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बिहार में विधानसभा अध्यक्ष पर विवाद नया नहीं, 1989 में भी हुआ था गतिरोध

बिहार के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में Assembly Speaker Vijay Sinha के इस्तीफा नहीं देने के कारण अभी जिस तरह की परिस्थितियां बन रही है. पहले भी विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष को लेकर विवाद हुए हैं. 1989 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष शिव चंद्र झा के समय ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई थी. पढ़ें पूरी खबर.

बिहार विधानसभा
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Published : Aug 24, 2022, 10:26 AM IST

पटना: बिहार में राजनीतिक संकट का दौर (Political crisis in Bihar) चल रहा है, वह नया नहीं है. बिहार विधानसभा में सरकार बदलने के बाद अध्यक्ष पद को लेकर गतिरोध पैदा हो गया. महागठबंधन ने सरकार बनने के तुरंत बाद विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव दिया था. विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा (Assembly Speaker Vijay Sinha) ने अपने रुख पहले से ही साफ कर दिया था कि वह इस्तीफा नहीं देंगे. 23 अगस्त को उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए प्रस्ताव को ही अस्वीकृत कर दिया. इस कारण विवाद और बढ़ गया है. बिहार विधानसभा में इससे पहले भी विधानसभा अध्यक्ष को लेकर विवाद हुए हैं. 1989 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष शिव चंद्र झा के समय ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई थी.

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कांग्रेस के अंदर ही था विवाद:1989 में उस समय की कांग्रेस की सरकार में विधानसभा अध्यक्ष शिव चंद्र झा ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया था. बाद में उन्हें पद से हटाया गया और रातों-रात उपाध्यक्ष को उनकी कुर्सी सौंपी गई थी. हालांकि, वह मामला कांग्रेस पार्टी का ही था और सरकार कांग्रेस की ही दोनों जगह थी. केंद्र में भी और बिहार में भी. इसलिए आलाकमान ने शिव चंद्र झा को दिल्ली बुलाकर इस्तीफा ले लिया था. शिव चंद्र झा 4 अप्रैल 1985 से 23 जनवरी 1979 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे. विवाद तत्कालीन विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर को उनके पद से हटाने के कारण शुरू हुआ था. उस पर खूब हंगामा हुआ था. यही नहीं मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद को भी सदन का नेता मानने से उन्होंने इंकार कर दिया था और इसका बड़ा कारण कांग्रेस के अंदर विवाद था. बाद में आलाकमान ने उनसे इस्तीफा ले लिया और उन्हें पद से हटाया गया.

विजय सिन्हा को भी हटाया जा सकता है:विजय सिन्हा का मामला जरूर अलग है लेकिन राजनीतिक जानकार बताते हैं कि स्थिति उसी तरह की उत्पन्न हो गई है और इस बार तो केंद्र में बीजेपी की सरकार है. इसलिए विजय सिन्हा को जबरदस्ती हटाना आसान नहीं है, लेकिन बहुमत महागठबंधन के पास है. इसलिए प्रक्रिया के तहत विजय सिन्हा को हटाया जा सकता है. बिहार विधानसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावली के नियम 110 में अध्यक्ष को पद से हटाने के संकल्प को देने का प्रावधान है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 179 से उद्धृत हैं. इस प्रकार के प्रस्ताव को स्वीकृत और अस्वीकृत करने का निर्णय सदन का अध्यासी सदस्य ही कर सकते हैं जिसका आधार 38 सदस्य का खड़े होकर संकल्प प्रस्ताव का समर्थन करना अथवा कम सदस्य का खड़ा होना होगा. अध्यक्ष के निर्वाचन में सभी भूमिका सदस्यों एवं सदन की होती है अतः उन्हें पद से हटाने की शक्ति भी सदस्यों और सदन में ही निहित है. इसलिए विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने कल संकेत भी दिए थे कि सदन की बात सदन में ही होगी.

गृहमंत्री बूटा सिंह स्पीकर का इस्तीफा लेकर पहुंचे थेः उस समय गृहमंत्री बूटा सिंह शिव चंद्र झा का इस्तीफा लेकर पटना पहुंचे थे और राज्यपाल को वह इस्तीफा सौंपा गया था, तब राज्यपाल ने उन्हें हटाने की प्रक्रिया शुरू की और रातों-रात औपचारिकता पूरी हुई. उस समय शिव नंदन पासवान डिप्टी स्पीकर थे. उन्हें विधानसभा अध्यक्ष का प्रभार दिया गया. बाद में जब चुनाव हुआ तो मोहम्मद हिदायतुल्लाह विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए थे. 23 जनवरी 1979 से 27 मार्च 1979 तक शिव नंदन पासवान विधानसभा अध्यक्ष के प्रभार में रहे थे.

