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रेस में आगे होने के बाद भी कुर्सी से दूर रह सकते हैं नित्यानंद राय, इस वजह से पसोपेश में BJP का थिंक टैंक

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Published : Apr 25, 2022, 10:06 PM IST

बिहार की सियासत के केंद्र बिंदु में फिलहाल नीतीश कुमार हैं, लेकिन यह सवाल पिछले कुछ सालों से उठ रहा है कि उनके बाद एनडीए में बिहार का तारणहार कौन होगा. बीजेपी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है और पार्टी के समक्ष नेतृत्व विकसित करने की चुनौती है, नित्यानंद राय को बीजेपी में खूब वाहवाही मिल रही है, लेकिन सीएम कैंडिडेट को लेकर नित्यानंद के सामने अब भी कई मुश्किलें (Nityanand Rai still going to face Hurdles) हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय

पटना: बिहार की सियासत में बीजेपी का विजयोत्सव कार्यक्रम (BJP Vijayotsav Program) की सफलता के बाद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Union Minister Nityanand Rai) सुर्खियों में हैं. कार्यक्रम की सफलता पर नित्यानंद राय को बीजेपी में खूब वाहवाही मिल रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah) ने खुले मंच से नित्यानंद राय की तारीफ की है. सवाल यह उठ रहा है कि क्या नित्यानंद राय ने पार्टी के अंदर अपने तमाम प्रतिद्वंद्वियों को चित कर दिया है या अभी भी राह में कई मुश्किलें हैं.

ये भी पढ़ें- दावत-ए-इफ्तार के बहाने CM नीतीश की नई सियासत, NDA में भावी मुख्यमंत्री को लेकर रस्साकसी तेज

बीजेपी में बढ़ा नित्यानंद राय का कद: बिहार बीजेपी में सुशील मोदी, नंदकिशोर और प्रेम कुमार युग की समाप्ति के बाद बीजेपी में नित्यानंद राय का कद बहुत तेजी से बढ़ा है. बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव का नित्यानंद राय को भरपूर साथ और संरक्षण भी मिला है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगर केंद्र की राजनीति में जाते हैं तो ऐसी स्थिति में बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए नित्यानंद राय सशक्त दावेदार माने जा रहे हैं. हालांकि, बीजेपी के अंदर बड़े फैसले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और पार्लियामेंट्री बोर्ड के सहमति से ही लिया जा सकता है.

बिहार BJP की ड्राइविंग सीट पर कौन?: सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार के बाद बिहार बीजेपी की ड्राइविंग सीट पर कौन होगा इसे लेकर लंबे समय से पार्टी के अंदर मंथन चल रहा है. फिलहाल भूपेंद्र यादव नित्यानंद राय और संजय जायसवाल पार्टी में प्रभावी हैं. मुख्यमंत्री पद के लिए फैसला लेने से पहले पार्टी कई बिंदुओं पर विचार कर रही है. बीजेपी के समक्ष जहां नीतीश कुमार का विकल्प तलाशने की चुनौती है, वहीं पार्टी को यह भी ख्याल रखना है कि मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा दिए जाने से उनके कोर वोटर नाराज ना हो.

यादव वोट साधने में नित्यानंद नाकामयाब: जहां तक सवाल केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय का है तो यादव वोट बैंक लंबे समय से आरजेडी के साथ इंटैक्ट है. तमाम कोशिशों के बावजूद भूपेंद्र यादव और नित्यानंद राय यादव वोट बैंक को बीजेपी के पक्ष में लाने में नाकामयाब रहे हैं. नित्यानंद राय यादव बहुल लोकसभा सीट पर अपनी सीट बचाने में जरूर कामयाब रहे. नित्यानंद राय का नाम सीएम पद को लेकर इसलिए भी आगे है क्योंकि सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार सरीखे नेताओं को किनारे करने का श्रेय इन्हीं को जाता है.

