पटना: पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा बिहार में जाति आधारित सर्वे (Caste Based Survey in Bihar) कराने को लेकर लिए गए निर्णय को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई की. चीफ जस्टिस संजय करोल (Chief Justice Sanjay Karol) की खंडपीठ के समक्ष इस जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. ये जनहित याचिका शशि आनंद ने दायर की थी. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के महाधिवक्ता ललित किशोर ने कोर्ट को बताया कि फण्ड के मामले को पूरक बजट लाकर अनुमोदित कर दिया गया है. इसलिए आकस्मिक निधि से जाति आधारित सर्वे कराने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है.
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जाति जनगणना पर HC में सुवाई : कोर्ट ने याचिककर्ता को इस बात की छूट दी है कि जरूरत पड़ने पर इस मुद्दे को हाईकोर्ट के समक्ष लाया जा सकता है. याचिका में राज्य के राज्यपाल के आदेश से उक्त आशय को लेकर 06 जून, 2022 को जारी मेमो नंबर- 9077 और राज्य सरकार के उप सचिव के हस्ताक्षर से राज्य के मंत्रिपरिषद में 2 जून, 2022 को लिए गए निर्णय की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ता का कहना था कि बिहार सरकार द्वारा आकस्मिक निधि से अपने स्रोत से पांच सौ करोड़ रुपए खर्च करके जाति आधारित सर्वे कराना भारत के संविधान के अनुच्छेद 267 (2) के प्रावधानों का उल्लंघन है. याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि कंटीजेंसी फण्ड का उपयोग अप्रत्याशित स्थिति में किया जाना चाहिए. राज्य के महाधिवक्ता ललित किशोर की स्पष्टीकरण और पूरी स्थिति की जानकारी देने के बाद कोर्ट ने इस जनहित याचिका को रद्द कर दिया.
बिहार में होगी जातीय जनगणना : गौरतलब है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक आयोजित हुई थी. जिसमें बिहार में जातीय जनगणना की स्वीकृति दे दी गई थी. बैठक में फरवरी, 2023 तक जाति आधारित गणना पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है और इस पर 500 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया है. एक जून को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में जाति आधारित जनगणना के लिए सर्वदलीय बैठक हुई थी. जिसमें सबकी सहमति बनी थी और उसके बाद ही कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव पारित किया गया था.
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