कठिनाइयों को देखते हुए उन्होंने तय किया कि उनको न सिर्फ शिक्षा देगी बल्कि उनके उत्थान के लिए भी काम करेंगी. इसके बाद शुरू हुआ कारवां जो लगातार चल रहा है. मौजूदा समय में राज्य में लगभग 900 स्वयं सहायता समूह उनकी प्रेरणा पर काम कर रहे हैं.

Intro:केरल की मूल निवासी सुधा वर्गिज जो पिछले पैंतीस वर्षों से बिहार में रह कर स्लम इलाकों के बच्चों, लडकियों और महिलाओं के शिक्षा पर काम कर रही है।
शिक्षा के उत्कृष्ट कार्य हेतू इन्हे पद्मश्री अवार्ड से नवाजा, वहीं बिहार सरकार ने इन्हे मौलाना अब्दुल कलाम अवार्ड से सम्मानित किया, आज महिलाओं के बिच रोल माडल बनी है सुधा वर्गिज,जिन्हे प्यार से लोग साईकिल दीदी कहते है,क्योंकि साईकिल चला कर गांव कि पंगडंडीयो का सफर तय कर स्लम बस्तियों कि उत्थान में जुटी है।

बालिवुड के महानायक अमिताभ बच्चन कई हस्तियों ने इन्हे सम्मानित किया है

वीमेंस स्पेशल पर शशि तुलस्यान कि खास रिपोर्ट:--


Body:पदम श्री सुधा वर्गीज वैसे तो देश दुनिया की बड़ी शख्सियतों में शुमार हो चुकी है, पिछले 35 वर्षों से बिहार के गरीब मुसहर समुदाय के लिए एक बड़ा प्रेरणा स्रोत बनी हुई है बच्चे इन्हें प्यार से साइकिल दीदी कहते है
सुधा वर्गीज मूलतः केरल की रहने वाली है वह शुरू से ही मुसहर समुदाय के लिए उत्थान में जुटी रहती हैं, वह कहती है कि जब वह केरल से बिहार आई थी उस वक्त तो उन्हें जातीय भेदभाव के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था, मुसहर समुदाय के हालात को उन्होंने करीब से जाना तो तय किया कि वह आजीवन उनके साथ उनके गांव में उनकी मिट्टी के घरों में रहकर उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करेगी।
मुसहर समुदाय में लोगों की मृत्यु का कारण कुपोषण था, लगभग 800 परिवार रहे हैं जिनके पास आय का कोई स्रोत नहीं, किचन गार्डन तो दूर की बात है इतनी सारी समस्याओं को लेकर वह गांव गांव की पगडंडियों में घूम कर काम करना शुरू कर दी उनके बीच जा कर उनके शिक्षा के प्रति जागरूक करने लगी उसके बाद प्रदेश सरकार की ओर से आईकान आफ बिहार एवं मलयालम मनोरमा ग्रुप की ओर से सम्मानित किया गया। एजुकेशन में स्नातक एवं एलएलबी सुधा वर्गीज ने 1980 के दशक में नारी गुंजन एनजीओ का गठन किया बिहार के 5 जिलों में सक्रिय एनजीओ ने वर्ष 2005 में दानापुर पटना में एक प्रेरणा नाम से एक विद्यालय की स्थापना की जिसमे छात्रावास की सुविधा है बाद में इस विद्यालय श्रृंखला में कई और संस्थानों ने ईसकी स्थापना की 3000 से अधिक छात्राएं इस वक्त पढ़ रही हैं इस उतकृष्ट कार्य को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पदम श्री अवार्ड से नवाजा

सुधा वर्गीज की माने तो समाज में यह विचारधारा का बदलाव जरूरी है,बिहार में जात पात,कि भरमार है,वहीं बैंड बाजे मे सिर्फ पुरुष ही शामिल थे,लेकिन उन्होंने महिलाओं का बैंड शुरू किया सुधा वर्गीज ने एक महिला बैंड का गठन किया जिसमें सिर्फ महिलाओं बैंड बाजा बजाते हुए दिखे इस एनजीओ की ओर से महिलाओं को बहुत सस्ती कीमत पर कई तरह के सेनेटरी नैपकिन की आपूर्ति की जा रही है नारी गुंजन संस्थान की ओर से सैंकडों बच्चियों को निशुल्क शिक्षा छात्रावास की सुविधा साथ ही भोजन कपड़ा भी फ्री में दिया जाता है, जिसमें आठवीं तक की पढ़ाई होती हैं पदम श्री सुधा वर्गीज की कडी साधना का नतीजा है कि आज कई क्षेत्रों में 60 से अधिक छात्रों ने कामयाबी हासिल की है, 18 को गोल्ड मेडल मिला है और 9 सिल्वर मिला है
शिक्षा दिवस के शुभ अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सुधा वर्गीज को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए मौलाना अब्दुल कलाम आजाद प्रकार से सम्मान किए हैं आज पदम श्री सुधा वर्गीज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों शहर दलित समुदाय के नाम पर समर्पित कर दिया है सुधा वर्गीज के पिता किसान थे और मां गृहिणी अपने तीन बहनों में वह सबसे बड़ी हैं वह बचपन से ही प्रभावशाली रही हैं उनकी पढ़ाई केरल में हुई मैसूर यूनिवर्सिटी से उन्होंने ग्रेजुएशन और बेंगलुरु यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की उसके बाद 1960 के दशक में अपनी कर्मस्थली बिहार पहुंच गई उस वक्त हुआ बिहार में कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा और उनका कई जिलों में पठन-पाठन चलता रहा


Conclusion:लेकिन जब वह गांव में जाने लगी तो मुसर समुदाय के बीच उनकी कठिनाइयों को देखते हुए उन्होंने तय किया कि उनको न सिर्फ शिक्षा देगी बल्कि उनके उत्थान के लिए कुछ करेगी उसके बाद शुरू हुआ कारवां और लगातार चलते रहे आज के हालात में बिहार में लगभग 900 स्वयं सहायता समूह है उनकी प्रेरणा पर काम कर रही हैं कई जिलों में नारी गुंजन संस्था चल रही है वहीं कई जिलों में गुंजन सरगम बैंड देवदासी समुदाय की महिलाओं के लिए बनाया गया है


पद्मश्री सुधा वर्गिज से खास बातचीत

Last Updated : Feb 27, 2019, 2:38 PM IST
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