नित्यानंद के लिए राह नहीं आसान: नित्यानंद राय के अलावा बिहार भाजपा में कई ऐसे चेहरे हैं जो मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार हैं. संजय जायसवाल, सुशील मोदी, आरके सिंह, सम्राट चौधरी, गिरिराज सिंह और मंगल पांडे का दावा अलग-अलग कारणों से बनता है. पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने भी अभी मैदान नहीं छोड़ा है और सुशील मोदी भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपने राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव के आधार पर मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं. सुशील मोदी के पक्ष में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मजबूती के साथ खड़े हैं. जदयू नेताओं का मानना है कि सुशील मोदी अगर मुख्यमंत्री होंगे तो जदयू के सीनियर लीडर उनके नेतृत्व में सहजता के साथ काम कर पाएंगे.

'सुमो' पर BJP को B टीम बनाने का आरोप: सुशील मोदी के लिए चुनौतियां भी काफी ज्यादा है. सुशील मोदी बिहार प्रदेश में कमजोर पड़ चुके हैं और केंद्र का समर्थन भी इन्हें प्राप्त नहीं है. सुशील मोदी के ऊपर आरोप यह है कि बिहार में सुशील मोदी ने युवा नेतृत्व विकसित नहीं किया. सुशील मोदी पर यह भी आरोप लगता रहा है कि सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को मजबूत करने का काम किया और जिस वजह से बीजेपी बी टीम बनकर रह गई.

संजय जायसवाल भी दावेदारों में शामिल: बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का नाम भी दावेदारों की सूची में शामिल है. संजय जयसवाल जिस जाति से आते हैं वह बीजेपी का पारंपरिक वोटर है और संजय जायसवाल को प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह भी पसंद करते हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी संजय जायसवाल का बेहतर सामंजस्य है. जरूरत पड़ी तो भूपेंद्र यादव का भी समर्थन संजय जायसवाल को मिल सकता है. संजय जायसवाल के लिए नकारात्मक पक्ष यह है कि ये राजद बैकग्राउंड से आए हैं और बिहार प्रदेश की राजनीति में अध्यक्ष बनने से पहले इनकी भूमिका अहम नहीं रही है.

सम्राट चौधरी पर भी खेला जा सकता है दांव: बिहार बीजेपी की राजनीति में पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी बहुत तेजी से उभरकर सामने आए हैं. सम्राट अशोक की जयंती के मौके पर जो लोगों का हुजूम राजधानी पटना में बिहार के कोने-कोने से उमड़ा है, उससे पार्टी में सम्राट चौधरी का कद बढ़ा है. कार्यक्रम की सफलता से पार्टी में यह संदेश गया कि सम्राट चौधरी की पैठ कुशवाहा जाति में है. बीजेपी को पार्टी के अंदर युवा नेतृत्व की तलाश है और उस फॉर्मेट में सम्राट चौधरी फिट बैठते हैं.

सम्राट चौधरी नीतीश को नापसंद!: भूपेंद्र यादव और अमित शाह के साथ-साथ सम्राट चौधरी संघ की भी पसंद है. बीजेपी को यह लगता है कि सम्राट चौधरी नीतीश कुमार के बाद लवकुश वोट बैंक को कुछ हद तक संभाल सकते हैं. सम्राट चौधरी के समक्ष सबसे बड़ी मुश्किल नीतीश कुमार है. सम्राट चौधरी नीतीश कुमार के पसंदीदा नेताओं में शामिल नहीं हैं और कई बार नीतीश कुमार के विरोध की वजह से सम्राट चौधरी को राजनीतिक तौर पर नुकसान भी हुआ.

मुख्यमंत्री पद की बात होगी तो केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के नाम पर भी चर्चा होगी. आरके सिंह जिस जाति से आते हैं वो बीजेपी का कोर वोटर है और आरके सिंह अपने काम करने के तरीकों की वजह से प्रधानमंत्री की पसंद भी हैं. आरके सिंह के लिए नकारात्मक पक्ष यह है कि इन्हें बिहार की राजनीति का लंबा अनुभव नहीं है और शुरू से इन्होंने केंद्र की राजनीति की है. बिहार में पार्टी के साथ बेहतर सामंजस्य स्थापित करना आरके सिंह लिए बड़ी चुनौती होगी.

