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अविश्वास प्रस्ताव, चर्चा का समय और किसी शख्स से बातचीत, पवार की 'चाल' से गिर गई थी वाजपेयी सरकार - SHARAD PAWAR

पत्रकार नीलेश कुमार कुलकर्णी की किताब के विमोचन पर बताया कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उन्होंने बाजी पलट दी और सरकार गिरा दी.

Sharad Pawar
शरद पवार (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 21, 2025, 10:38 PM IST

नई दिल्ली: 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज 13 महीने बाद ही गिर गई थी. उस समय लोकसभा में विपक्ष के नेता शरद पवार ने देश में सबसे कम समय तक चलने वाली सरकार को लेकर अब बड़ा खुलासा किया. इस दौरान पवार ने उस समय के राजनीतिक हालात पर भी टिप्पणी की.

पत्रकार नीलेश कुमार कुलकर्णी की किताब 'संसद भवन टू सेंट्रल विस्टा: पाथ ऑफ ड्यूटी ऑफ मेमोरीज' के विमोचन समारोह में बोलते हुए तत्कालीन लोकसभा में विपक्ष के पूर्व नेता शरद पवार ने बताया कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उन्होंने कैसे बाजी पलट दी और सरकार को गिरा दिया था.

बता दें कि 17 अप्रैल 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लोकसभा में बहुमत साबित करना था, लेकिन उस दिन वाजपेयी सरकार को सिर्फ 269 वोट मिले. जबकि सरकार के खिलाफ 270 वोट पड़े. इसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी को इस्तीफा देना पड़ा.

वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
इस घटना के बारे में एनसीपी अध्यक्ष (शरद पवार) ने कहा, "बहुत से लोग मेरे करियर के बारे में नहीं जानते हैं कि मैं संसद में विपक्ष का नेता था. विपक्ष के नेता के तौर पर मेरे कार्यकाल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता में थी. जब हम विपक्ष में थे तो उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था.यह प्रस्ताव एक वोट से पारित हुआ था. मैं आपको यह नहीं बता रहा हूं कि मुझे वह वोट कैसे मिला."

उन्होंने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद चर्चा का समय होता है. उस दौरान मैं बाहर गया. किसी से बात की और वापस आ गया. सरकार एक वोट से गिर गई क्योंकि सत्ताधारी दल के एक व्यक्ति ने अलग फैसला लिया.

पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा, "कुलकर्णी ने किताब में कई बातों का जिक्र करने की कोशिश की है, लेकिन कुछ ऐसी घटनाएं भी हैं, जिन्हें किताब में जोड़ने की जरूरत है. अगर हम उन्हें जोड़ना चाहते हैं तो आप, हम और संजय राउत एक बार बैठेंगे. हम वहां किसी का पक्ष लिए बिना असली तस्वीर पेश करने की कोशिश करेंगे ."

संजय राउत की नाराजगी पर भी बोले पवार
गौरतलब है कि हाल ही में शरद पवार द्वारा एकनाथ शिंदे को महादजी शिंदे पुरस्कार दिए जाने के बाद सांसद संजय राउत ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी. इसका जिक्र किए बिना शरद पवार ने कहा, "संजय राउत और मैं पिछले दस-बारह दिनों से संपर्क में नहीं हैं. हम आम तौर पर मिलते थे और हर दिन मिलते थे. खबर थी कि हम मिलने वाले हैं. अगर किसी के पास किसी मामले पर कोई राय है और वह ईमानदार है, तो क्या उसे व्यक्त करने का अधिकार है या नहीं? सिर्फ इसलिए कि उसने वह राय व्यक्त की है, तुरंत असहमति नहीं हो सकती. मैं आपको ऐसी कई बातें बता सकता हूं."

मुझे शरद बाबू कहते थे बालासाहेब ठाकरे
शरद पवार ने महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति के बारे में भी अपनी राय रखी. संजय राउत ने यह उन लोगों से सीखा है जिनके साथ उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा बिताया है. ऐसे सभी विचारों वाले लोग कभी भी छोटा नहीं सोच सकते. वे बड़ा सोचेंगे. बालासाहेब ठाकरे और हम लोगों का एक अलग सिक्रेट था. सबके जाने के बाद, वह जो भी शब्द बोलते थे. उससे हम लोगों में अपनी रुचि दिखाते थे. वह मुझे शरद बाबू कहते थे. हम भी उसी तरह से जवाब देते थे. उसके बाद शाम को कभी-कभी फोन आता था.

फोन पर बालासाहेब कहते थे, "शरद बाबू, आपसे मिलने आऊं या आप आ रहे हैं?" कल मीटिंग में मैंने जो कहा या लिखा, उसके बारे में मैं अपने मन में कभी कोई संदेह नहीं रखना चाहता. महत्व, विश्वास और व्यक्तिगत सद्भाव कभी कम नहीं हुआ है. यह महाराष्ट्र के कुछ नेताओं की विशेषता है. उनमें यशवंतराव चव्हाण और बालासाहेब ठाकरे का उल्लेख करना होगा. ऐसे कई नाम बताए जा सकते हैं. इन्हें इकट्ठा करने के उनके प्रयास के लिए मैं नीलेश कुमार कुलकर्णी को बधाई देता हूं."