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पटना: बिहार में राजनीतिक संकट का दौर (Political crisis in Bihar) चल रहा है, वह नया नहीं है. बिहार विधानसभा में सरकार बदलने के बाद अध्यक्ष पद को लेकर गतिरोध पैदा हो गया. महागठबंधन ने सरकार बनने के तुरंत बाद विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव दिया था. विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा (Assembly Speaker Vijay Sinha) ने अपने रुख पहले से ही साफ कर दिया था कि वह इस्तीफा नहीं देंगे. 23 अगस्त को उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए प्रस्ताव को ही अस्वीकृत कर दिया. इस कारण विवाद और बढ़ गया है. बिहार विधानसभा में इससे पहले भी विधानसभा अध्यक्ष को लेकर विवाद हुए हैं. 1989 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष शिव चंद्र झा के समय ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई थी.

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कांग्रेस के अंदर ही था विवाद:1989 में उस समय की कांग्रेस की सरकार में विधानसभा अध्यक्ष शिव चंद्र झा ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया था. बाद में उन्हें पद से हटाया गया और रातों-रात उपाध्यक्ष को उनकी कुर्सी सौंपी गई थी. हालांकि, वह मामला कांग्रेस पार्टी का ही था और सरकार कांग्रेस की ही दोनों जगह थी. केंद्र में भी और बिहार में भी. इसलिए आलाकमान ने शिव चंद्र झा को दिल्ली बुलाकर इस्तीफा ले लिया था. शिव चंद्र झा 4 अप्रैल 1985 से 23 जनवरी 1979 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे. विवाद तत्कालीन विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर को उनके पद से हटाने के कारण शुरू हुआ था. उस पर खूब हंगामा हुआ था. यही नहीं मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद को भी सदन का नेता मानने से उन्होंने इंकार कर दिया था और इसका बड़ा कारण कांग्रेस के अंदर विवाद था. बाद में आलाकमान ने उनसे इस्तीफा ले लिया और उन्हें पद से हटाया गया.

विजय सिन्हा को भी हटाया जा सकता है:विजय सिन्हा का मामला जरूर अलग है लेकिन राजनीतिक जानकार बताते हैं कि स्थिति उसी तरह की उत्पन्न हो गई है और इस बार तो केंद्र में बीजेपी की सरकार है. इसलिए विजय सिन्हा को जबरदस्ती हटाना आसान नहीं है, लेकिन बहुमत महागठबंधन के पास है. इसलिए प्रक्रिया के तहत विजय सिन्हा को हटाया जा सकता है. बिहार विधानसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावली के नियम 110 में अध्यक्ष को पद से हटाने के संकल्प को देने का प्रावधान है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 179 से उद्धृत हैं. इस प्रकार के प्रस्ताव को स्वीकृत और अस्वीकृत करने का निर्णय सदन का अध्यासी सदस्य ही कर सकते हैं जिसका आधार 38 सदस्य का खड़े होकर संकल्प प्रस्ताव का समर्थन करना अथवा कम सदस्य का खड़ा होना होगा. अध्यक्ष के निर्वाचन में सभी भूमिका सदस्यों एवं सदन की होती है अतः उन्हें पद से हटाने की शक्ति भी सदस्यों और सदन में ही निहित है. इसलिए विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने कल संकेत भी दिए थे कि सदन की बात सदन में ही होगी.

गृहमंत्री बूटा सिंह स्पीकर का इस्तीफा लेकर पहुंचे थेः उस समय गृहमंत्री बूटा सिंह शिव चंद्र झा का इस्तीफा लेकर पटना पहुंचे थे और राज्यपाल को वह इस्तीफा सौंपा गया था, तब राज्यपाल ने उन्हें हटाने की प्रक्रिया शुरू की और रातों-रात औपचारिकता पूरी हुई. उस समय शिव नंदन पासवान डिप्टी स्पीकर थे. उन्हें विधानसभा अध्यक्ष का प्रभार दिया गया. बाद में जब चुनाव हुआ तो मोहम्मद हिदायतुल्लाह विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए थे. 23 जनवरी 1979 से 27 मार्च 1979 तक शिव नंदन पासवान विधानसभा अध्यक्ष के प्रभार में रहे थे.

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