मंगल पांडे को BJP को मजबूत करने का श्रेय: स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. नीतीश कुमार भी मंगल पांडे को कार्यशैली की वजह से पसंद करते हैं. बिहार में बीजेपी को मजबूत करने का श्रेय मंगल पांडे को जाता है. अगर ब्राह्मण जाति से मुख्यमंत्री पद के लिए तलाश होगी तो मंगल पांडे मजबूत दावेदार होंगे. उम्र के लिहाज से भी मंगल पांडे का नाम युवा नेताओं की सूची में शामिल है. मंगल पांडे जिस जाति से आते हैं वो बीजेपी का कोर वोटर है. मंगल पांडे पर बीजेपी के अंदर वही आरोप लगता है जो सुशील मोदी के ऊपर लगता रहा है. नीतीश कुमार के करीबी होने का तमगा मंगल पांडे पर लगा है.

गिरिराज सिंह की छवि सेक्युलर नहीं: केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह खुद को पीएम मोदी का हनुमान कहते हैं. हाल के कुछ वर्षों में गिरिराज सिंह का कद पार्टी में तेजी से बढ़ा है. गिरिराज सिंह जिस जाति से आते हैं वो बीजेपी का पारंपरिक वोटर है और माना जाता है कि जिस जाति के लोगों ने लालू यादव के साथ राजनीतिक लड़ाई लड़ी अगर इस जाति से मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में तलाश होगी तो गिरिराज सिंह का नाम आगे आएगा. गिरिराज सिंह बिहार में लंबे समय तक मंत्री रहे हैं. नीतीश कैबिनेट में काम करने का अनुभव भी नहीं प्राप्त है लेकिन उनके नाम पर नीतीश कुमार और जदयू नेताओं की सहमति नहीं होगी. गिरिराज सिंह की छवि भी सेक्युलर नेता के रूप में नहीं है.

विपक्ष की ओर से भी आरोप लगते रहे हैं कि बीजेपी में मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं है. पार्टी प्रवक्ता विनोद शर्मा ने कहा कि हमारी पार्टी में नेताओं की कमी नहीं है. नित्यानंद राय, संजय जायसवाल, सुशील मोदी जैसे कई नेता हैं जो मुख्यमंत्री पद के लिए सशक्त दावेदार हैं. राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संजय कुमार का भी मानना है कि बीजेपी के समक्ष नेतृत्व को आगे लाने की चुनौती है और पार्टी युवाओं को आगे ला भी रही है, लेकिन पार्टी में ज्यादातर ऐसे नेता हैं जिनकी पकड़ वोट बैंक पर नहीं है. पार्टी के समक्ष चुनौती यह है कि जातिगत आधार पर मजबूत नेता विकसित हो.

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पटना: बिहार की सियासत में बीजेपी का विजयोत्सव कार्यक्रम (BJP Vijayotsav Program) की सफलता के बाद केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Union Minister Nityanand Rai) सुर्खियों में हैं. कार्यक्रम की सफलता पर नित्यानंद राय को बीजेपी में खूब वाहवाही मिल रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah) ने खुले मंच से नित्यानंद राय की तारीफ की है. सवाल यह उठ रहा है कि क्या नित्यानंद राय ने पार्टी के अंदर अपने तमाम प्रतिद्वंद्वियों को चित कर दिया है या अभी भी राह में कई मुश्किलें हैं.

ये भी पढ़ें- दावत-ए-इफ्तार के बहाने CM नीतीश की नई सियासत, NDA में भावी मुख्यमंत्री को लेकर रस्साकसी तेज

बीजेपी में बढ़ा नित्यानंद राय का कद: बिहार बीजेपी में सुशील मोदी, नंदकिशोर और प्रेम कुमार युग की समाप्ति के बाद बीजेपी में नित्यानंद राय का कद बहुत तेजी से बढ़ा है. बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव का नित्यानंद राय को भरपूर साथ और संरक्षण भी मिला है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगर केंद्र की राजनीति में जाते हैं तो ऐसी स्थिति में बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए नित्यानंद राय सशक्त दावेदार माने जा रहे हैं. हालांकि, बीजेपी के अंदर बड़े फैसले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और पार्लियामेंट्री बोर्ड के सहमति से ही लिया जा सकता है.

