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पहले पद देकर साधी जाति फिर इस्तीफे से बनाई छवि, सोशल इंजीनियरिंग के उस्ताद हैं नीतीश!

2020 विधानसभा चुनाव में जेडीयू के कई कुशवाहा मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा है. बताया जा रहा है कि हालात यह हो गई कि नई सरकार के शपथ ग्रहण में कुशवाहा जाति से मंत्रीपद देना मुश्किल हो रहा था.

mevalal chaudhary resigns
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Published : Nov 19, 2020, 8:39 PM IST

पटना: बिहार के नए शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. बुधवार को जब नीतीश से मिलने मेवालाल चौधरी सीएम आवास पहुंचे थे, तब ही से कयास लगाया जा रहा था कि वे इस्तीफा देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

गुरुवार को मेवालाल चौधरी शिक्षा विभाग का पदभार ग्रहण कर लिया, तब साफ हो गया था कि वे नीतीश कैबिनेट में बने रहेंगे, लेकिन तीन घंटे बाद ही खबर आई कि उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. अंदरखाने से खबर मिली है कि सीएम नीतीश ने उनसे इस्तीफा मांगा था. तब मेवालाल चौधरी ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा, जिसे स्वीकर कर लिया गया है.

किस मजबूरी में नीतीश ने बनाया था मंत्री?

ऐसे में सवाल उठता है कि सीएम नीतीश कुमार सब कुछ जानते हुए भी मेवालाल चौधरी को किस मजबूरी में मंत्री बनाया था. जानकार बताते हैं कि 2020 विधानसभा चुनाव में जेडीयू के कई कुशवाहा मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा है. बताया जा रहा है कि हालात यह हो गई कि नई सरकार के शपथ ग्रहण में कुशवाहा जाति से मंत्री पद देना मुश्किल हो रहा था.

जानकार यह भी बताते हैं कि इस जाति को शामिल किए बिना सरकार बनाने पर नीतीश कुमार को भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता था. ऐसे में जेडीयू ने पिछला ट्रैक रिकॉर्ड जानते हुए भी कुशवाहा जाति से मंत्री के तौर पर मेवालाल चौधरी को शामिल किया.

जानकार बताते है कि जेडीयू ने कुशवाहा जाति को मंत्री पद देकर जातिगत समीकरण साध लिए थे. यही नहीं, मेवालाल चौधरी से पदभार ग्रहण करने के 3 घंटे के बाद ही इस्तीफा लेकर यह संदेश भी दे दिया गया कि नीतीश कुमार छवि से समझौता नहीं करते.

कुर्मी-कुशवाहा विधायकों में आई कमी

दरअसल, बिहार चुनाव में कुर्मी और कुशवाहा विधायकों की संख्या भी घट गई है. इस बार 9 कुर्मी समुदाय के विधायक ही जीत सके हैं जबकि 2015 में 16 कुर्मी विधायक जीतने में सफल रहे थे. इस बार जेडीयू के 12 कुर्मी प्रत्याशियों में से 7 ही जीत हासिल किए हैं जबकि बीजेपी के टिकट पर दो कुर्मी विधायक चुने गए हैं. हालांकि, 2015 में जेडीयू से 13 जबकि बीजेपी, कांग्रेस और कांग्रेस से एक-एक कुर्मी विधायक ही जीत दर्ज कर सके थे.

वहीं, इस बार कुशवाहा विधायकों की संख्या में भी कमी आई है. बिहार चुनाव में इस बार 16 कुशवाहा समुदाय के विधायक जीत हासिल कर सके हैं जबकि 2015 के चुनाव में 20 विधायक जीते थे. बीजेपी से 3, जेडीयू से 4, आरजेडी से 4 और सीपीआई (माले) से 4 कुशवाहा समाज के विधायक चुने गए हैं जबकि एक सीपीआई के टिकट पर जीते हैं.

पटना: बिहार के नए शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. बुधवार को जब नीतीश से मिलने मेवालाल चौधरी सीएम आवास पहुंचे थे, तब ही से कयास लगाया जा रहा था कि वे इस्तीफा देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

गुरुवार को मेवालाल चौधरी शिक्षा विभाग का पदभार ग्रहण कर लिया, तब साफ हो गया था कि वे नीतीश कैबिनेट में बने रहेंगे, लेकिन तीन घंटे बाद ही खबर आई कि उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. अंदरखाने से खबर मिली है कि सीएम नीतीश ने उनसे इस्तीफा मांगा था. तब मेवालाल चौधरी ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा, जिसे स्वीकर कर लिया गया है.

किस मजबूरी में नीतीश ने बनाया था मंत्री?

ऐसे में सवाल उठता है कि सीएम नीतीश कुमार सब कुछ जानते हुए भी मेवालाल चौधरी को किस मजबूरी में मंत्री बनाया था. जानकार बताते हैं कि 2020 विधानसभा चुनाव में जेडीयू के कई कुशवाहा मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा है. बताया जा रहा है कि हालात यह हो गई कि नई सरकार के शपथ ग्रहण में कुशवाहा जाति से मंत्री पद देना मुश्किल हो रहा था.

जानकार यह भी बताते हैं कि इस जाति को शामिल किए बिना सरकार बनाने पर नीतीश कुमार को भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता था. ऐसे में जेडीयू ने पिछला ट्रैक रिकॉर्ड जानते हुए भी कुशवाहा जाति से मंत्री के तौर पर मेवालाल चौधरी को शामिल किया.

जानकार बताते है कि जेडीयू ने कुशवाहा जाति को मंत्री पद देकर जातिगत समीकरण साध लिए थे. यही नहीं, मेवालाल चौधरी से पदभार ग्रहण करने के 3 घंटे के बाद ही इस्तीफा लेकर यह संदेश भी दे दिया गया कि नीतीश कुमार छवि से समझौता नहीं करते.

कुर्मी-कुशवाहा विधायकों में आई कमी

दरअसल, बिहार चुनाव में कुर्मी और कुशवाहा विधायकों की संख्या भी घट गई है. इस बार 9 कुर्मी समुदाय के विधायक ही जीत सके हैं जबकि 2015 में 16 कुर्मी विधायक जीतने में सफल रहे थे. इस बार जेडीयू के 12 कुर्मी प्रत्याशियों में से 7 ही जीत हासिल किए हैं जबकि बीजेपी के टिकट पर दो कुर्मी विधायक चुने गए हैं. हालांकि, 2015 में जेडीयू से 13 जबकि बीजेपी, कांग्रेस और कांग्रेस से एक-एक कुर्मी विधायक ही जीत दर्ज कर सके थे.

वहीं, इस बार कुशवाहा विधायकों की संख्या में भी कमी आई है. बिहार चुनाव में इस बार 16 कुशवाहा समुदाय के विधायक जीत हासिल कर सके हैं जबकि 2015 के चुनाव में 20 विधायक जीते थे. बीजेपी से 3, जेडीयू से 4, आरजेडी से 4 और सीपीआई (माले) से 4 कुशवाहा समाज के विधायक चुने गए हैं जबकि एक सीपीआई के टिकट पर जीते हैं.

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