पटना: मंडल आंदोलन के बाद बिहार की सियासत में तेजी से बदलाव आया. कई राजनीतिक दलों ने पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक को ही ताकत समझा. उन्हें ज्यादा तरजीह भी दी. लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव के बाद कई राजनीतिक दलों के सिर पर बल डाल दिया है. वे सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि आखिर क्या किया जाए? इसी कड़ी में जदयू के नेता भी हार के कारणों को लेकर मंथन में जुटे हैं. मंथन के बाद जदयू ने सवर्ण वोट बैंक साधने के लिए रणनीति तैयार की है.
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बिहार में बदली राजनीतिक फिजा
दरअसल, पिछले कुछ दशकों की बात करें तो बिहार की राजनीति मंडल और कमंडल के इर्द-गिर्द घूमती रही है. वो दौर कुछ और था जब कांग्रेस बिहार में अगड़ी जाति की राजनीति करती थी. श्रीकृष्ण सिंह से लेकर जगन्नाथ मिश्र तक को आगे रखकर कांग्रेस की राजनीति चलती रही. पर बदलते दौर में मंडल आंदोलन के बाद से पिछड़ा और अति पिछड़ा राजनीति राजनीतिक दलों की मजबूरी बन गई. तमाम पिछड़ी जाति के नेता फ्रंट रनर हो गए. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव पिछड़ी जातियों की राजनीति साधने के लिए सियासी दांव चलते रहे.
नीतीश कुमार टनटन बने सवर्ण प्रकोष्ठ के अध्यक्ष
2020 के विधानसभा चुनाव में 43 सीटों पर सिमटने के बाद जदयू में लंबे समय तक मंथन का दौर चला. पार्टी को लगा कि सवर्ण पार्टी की विचारधारा से अलग हो रहे हैं. ऐसे में सवर्णों को जोड़ने की रणनीति बनाई गई. राजनीतिक दलों के अंदर एससी एसटी, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वोट बैंक साधने के लिए प्रकोष्ठ का गठन किया है. किसी भी राजनीतिक दल के अंदर सवर्ण प्रकोष्ठ का गठन नहीं हुआ था, लेकिन जदयू ने रणनीति के तहत सवर्ण प्रकोष्ठ का गठन किया है और पहले अध्यक्ष के रूप में नीतीश कुमार टनटन की ताजपोशी की गई है.
"विधानसभा चुनाव के बाद हम लोगों ने मंथन किया और मंथन के बाद चुनौती को अवसर में बदलने के लिए पार्टी ने रणनीति तैयार की है. नीतीश कुमार सबको साथ लेकर चलते हैं. हमारी पार्टी समाज के हर तबके को साथ लेकर चलने में विश्वास करती है."- उमेश कुशवाहा, प्रदेश अध्यक्ष, जदयू
"हम सवर्णों को पार्टी से जोड़ने के लिए बूथ स्तर तक जाएंगे. हर स्तर पर कमेटी का गठन होगा. मेरी कोशिश होगी कि गरीब और आम सवर्णों को पार्टी से जोड़ें. उनलोगों को अपनी बात रखने के लिए एक प्लेटफॉर्म मुहैया कराएं."- नीतीश कुमार टनटन, अध्यक्ष, सवर्ण प्रकोष्ठ जदयू
"अगर जदयू सवर्णों को अपने साथ जोड़ता है तो यह अच्छी बात है. इससे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन मजबूत होगी. मेरी पार्टी पहले से सवर्णों की चिंता करती आ रही है. जदयू के इस कदम से भाजपा के वोट बैंक पर असर नहीं पड़ेगा."- विनोद सिंह, भाजपा प्रवक्ता
बिहार में 15 फीसदी है सवर्णों का वोट
गौरतलब है कि बिहार में 15% वोट सवर्णों का है. सवर्ण वोट बैंक पर भाजपा अपना अधिकार मानती है. टिकट बंटवारे के दौरान भी भाजपा सबसे अधिक तवज्जो सवर्णों को देती है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में सवर्ण आयोग का गठन हुआ था और केंद्र की सरकार ने गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण दिया. जदयू को भी सवर्ण वोट बैंक की चिंता सताने लगी है. अब पार्टी सवर्णों के बीच बूथ स्तर तक पहुंचना चाहती है.