बिहार BJP की ड्राइविंग सीट पर कौन?: सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार के बाद बिहार बीजेपी की ड्राइविंग सीट पर कौन होगा इसे लेकर लंबे समय से पार्टी के अंदर मंथन चल रहा है. फिलहाल भूपेंद्र यादव नित्यानंद राय और संजय जायसवाल पार्टी में प्रभावी हैं. मुख्यमंत्री पद के लिए फैसला लेने से पहले पार्टी कई बिंदुओं पर विचार कर रही है. बीजेपी के समक्ष जहां नीतीश कुमार का विकल्प तलाशने की चुनौती है, वहीं पार्टी को यह भी ख्याल रखना है कि मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा दिए जाने से उनके कोर वोटर नाराज ना हो.

यादव वोट साधने में नित्यानंद नाकामयाब: जहां तक सवाल केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय का है तो यादव वोट बैंक लंबे समय से आरजेडी के साथ इंटैक्ट है. तमाम कोशिशों के बावजूद भूपेंद्र यादव और नित्यानंद राय यादव वोट बैंक को बीजेपी के पक्ष में लाने में नाकामयाब रहे हैं. नित्यानंद राय यादव बहुल लोकसभा सीट पर अपनी सीट बचाने में जरूर कामयाब रहे. नित्यानंद राय का नाम सीएम पद को लेकर इसलिए भी आगे है क्योंकि सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार सरीखे नेताओं को किनारे करने का श्रेय इन्हीं को जाता है.

नित्यानंद के लिए राह नहीं आसान: नित्यानंद राय के अलावा बिहार भाजपा में कई ऐसे चेहरे हैं जो मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार हैं. संजय जायसवाल, सुशील मोदी, आरके सिंह, सम्राट चौधरी, गिरिराज सिंह और मंगल पांडे का दावा अलग-अलग कारणों से बनता है. पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने भी अभी मैदान नहीं छोड़ा है और सुशील मोदी भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपने राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव के आधार पर मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं. सुशील मोदी के पक्ष में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मजबूती के साथ खड़े हैं. जदयू नेताओं का मानना है कि सुशील मोदी अगर मुख्यमंत्री होंगे तो जदयू के सीनियर लीडर उनके नेतृत्व में सहजता के साथ काम कर पाएंगे.

'सुमो' पर BJP को B टीम बनाने का आरोप: सुशील मोदी के लिए चुनौतियां भी काफी ज्यादा है. सुशील मोदी बिहार प्रदेश में कमजोर पड़ चुके हैं और केंद्र का समर्थन भी इन्हें प्राप्त नहीं है. सुशील मोदी के ऊपर आरोप यह है कि बिहार में सुशील मोदी ने युवा नेतृत्व विकसित नहीं किया. सुशील मोदी पर यह भी आरोप लगता रहा है कि सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को मजबूत करने का काम किया और जिस वजह से बीजेपी बी टीम बनकर रह गई.

संजय जायसवाल भी दावेदारों में शामिल: बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का नाम भी दावेदारों की सूची में शामिल है. संजय जयसवाल जिस जाति से आते हैं वह बीजेपी का पारंपरिक वोटर है और संजय जायसवाल को प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह भी पसंद करते हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी संजय जायसवाल का बेहतर सामंजस्य है. जरूरत पड़ी तो भूपेंद्र यादव का भी समर्थन संजय जायसवाल को मिल सकता है. संजय जायसवाल के लिए नकारात्मक पक्ष यह है कि ये राजद बैकग्राउंड से आए हैं और बिहार प्रदेश की राजनीति में अध्यक्ष बनने से पहले इनकी भूमिका अहम नहीं रही है.

सम्राट चौधरी पर भी खेला जा सकता है दांव: बिहार बीजेपी की राजनीति में पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी बहुत तेजी से उभरकर सामने आए हैं. सम्राट अशोक की जयंती के मौके पर जो लोगों का हुजूम राजधानी पटना में बिहार के कोने-कोने से उमड़ा है, उससे पार्टी में सम्राट चौधरी का कद बढ़ा है. कार्यक्रम की सफलता से पार्टी में यह संदेश गया कि सम्राट चौधरी की पैठ कुशवाहा जाति में है. बीजेपी को पार्टी के अंदर युवा नेतृत्व की तलाश है और उस फॉर्मेट में सम्राट चौधरी फिट बैठते हैं.