यह भी पढ़ें- वोटर लिस्ट पर नजर रखेगी कांग्रेस, बूथ एजेंट को प्रशिक्षित करने के लिए बनाएगी 'WAR ROOM'

नई दिल्ली: 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज 13 महीने बाद ही गिर गई थी. उस समय लोकसभा में विपक्ष के नेता शरद पवार ने देश में सबसे कम समय तक चलने वाली सरकार को लेकर अब बड़ा खुलासा किया. इस दौरान पवार ने उस समय के राजनीतिक हालात पर भी टिप्पणी की.

पत्रकार नीलेश कुमार कुलकर्णी की किताब 'संसद भवन टू सेंट्रल विस्टा: पाथ ऑफ ड्यूटी ऑफ मेमोरीज' के विमोचन समारोह में बोलते हुए तत्कालीन लोकसभा में विपक्ष के पूर्व नेता शरद पवार ने बताया कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उन्होंने कैसे बाजी पलट दी और सरकार को गिरा दिया था.

बता दें कि 17 अप्रैल 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लोकसभा में बहुमत साबित करना था, लेकिन उस दिन वाजपेयी सरकार को सिर्फ 269 वोट मिले. जबकि सरकार के खिलाफ 270 वोट पड़े. इसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी को इस्तीफा देना पड़ा.

वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
इस घटना के बारे में एनसीपी अध्यक्ष (शरद पवार) ने कहा, "बहुत से लोग मेरे करियर के बारे में नहीं जानते हैं कि मैं संसद में विपक्ष का नेता था. विपक्ष के नेता के तौर पर मेरे कार्यकाल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता में थी. जब हम विपक्ष में थे तो उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था.यह प्रस्ताव एक वोट से पारित हुआ था. मैं आपको यह नहीं बता रहा हूं कि मुझे वह वोट कैसे मिला."

उन्होंने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद चर्चा का समय होता है. उस दौरान मैं बाहर गया. किसी से बात की और वापस आ गया. सरकार एक वोट से गिर गई क्योंकि सत्ताधारी दल के एक व्यक्ति ने अलग फैसला लिया.

पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा, "कुलकर्णी ने किताब में कई बातों का जिक्र करने की कोशिश की है, लेकिन कुछ ऐसी घटनाएं भी हैं, जिन्हें किताब में जोड़ने की जरूरत है. अगर हम उन्हें जोड़ना चाहते हैं तो आप, हम और संजय राउत एक बार बैठेंगे. हम वहां किसी का पक्ष लिए बिना असली तस्वीर पेश करने की कोशिश करेंगे ."

संजय राउत की नाराजगी पर भी बोले पवार
गौरतलब है कि हाल ही में शरद पवार द्वारा एकनाथ शिंदे को महादजी शिंदे पुरस्कार दिए जाने के बाद सांसद संजय राउत ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी. इसका जिक्र किए बिना शरद पवार ने कहा, "संजय राउत और मैं पिछले दस-बारह दिनों से संपर्क में नहीं हैं. हम आम तौर पर मिलते थे और हर दिन मिलते थे. खबर थी कि हम मिलने वाले हैं. अगर किसी के पास किसी मामले पर कोई राय है और वह ईमानदार है, तो क्या उसे व्यक्त करने का अधिकार है या नहीं? सिर्फ इसलिए कि उसने वह राय व्यक्त की है, तुरंत असहमति नहीं हो सकती. मैं आपको ऐसी कई बातें बता सकता हूं."

मुझे शरद बाबू कहते थे बालासाहेब ठाकरे
शरद पवार ने महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति के बारे में भी अपनी राय रखी. संजय राउत ने यह उन लोगों से सीखा है जिनके साथ उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा बिताया है. ऐसे सभी विचारों वाले लोग कभी भी छोटा नहीं सोच सकते. वे बड़ा सोचेंगे. बालासाहेब ठाकरे और हम लोगों का एक अलग सिक्रेट था. सबके जाने के बाद, वह जो भी शब्द बोलते थे. उससे हम लोगों में अपनी रुचि दिखाते थे. वह मुझे शरद बाबू कहते थे. हम भी उसी तरह से जवाब देते थे. उसके बाद शाम को कभी-कभी फोन आता था.

फोन पर बालासाहेब कहते थे, "शरद बाबू, आपसे मिलने आऊं या आप आ रहे हैं?" कल मीटिंग में मैंने जो कहा या लिखा, उसके बारे में मैं अपने मन में कभी कोई संदेह नहीं रखना चाहता. महत्व, विश्वास और व्यक्तिगत सद्भाव कभी कम नहीं हुआ है. यह महाराष्ट्र के कुछ नेताओं की विशेषता है. उनमें यशवंतराव चव्हाण और बालासाहेब ठाकरे का उल्लेख करना होगा. ऐसे कई नाम बताए जा सकते हैं. इन्हें इकट्ठा करने के उनके प्रयास के लिए मैं नीलेश कुमार कुलकर्णी को बधाई देता हूं."

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