सम्राट चौधरी नीतीश को नापसंद!: भूपेंद्र यादव और अमित शाह के साथ-साथ सम्राट चौधरी संघ की भी पसंद है. बीजेपी को यह लगता है कि सम्राट चौधरी नीतीश कुमार के बाद लवकुश वोट बैंक को कुछ हद तक संभाल सकते हैं. सम्राट चौधरी के समक्ष सबसे बड़ी मुश्किल नीतीश कुमार है. सम्राट चौधरी नीतीश कुमार के पसंदीदा नेताओं में शामिल नहीं हैं और कई बार नीतीश कुमार के विरोध की वजह से सम्राट चौधरी को राजनीतिक तौर पर नुकसान भी हुआ.

मुख्यमंत्री पद की बात होगी तो केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के नाम पर भी चर्चा होगी. आरके सिंह जिस जाति से आते हैं वो बीजेपी का कोर वोटर है और आरके सिंह अपने काम करने के तरीकों की वजह से प्रधानमंत्री की पसंद भी हैं. आरके सिंह के लिए नकारात्मक पक्ष यह है कि इन्हें बिहार की राजनीति का लंबा अनुभव नहीं है और शुरू से इन्होंने केंद्र की राजनीति की है. बिहार में पार्टी के साथ बेहतर सामंजस्य स्थापित करना आरके सिंह लिए बड़ी चुनौती होगी.

मंगल पांडे को BJP को मजबूत करने का श्रेय: स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. नीतीश कुमार भी मंगल पांडे को कार्यशैली की वजह से पसंद करते हैं. बिहार में बीजेपी को मजबूत करने का श्रेय मंगल पांडे को जाता है. अगर ब्राह्मण जाति से मुख्यमंत्री पद के लिए तलाश होगी तो मंगल पांडे मजबूत दावेदार होंगे. उम्र के लिहाज से भी मंगल पांडे का नाम युवा नेताओं की सूची में शामिल है. मंगल पांडे जिस जाति से आते हैं वो बीजेपी का कोर वोटर है. मंगल पांडे पर बीजेपी के अंदर वही आरोप लगता है जो सुशील मोदी के ऊपर लगता रहा है. नीतीश कुमार के करीबी होने का तमगा मंगल पांडे पर लगा है.

गिरिराज सिंह की छवि सेक्युलर नहीं: केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह खुद को पीएम मोदी का हनुमान कहते हैं. हाल के कुछ वर्षों में गिरिराज सिंह का कद पार्टी में तेजी से बढ़ा है. गिरिराज सिंह जिस जाति से आते हैं वो बीजेपी का पारंपरिक वोटर है और माना जाता है कि जिस जाति के लोगों ने लालू यादव के साथ राजनीतिक लड़ाई लड़ी अगर इस जाति से मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में तलाश होगी तो गिरिराज सिंह का नाम आगे आएगा. गिरिराज सिंह बिहार में लंबे समय तक मंत्री रहे हैं. नीतीश कैबिनेट में काम करने का अनुभव भी नहीं प्राप्त है लेकिन उनके नाम पर नीतीश कुमार और जदयू नेताओं की सहमति नहीं होगी. गिरिराज सिंह की छवि भी सेक्युलर नेता के रूप में नहीं है.

विपक्ष की ओर से भी आरोप लगते रहे हैं कि बीजेपी में मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं है. पार्टी प्रवक्ता विनोद शर्मा ने कहा कि हमारी पार्टी में नेताओं की कमी नहीं है. नित्यानंद राय, संजय जायसवाल, सुशील मोदी जैसे कई नेता हैं जो मुख्यमंत्री पद के लिए सशक्त दावेदार हैं. राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संजय कुमार का भी मानना है कि बीजेपी के समक्ष नेतृत्व को आगे लाने की चुनौती है और पार्टी युवाओं को आगे ला भी रही है, लेकिन पार्टी में ज्यादातर ऐसे नेता हैं जिनकी पकड़ वोट बैंक पर नहीं है. पार्टी के समक्ष चुनौती यह है कि जातिगत आधार पर मजबूत नेता विकसित हो.

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